— शिवानंद तिवारी —
गलवान घाटी में चीन के अतिक्रमण और दोनों तरफ के सैनिकों के बीच हिंसक टकराव को एक साल हो गया। उस समय आई खबरों के मुताबिक भारत के बीस सैनिक शहीद हो गए थे। यों भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पुराना है और वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर अलग अलग दावे-प्रतिदावे चलते रहते हैं। लेकिन पूर्वी लद्दाख में पड़नेवाली गलवान घाटी तो वह क्षेत्र है जो एक साल पहले तक हमेशा विवाद रहित रहा, जहां चीन ने कभी सांकेतिक रूप से भी अपना दावा पेश नहीं किया था।
कहां तो भाजपा के नेता और मौजूदा केंद्र सरकार के मंत्री यह दम भरते थे कि चीन ने दशकों से भारत के जिस भूभाग पर कब्जा कर रखा है उसकी एक-एक इंच जमीन छुड़ा लेंगे, और कहां उन्हीं लोगों ने गलवान घाटी में चीन के अतिक्रमण और टकराव के समय शुतुरमुर्गी रवैया अपना लिया। सबसे अफसोसनाक तो खुद प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया थी जिन्होंने कहा था कि न कोई घुसा है न कोई घुसा हुआ है।
हकीकत पर पर्दा डालनेवाले उनके इस बयान से देश स्तब्ध रह गया था। देर से ही सही, सरकार को अपनी असावधानी, निष्क्रियता और भूल का अहसास हुआ और चीन को समझाने-बुझाने और दबाव बनाने की कोशिश शुरू हुई। लेकिन दोनों पक्षों के बीच ग्यारह दौर की बातचीत के बाद भी अस्पष्टता बनी हुई है। या बनाए रखी गई है? जबकि खबरें बताती हैं कि चीन ने पूरी नियंत्रण रेखा पर अस्थायी और स्थायी दोनों तरह के निर्माण अब और अधिक कर लिये हैं तथा तैनाती बढ़ा दी है।
चीन के साथ तनातनी के मामले में एक बात स्पष्ट तौर पर उभरकर सामने आई है और यह हमारे राष्ट्रीय चरित्र की मूलभूत कमजोरी को भी दर्शाती है। पाकिस्तान के मामले में हम शेर बन जाते हैं और चीन के सामने दब्बू! अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में किस देश की क्या हैसियत है यह जानने का एक सूत्र यह भी है कि किस देश का प्रतिद्वंद्वी कौन देश है। हमने हमेशा पाकिस्तान को ही अपना प्रतिद्वंद्वी माना है। जबकि तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो भारत के मुकाबले पाकिस्तान कहीं ठहरता नहीं है। यह बात अलग है कि पाकिस्तान का निर्माण ही भारत के प्रति नफरत के भाव से हुआ है। इसलिए आए दिन पाकिस्तान की हमारे प्रति कुछ न कुछ गड़बड़ करने की मंशा में कोई अनहोनीपन नहीं है।
हमारा दूसरा पड़ोसी चीन है। गौर करें तो पाएंगे कि चीन अपना प्रतिद्वंद्वी अमेरिका को मानता है। अमरीका भी चीन को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है। कहने की जरूरत नहीं कि दुनिया में अमरीका की हैसियत महाबली की बनी हुई है। लेकिन हमने कभी चीन को अपना प्रतिद्वंदी नहीं माना। कम से कम सार्वजनिक रूप से तो चीन की आलोचना करने से हमेशा हम बचते आए हैं। जबकि हकीकत यह है कि 1962 में चीन के साथ युद्ध में हम बुरी तरह पराजित हुए। सिर्फ पराजित ही नहीं हुए बल्कि भारतीय भूभाग का एक हिस्सा अब भी चीन के कब्जे में है।
हमारी संसद का सर्वसम्मत संकल्प है कि हम अपनी एक-एक इंच जमीन चीन से मुक्त कराएंगे। लेकिन देश की नई पीढ़ी को इस संकल्प के विषय में जानकारी भी नहीं होगी। क्योंकि हमारे देश के नेता इस संकल्प का स्मरण कराने से हमेशा बचते रहे हैं! बल्कि आज की पीढ़ी के सामने तो चीन के राष्ट्रपति को हमारे प्रधानमंत्री जी का झूला झुलाने वाला दृश्य है। ऐसे में वह यह कल्पना भी कैसे कर सकती है कि भारत के एक बड़े भूभाग पर जिस देश ने कब्जा जमा रखा है उस देश के राष्ट्रपति को हमारे प्रधानमंत्री झूला झुला रहे थे।
पिछले साल जिस इलाके में चीन की सेना ने प्रवेश किया वह अक्साई चिन से ही जुड़ा हुआ इलाका है। हमारे गृहमंत्री जी ने अनुच्छेद 370 को हटाने का प्रस्ताव पास कराने के बाद संसद में अपने भाषण में कहा था कि इसके बाद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और अक्साई चिन के इलाके को खाली कराना हमारा लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि इसके लिए मैं जान देने से भी पीछे नहीं हटूंगा।
एक अनुमान यह है कि गलवान घाटी में चीन की कार्रवाई के पीछे शायद उसी भाषण ने उकसावे का काम किया।अक्साई चिन इलाका 1962 के युद्ध के बाद से ही चीन के कब्जे में है। चीन का उस क्षेत्र में भारी निवेश है। जानकारी के अनुसार चीन लगभग चार-पाँच किलोमीटर हमारी सीमा के अंदर प्रवेश कर गया था। खबरों के अनुसार दोनों मुल्कों की सेनाएँ वापस हुईं। चीन पीछे हटा है यह बात तो समझ में आती है क्योंकि उसकी फौज हमारी सीमा के अंदर थी।लेकिन हमारी सेना के पीछे हटने का क्या मतलब है! इस पूरे प्रकरण में देश अंधकार में है। अत: भारत सरकार का यह दायित्व है कि देश की जनता को सही स्थिति की जानकारी दे ताकि आशंका और संशय का वातावरण समाप्त हो।
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