Tag: ध्रुव शुक्ल
बुन्देली बोली के कवि ईसुरी की याद
— ध्रुव शुक्ल —
हंसा फिरें बिपत के मारे, अपने देस बिना रे
जिन बोलियों से मिलकर हिन्दी बनी, उनमें एक बुन्देली बोली भी है। इस...
फिर वही अंधा युग
— ध्रुव शुक्ल —
तीन सितंबर की शाम भोपाल के रवीन्द्र भवन में रंगकर्मी बालेन्द्र सिंह के निर्देशन में उनके 'हम थियेटर' के अभिनेताओं द्वारा...
मौजूदा हालात पर विमर्श का एक प्रस्ताव
— ध्रुव शुक्ल —
1. मतान्धता जीवन को मुश्किल में डाल रही है। संवाद और असहमति का सम्मान घट रहा है। संविधान पर शरीयतों और...
क्या हम मन मिलाना भूल गये हैं?
— ध्रुव शुक्ल —
वेदों ने हमसे कहा कि सब साथ रहकर सुखी होने की कामना करें। उपनिषद कई हैं और प्रत्येक हमें अस्तित्व को...
पैसे ले लो, वोट दे दो!
— ध्रुव शुक्ल —
मध्यप्रदेश में चुनाव का मौसम है। नेता अपने पक्ष में वोटों की पैदावार बढ़ाने के लिए लोकतंत्र की ऊसर पड़ी ज़मीन...
कुमार गंधर्व की महिमा भूलकर भारत भवन मना रहा उनकी जन्मशती
— ध्रुव शुक्ल —
पण्डित कुमार गंधर्व भारत के हृदय प्रदेश के देवास शहर में सुदूर कर्नाटक से संयोगवश उस तीस जनवरी को बसने आये...
हम आंदोलित पानी की आवाज़ सुनें!
— ध्रुव शुक्ल —
पानी इतना आंदोलित क्यों है? वह हमारे रास्ते क्यों रोक रहा है? हमारी गृहस्थी क्यों बहा रहा है? बस्तियां क्यों डुबा...
यह सामाजिक पश्चाताप का समय है
— ध्रुव शुक्ल —
अगर हम देख पा रहे हैं तो हमारे जीवन की प्रत्येक गतिविधि में राजनीति का हस्तक्षेप इतना बढ़ गया है कि...
कहीं आग लग गई, कहीं गोली चल गयी!
— ध्रुव शुक्ल —
तेजी से बदलती दुनिया में जुल्म और लूट के नये रिवाजों के बीच करोड़ों लोग बेबस जीवन गुजार रहे हैं। अचानक...
लंगड़े ‘आम’ की राजनीति
— ध्रुव शुक्ल —
सुना है कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता दीदी प्रधानमंत्री जी को हर साल पके हुए ताजे आम भेजती हैं। आम का...