Home » 1857 की विरासत

1857 की विरासत

by Rajendra Rajan
0 comment 23 views

— मुनेश त्यागी —

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को 163 साल हो गए। यह लड़ाई हमारे मेरठ से शुरू हुई थी। 10 मई 1857 दिन रविवार, की क्रांति अचानक हुई क्रांति नहीं थी बल्कि आजादी के लिए एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा थी जिसकी तैयारियां चार साल से चल रही थीं।

इस क्रांति का उद्देश्य अंग्रेजों को मार भगाना, भारतवर्ष को फिरंगियों की गुलामी से आजाद कराना, फिरंगियों की लूट, अत्याचार और शोषण से जनता और देश को बचाना था। इसका नारा भी था “मारो फिरंगी को”। इस क्रांति के कारण आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक थे। जनता में अंग्रेजों के खिलाफ त्राहि-त्राहि मच गई थी और आजादी पाने के लिए वह अपना सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हो गई थी।

इस क्रांति के नेता बहादुर शाह जफर, नानासाहेब, अजीमुल्ला ख़ान, महारानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, वीर कुंवर सिंह, तात्या टोपे, मौलाना अहमद शाह और बेगम हजरत महल के प्रधानमंत्री बालकृष्ण सिंह आदि थे।

इस क्रांति के लिए फ्रांस, इटली, रूस, क्रीमिया, ईरान आदि देशों से संपर्क किया गया था जो अजीमुल्ला ख़ान ने किया था। इसमें सिपाहियों, किसानों, मजदूरों, जनजातियों, राजा-रानियों, नवाबों-बेगम ने भाग लिया था।

उस समय के महान दार्शनिक कार्ल मार्क्स और एंगेल्स ने इंग्लैंड में बैठकर इस लड़ाई का पूरा जायजा लिया था और उन्होंने कहा था कि अंग्रेज जिसे सिपाहियों की लड़ाई कह रहे हैं, यह फौजी बगावत नहीं है, बल्कि यह सचमुच राष्ट्रीय विद्रोह है और उन्होंने इसे राष्ट्रीय महाविद्रोह की संज्ञा दी थी।

आजादी के इस युद्ध को आगे बढ़ाने और चलाने के लिए एक युद्ध संचालन समिति का गठन किया गया था जिसमें आधे हिंदू थे और आधे मुसलमान। इस संग्राम की सबसे बड़ी विरासत थी हिंदू मुस्लिम एकता। यह लड़ाई हिंदू-मुस्लिम जनता की एकता और नेताओं की एकजुटता का मिलाजुला परिणाम थी। इस लड़ाई में हिंदू-मुस्लिम एकता को बहादुर शाह जफर और मुकुंद, नानासाहेब और अजीमुल्ला ख़ान, महारानी लक्ष्मीबाई और गौस ख़ान और जमा ख़ान, मैंमनसिंह जिले के कदीम ख़ान और वृंदावन तिवारी, बेगम हजरत महल और उनके प्रधानमंत्री बालकृष्ण सिंह आगे बढ़ा रहे थे।

यह लड़ाई मेरठ से शुरू हुई थी जिसमें 85 सैनिकों को अलग-अलग सजा दी गई। कमाल की बात यह है कि इन 85 सैनिकों में 51 मुस्लिम और 34 हिंदू सिपाही शामिल थे जिनको अंग्रेजों ने बड़ी-बड़ी बड़ी सजाएं दी थीं। यह लड़ाई हिंदू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल थी।

यह लड़ाई हमारी कुछ कमियों की वजह से हम हार गए। इसके मुख्य कारण थे हमारे अंदरूनी झगड़े, सेनापतियों की अनुशासनहीनता, हुक्म उदूली, हमारे राजाओं, सामंतों और नवाबों द्वारा क्रांति के साथ की गई गद्दारी, जिसमें जियाजीराव सिंधिया, जगन्नाथ सिंह, हैदराबाद का निजाम और बहादुर शाह जफर का समधी इलाही बख्श, सलार गंज, गोरखा और सिख सामंत, गद्दार दुल्हाजू और गद्दार मानसिंह शामिल थे जिन्होंने मुखबिरी की, हमारी सेनाओं की गतिविधियों, हमारी युद्ध संचालन समिति के फैसलों की जानकारी अंग्रेजों को देते रहे और अंग्रेज उनकी काट ढूंढ़ते रहे।

यह आजादी की लड़ाई हमारे लिए कुछ कामयाबियां, कुछ गुण, अनुभव, दांव पेंच, कमियां और खामियां छोड़ गई।इसने हिंदुस्तानियों में मनुष्यत्व का बोध जगाया, उनको एक दूसरे के लिए अपनी जान कुर्बान करना सिखाया, उनको लड़नेवाला इंसान बनाया। इसने चीन को गुलाम होने से बचाया, भारत का सर्वनाश होने से बचाया और अंग्रेजों की विजेता होने की और सुपरनैचुरल होने की मान्यता को भंग किया और यह धारणा मजबूत की कि अंग्रेजों को युद्ध में बाकायदा हराया जा सकता है।

आजादी की इस लड़ाई ने एक बहुत मूल्यवान विरासत छोडी है, हिंदू-मुस्लिम एकता की विरासत। इसने भारतीयों के अंदर स्वाभिमान जगाया, उन्हें मूल्यों के लिए लड़ना सिखाया और मरना सिखाया। अंग्रेजों के हौसले और महत्त्वाकांक्षा को बाकायदा तोड़ डाला। इसने भारतीयों को सिर उठाकर चलने, संगठन बनाने और संघर्ष करने का अवसर प्रदान किया। इस जंग ने भारतीयों को सिखाया कि वे अपने और दूसरों के लिए लड़ सकते हैं और अपना सब कुछ कुर्बान कर सकते हैं, अपना तन मन धन देश की आजादी के लिए न्योछावर कर सकते हैं और अपने अंदरूनी झगड़ों और मतभेदों को भुला सकते हैं। यह जंग यह भी सीख देती है कि अपने अंदरूनी झगड़ों को, अंदरूनी मतभेदों को भुलाए बिना हम कोई लड़ाई नहीं जीत सकते।

इस महान लड़ाई ने हमें सिखाया कि हम अपनी आजादी हासिल करने के लिए अपनी जान तक दे सकते हैं और किसी भी प्रकार की ज्यादती, अत्याचार और जुल्मोसितम का सामना कर सकते हैं और उसका अंत कर सकते हैं। इस लड़ाई ने हमें यह भी सीख दी कि सामाजिक परिवर्तन करने के लिए क्रांतिकारी कार्यक्रम, क्रांतिकारी नेतृत्व, क्रांतिकारी संगठन, क्रांतिकारी अनुशासन और क्रांतिकारी जनता की एकजुटता बेहद जरूरी है, इसके बिना कोई क्रांति सफल नहीं हो सकती।

हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों ने जो सपने देखे थे वे अभी अधूरे हैं। अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि जनता को जनवादी क्रांति के लिए तैयार करें।

You may also like

Leave a Comment

हमारे बारे में

वेब पोर्टल समता मार्ग  एक पत्रकारीय उद्यम जरूर है, पर प्रचलित या पेशेवर अर्थ में नहीं। यह राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक समूह का प्रयास है।

फ़ीचर पोस्ट

Newsletter

Subscribe our newsletter for latest news. Let's stay updated!