गांधी के बारे में दुष्प्रचार से लड़ती एक किताब

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— हिमांशु जोशी —

गांधी के बारे में आप जानने की जितनी कोशिश करेंगे उतना गहराते चले जाएंगे। उनके बारे में महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने कहा भी था – आनेवाली नस्लें शायद ही यकीन करें कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी इस धरती पर चलता-फिरता था।

कश्मीर के इतिहास के विशेषज्ञ के रूप में सशक्त पहचान बना चुके और ‘कश्मीरनामा’ के लेखक अशोक कुमार पांडेय की यह किताब- उसने गांधी को क्यों मारा- गांधी को मारने के लिए रची गयी साजिशों और संबंधित स्रोतों की पड़ताल करती है।

पुस्तक तीन खंडों में लिखी गई है। पहले खंड में हत्यारों से परिचय कराते हुए लेखक दूसरे खंड में उन परिस्थितियों से अवगत कराते हैं जिनमें गांधी हत्या की पटकथा लिखी गई, अंतिम खंड में अदालती कार्यवाही के बारे में बताया गया है।

अशोक कुमार पांडेय

किताब की शुरुआत उस गांधी के बारे में बात करते हुए होती है जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों को रोकने की कोशिश करने वहां जाना चाहता था।

पहले खण्ड में हत्यारों के जीवन के बारे में ऐसे खुलासे किए जाते हैं जिससे उनके अतीत की पृष्ठभूमि में हत्यारों का पनपना साफ़ दिखाई देता है। लेखक ने तब के मीडिया को लेकर जो खुलासे किए हैं उन्हें देख यह लगता है कि मीडिया आज भी उस स्थिति से बाहर नहीं निकला है। वर्तमान परिदृश्य के मद्देनजर और इतिहास से उठाए गए तथ्यों की वजह से ही यह किताब पढ़ने योग्य बन जाती है। गांधी हत्या की बाबत तब के तंत्र पर यह सवाल उठते हैं कि उन्होंने जानकारी होते हुए भी हत्या को रोकने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए।

पुस्तक की यह स्थापना कि नफरत की विचारधारा सभी धर्मों के ऐसे अनेक उत्साही और आदर्शवादी युवाओं को आज भी हत्यारों में बदल रही है वर्तमान परिदृश्य में सही साबित होती दिखती है। तख़्त पर बने रहने के लिए वाट्सऐप यूनिवर्सिटी से युवाओं को नफरत का ज्ञान बांटा जा रहा है, सोशल मीडिया पर आधे-अधूरे ज्ञान की भरमार है।

यही समझाते हुए पुस्तक साधारण मनुष्यों को दरिंदा बनानेवाली प्रेरणाओं तक पहुंचती है, और पाठक इसे समझ भी सकते हैं।

दूसरे खण्ड में गांधी हत्या के समय घटित हो रही अन्य घटनाओं को क्रमवार बताया गया है। ये वे घटनाएं थीं जिनका परिणाम गांधी हत्या के रूप में सामने आनेवाला था। चुन्नीभाई वैद्य का यह कथन कि ‘गांधीजी कट्टरपंथी हिंदुओं की राह के कांटे बन चुके थे’ सारी कहानी बयां करता है। ‘केसरी’ में 15 नवम्बर 1949 को छपे एक लेख से, जिसमें गांधी के हत्यारों का गुणगान किया गया है, जाहिर है कि एक खास विचारधारा के माननेवाले लोग गांधी-हत्या पर जश्न मना रहे थे।

लेखक ने गांधी के दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह वाले किस्से को गांधी के अहिंसा पर चलनेवाले रास्ते की शुरुआत बताते हुए उनके और मीर आलम के बीच घटी घटना का जिक्र भी किया है। गांधी ने अपने हमलावर मीर आलम के लिए अटार्नी जनरल से माफी की मांग की, और बाद में उनसे प्रभावित हो वही मीर आलम गांधी की रक्षा के लिए एक जगह कटार लिये खड़ा था।

एक उद्घाटन समारोह में गांधी ने सोने-चांदी से लदे महाराजाओं से कहा था ‘ओह यह वही धन है जो किसानों से आया है’। वहीं विनोबा भावे उनसे मिले थे।

किताब में  हम यह पढ़ सकते हैं कि कैसे पहले गांधी के विचार अंग्रेज़ों के बारे में न्यायपूर्ण राज्य वाले थे जो बाद में बदलकर यह हो गया कि अंग्रेजी राज अन्यायपूर्ण है। लेखक गांधी के विचार जानने के लिए ‘द रिमूवल ऑफ अनटचेबिलिटी’ जैसी किताबें पढ़ने के लिए भी कहते हैं।

पुस्तक हमें यह बताती है कि गांधी का संघर्ष जातिवाद का विरोध कर एक समरस समाज बनाने के लिए था तो सावरकर अन्य धर्मों के खिलाफ खड़े होने के लिए हिन्दू एकता बढ़ाना चाहते थे। सावरकर के खत अंग्रेजी शासन से उनकी नजदीकी का वर्णन करते हैं।

अशोक कुमार पांडेय की यह किताब विभाजन के लिए गांधी के जिम्मेदार होने के दुष्प्रचार  को भी ध्वस्त करती है। पुस्तक गांधी के आजादी के बाद के चिंतन पर भी प्रकाश डालती है। गांधी के लिए कांग्रेस सत्ता-प्राप्ति का जरिया नहीं थी, उनके लिए यह स्वराज के सपने को पूरा करनेवाली संस्था थी और गांधी का स्वराज केवल ‘आज़ाद’ भारत नहीं था।

नोआखली की घटना, दंगों को शांत करने के लिए गांधी के प्रयासों के साथ-साथ उनके हत्यारों के निजी जीवन में चल रही उथल-पुथल पर चर्चा करती किताब आगे बढ़ती है। लेखक गांधी के जीवन में कला और संगीत के अभाव की बात करनेवालों के लिए भी फिर से सोचने के तथ्य मुहैया कराती है।

गांधी के हत्यारों की वास्तविकता दिखाने के लिए कपूर आयोग की रिपोर्ट्स का हवाला दिया गया है। गांधी हत्या के बाद पटेल और नेहरू के बारे में कहा गया है कि पटेल हत्यारों को फांसी दिलाना चाहते थे तो नेहरू ने इसपर कोई हस्तक्षेप नहीं किया था।

सावरकर के अंगरक्षक और सचिव के बयानों का वर्णन है जो अदालत में नहीं रखे गए।

गांधी की हत्या के बाद सावरकर द्वारा सम्पर्क न रखने की वजह से गोडसे आहत था, यह बात आज की इस्तेमाल करो और अलग कर दो वाली राजनीति पर भी सही साबित होती है।

तीसरा खण्ड (तुम अदालत में झूठ बोले गोडसे) गोडसे के खुद को सही और महान बनाने की कोशिश करनेवाले बयानों को अपने तर्कों से झूठा साबित कर देता है। इस खंड में लेखक ने बताया है कि आम भारतीयों के घर में जिन स्थितियों के बाद विभाजन होता है उन्हीं स्थितियों में भारत-पाक विभाजन हुआ था, जिसके लिए गांधी को जिम्मेवार ठहराना गलत है। लेखक ने इस तथ्य को मजबूती से रखा है कि गांधी तो बंटवारे के बाद भी दोनों को एक करना चाहते थे। दरअसल, 1857 के बाद अंग्रेजों की ‘डिवाइड एन्ड रूल’ की नीति, जिसमें उनका साथ साम्प्रदायिक हिंदू और मुस्लिमों ने दिया था, विभाजन के लिए जिम्मेदार थी।

यह किताब भगतसिंह पर भी गांधी की स्थिति स्पष्ट करती है। अंत में लेखक ने बहुत सी किताबों व अन्य सबूतों को आधार बनाते हुए यह साबित किया है कि गोडसे भी उसी मानसिक विकृति और धार्मिक कट्टरता का शिकार था जिसकी वजह से आज दिल्ली दंगों जैसी घटनाएं हो रही हैं और एक युवक पुलिस की तरफ पिस्टल ताने खड़ा रहता है।

किताब :  उसने गांधी को क्यों मारा

लेखक : अशोक कुमार पांडेय

राजकमल प्रकाशन, नेताजी सुभाष मार्ग, नई दिल्ली।

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