17 मई। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की 87वीं वर्षगांठ के मौके पर मध्यप्रदेश के समाजवादी आंदोलन से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं ने आज बहुजन संवाद पर ऑनलाइन समाजवादी समागम का आयोजन किया। इस समागम में प्रदेश के 20 जिलों के 30 से ज्यादा नेताओं ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि संघर्ष और वैचारिक मजबूती से ही मध्यप्रदेश में फिर से समाजवादी आंदोलन को मजबूती दी जा सकती है। आज भी गांव-गांव में समाजवादी कार्यकर्ता मौजूद हैं लेकिन उन्हें दिशा देने की जरूरत है। यदि हम सब संकल्प ले लें तो निश्चित रूप में आज जो स्थितियां है, उसे देखते हुए समाजवादी आंदोलन फिर से विकल्प बन सकता है।
समाजवादी समागम के ऑनलाइन वेबिनार की शुरुआत करते हुए पूर्व विधायक और समाजवादी समागम के संयोजक डॉ सुनीलम ने कहा कि आज से 87 वर्ष पहले भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को समाजवादी सिद्धान्तों के आधार पर जनाभिमुख बनाने के लिए ही कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की गयी थी। डॉ सीनियर ने कहा कि आज भारत आजाद जरूर है लेकिन जनता के सामने तानाशाही की परिस्थितियां हैं। इंदौर के वरिष्ठ समाजवादी रामबाबू अग्रवाल ने कहा कि आज विकल्प की आवश्यकता है, जो वर्तमान में लड़ सकते हैं उन्हें एकजुट करना होगा। एडवोकेट अनिल त्रिवेदी ने कहा कि असंख्य क्रांतिकारियों की विरासत हमारे पास है, उनके योगदान पर अध्ययन करने की आवश्यकता है। आज पॉवर पॉलिटिक्स को ही राजनीति का हिस्सा मान लिया गया है जिसे समाजवादी दृष्टि से बदला जा सकता है।
छिंदवाड़ा से एडवोकेट आराधना भार्गव ने कहा कि तीनों कृषि कानून किसान विरोधी ही नहीं, देश विरोधी भी हैं। इन्हें वापस कराने के लिए सभी को एकजुट होना पड़ेगा। रीवा से वरिष्ठ समाजवादी रामेश्वर सोनी ने कहा कि समाजवादी आंदोलन के परिणाम देर से आते हैं लेकिन दूरगामी होते हैं। पिपरिया के गोपाल राठी ने कहा कि समाजवाद को जिंदा रखने का एकमात्र विकल्प युवाओं को जन आंदोलनों से जोड़ना है, हमें समाजवादी साहित्य को पढ़ना तथा पढ़ाना चाहिए, लोगों तक विचार पहुंचाना होगा, आज जो अंधकारमय स्थिति है उससे निपटने के लिए प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं को तैयार करना होगा। रीवा से वरिष्ठ समाजवादी नेता बृहस्पति सिंह ने समाजवादी आंदोलन के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमें लोक शिक्षण का कार्य शुरू करना चाहिए, लोक शिक्षण से लोक संघर्ष तैयार किया जा सकता है।
इंदौर से वरिष्ठ समाजवादी नेता सुभाष रानाडे ने कहा कि हमारे पास समृद्ध विरासत होने के बावजूद हम कंगाल की स्थिति में है। इस स्थिति के लिए पूर्व के समाजवादी नेता भी जिम्मेवार हैं। वरिष्ठ समाजवादी और पत्रकार रामस्वरूप मंत्री ने कहा कि भले ही आज समाजवादी आंदोलन का जनाधार कम हो गया हो लेकिन गांव गांव में समाजवादी आंदोलन के कार्यकर्ता हैं, उन पुराने कार्यकर्ताओं के साथ नए नौजवानों को जोड़कर हम समाजवादी आंदोलन को पुनर्जीवित कर सकते हैं।
होशंगाबाद से लीलाधर राजपूत ने कहा कि गैरबराबरी और अन्याय के खिलाफ लड़कर ही समाजवादी आंदोलन मजबूत हुआ था, आज फिर उसी तरीके से देश में विकल्प बन सकता है। रायसेन से टीआर आठ्या ने कहा कि हमारे पुराने समाजवादी नेताओं ने विचार के साथ संघर्ष के कार्यकर्ता तैयार किए जिन्होंने सोशलिस्ट आंदोलन को मजबूती दी, आज इसकी बड़ी जरूरत है।
झाबुआ से समाजवादी नेता राजेश बैरागी ने कहा कि 1952 से 1982 तक झाबुआ में मामा बालेश्वर दयाल ने समाजवादी विचारधारा कायम रखी। इंदौर, उज्जैन, झाबुआ में समाजवादी विचारधारा को नई दिशा देने की आवश्यकता है। होशंगाबाद से लीलाधर राजपूत ने कहा कि समाजवादी नेता अलग-अलग दलों में बंट गए, संघर्ष का रास्ता छोड़ दिया जिसके चलते समाजवादी आंदोलन से रसातल की ओर चला गया। आज फिर जरूरत है कि हम विचार को मजबूती देकर संघर्ष का रास्ता अपनाएं।
रीवा से अजय खरे ने कहा कि आज इमरजेंसी से भी बदतर स्थिति निर्मित हो गई है। हमें सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ लड़ना होगा। कपूर चंद यादव, खालिद भाई मंसूरी, एडवोकट वीरेंद्र सिंह सहित अन्य कई वक्ताओं ने भी समाजवादी समागम को संबोधित किया। संचालन डॉ सीनियर ने किया।
– रामस्वरूप मंत्री