लाडली जी, समाजवादी कुनबा ही जिनका परिवार था

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लाडली मोहन निगम

— हरीश खन्ना —

लाडली मोहन निगम सारी उम्र दिल्ली के वेस्टर्न कोर्ट हॉस्टल के एक कमरे में रहते रहे। 1978 में राज्यसभा के सदस्य बने थे। आजीवन अविवाहित रहे। पक्के समाजवादी थे। संपन्न परिवार के थे। पर परिवार को छोड़ कर समाजवादी कुनबा ही उनका असली परिवार था। मध्यप्रदेश के रहनेवाले थे। इलाहाबाद में पढ़ाई की पर इंदौर, मध्यप्रदेश उनकी कर्मस्थली रहा। डॉ. लोहिया तथा मधु लिमये के साथी थे। वेस्टर्न कोर्ट के एक कोने में एक कमरे में वह रहते थे। वेस्टर्न कोर्ट के दूसरे कोने में एक कमरे में मधु जी रहते थे।

मैं अकसर लाडली जी से मिलने जाता रहता था। उम्र में बड़े होने के बावजूद उनके व्यवहार में बराबरी और मित्रता का भाव रहता था। हंसी-मजाक भी होता रहता था। अकसर हम लोग उन्हें लाडली जी नाम से संबोधित करते थे। एक बार शाम को उनसे मिलने गया तो गेट पर ही मिल गए। तैयार होकर जा रहे थे।

बोले एक शादी में जा रहा हूं। चलो तुम भी चलो। मैंने हंसते हुए कहा, लाडली जी किसकी शादी है ? उन्होंने उसका नाम बताया। सुनकर मैं हैरान हुआ।

मैं भी उसको जानता था। मुझसे जूनियर थी एम.ए. में। मैं जब पढ़ता था तब से उसे जानता था।

मैंने पूछा, लाडली जी आप उसको कैसे जानते हैं?

भारती (धर्मवीर भारती) के साथ आई थी। उन्होंने उस से परिचय कराया था। तभी से जानता हूं।

मुझे बोले चलो।

मैंने कहा,नहीं, नहीं, आप जाइए।

उनकी मित्र मंडली में छोटे-बड़े सभी तरह की उम्र के लोग थे। महिला मित्र भी बहुत थीं। सब के प्रति समता का भाव रहता था, उसमें उनकी उम्र या अहं की कहीं रुकावट नहीं थी।

बीच की पंक्ति में बायें से क्रमशः कमलेश जी और लाडली मोहन निगम

घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे। एक छोटी सी पोटली में इलायची, लौंग, सुपारी रखते थे। कभी कभी हमें भी खाने को मिल जाता था। घर जाओ तो उनके यहां अलग अलग साइज के बैग और सूटकेस बड़े करीने से अलमारी के ऊपर रखे होते थे, जिन्हें यात्रा के हिसाब से इस्तेमाल करते थे। कम दिनों की यात्रा में छोटा बैग और ज्यादा दिनों की यात्रा के लिए बड़ा बैग। आपातकाल में बड़ौदा डायनामाइट केस में जॉर्ज फर्नांडीस के साथ उनको भी आरोपी बनाया गया था पर वह भूमिगत हो गए।

उनका देहांत जब हुआ तो दिल्ली के वेस्टर्न कोर्ट कमरे के बाहर दरी पर हम लोग बैठे हुए थे। राजकुमार जैन भी मौजूद थे। बड़ा दुख हो रहा था कि एक अच्छा मित्र और समाजवादी साथी चला गया। अचानक एक सरकारी गाड़ी आई, साथ में एक दूसरी गाड़ी जिसमें सुरक्षाकर्मी भी थे वह भी आई। एक सज्जन उसमें से उतरे और हाथ जोड़ कर आकर मेरे साथ नीचे दरी पर बैठ गए। मैंने उनकी तरफ देखा, वह थे भारत की सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस वर्मा, जो शोक व्यक्त करने आए थे।

मेरा परिचय राजकुमार जैन ने उनसे करवाया। मेरी काफी देर उनसे बात हुई। उनका संबंध लाडली जी के परिवार से था। मैं सोच रहा था लाडली जी का एक परिवार यह भी है। पर उन्होंने तो अपना असली परिवार समाजवादियों का बना रखा था।

बायें लाडली मोहन निगम, दायें चंद्रशेखर

ऐसे लोग अब नहीं मिलेंगे। वह हमेशा हमारे मन में रहेंगे। आज धर्मयुग पत्रिका का एक पुराना अंक ‘इमरजेंसी विशेषांक’ मुझे पुराने कागजों में मिल गया जिसमें लाडली जी का एक लेख और चित्र भी है, जिसमे चंद्रशेखर जी के साथ लाडली जी बैठे है।

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