Tag: Modern Hindi Poetry
जगदीश गुप्त की कविता
सच हम नहीं, सच तुम नहीं
सच हम नहीं, सच तुम नहीं।
सच है सतत संघर्ष ही।
संघर्ष से हटकर जिए तो क्या जिए हम या कि...
गिरिजा कुमार माथुर की कविता
नया कवि
जो अँधेरी रात में भभके अचानक
चमक से चकचौंध भर दे
मैं निरंतर पास आता अग्निध्वज हूँ
कड़कड़ाएँ रीढ़
बूढ़ी रूढ़ियों की
झुर्रियाँ काँपें
घुनी अनुभूतियों की
उसी नयी...
प्रगति सक्सेना की चार कविताएँ
1.
वो अटक जाते हैं भीतर के गहरे अँधेरे में कहीं
रेत भरी आंधी में जगमगाते हैं सुनहरी जुगनुओं की तरह
बबूल के काँटों से बचाना था...
नरेश मेहता की कविता
वृक्षत्व
माधवी के नीचे बैठा था
कि हठात् विशाखा हवा आयी
और फूलों का एक गुच्छ
मुझ पर झर उठा;
माधवी का यह वृक्षत्व
मुझे आकण्ठ सुगंधित कर गया ।
उस...
कैलाश गौतम की कविता
दूर होने दो अंधेरा
दूर
होने दो अँधेरा
अब घरों से
दूर होने दो ।
और ताज़ा कर सके
माहौल को जो
साज़ ऐसा दो
बाँध ले
गिरते समय के मूल्य को
अंदाज़ ऐसा...
देवेन्द्र कुमार ‘बंगाली’ की कविता
अंधेरे की व्यथा
झर रही हैं पत्तियाँ
झरनों सरीखी
स्वर हवा में तैरता है ।
यहाँ कोई फूल था
शायद यहीं इस डाल पर
तुमको पता है ?
ख़्वाहिशों की इमारत...
मानबहादुर सिंह की कविता
नहीं जानते कहाँ हैं हम
हम क्यों यहाँ हैं नहीं जानते
जो जानते हैं वह सच नहीं है ...।
क्या हम स्थान हैं ?
कुल खानदान हैं ?
भाषा हैं ?
इस पाखण्ड...
टीवी पर भेड़िए
कुबेरदत्त
भेड़िए
आते थे पहले जंगल से
बस्तियों में होता था रक्तस्राव
फिर वे
आते रहे सपनों में
सपने खण्ड-खण्ड होते रहे।
अब वे टीवी पर आते हैं
बजाते हैं गिटार
पहनते हैं...
डॉ शंभुनाथ सिंह की कविता
देश हैं हम
देश हैं हम
महज राजधानी नहीं।
हम नगर थे कभी
खण्डहर हो गए,
जनपदों में बिखर
गाँव, घर हो गए,
हम ज़मीं पर लिखे
आसमाँ के तले
एक इतिहास जीवित,
कहानी...
चंद्रकांत देवताले की कविता
औरत
वह औरत
आकाश और पृथ्वी के बीच
कब से कपड़े पछीट रही है,
पछीट रही है शताब्दियों से
धूप के तार पर सुखा रही है,
वह औरत आकाश और...