सोशलिस्ट घोषणापत्र : दूसरी किस्त

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(दिल्ली में हर साल 1 जनवरी को कुछ समाजवादी बुद्धिजीवी और ऐक्टिविस्ट मिलन कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिसमें देश के मौजूदा हालात पर चर्चा होती है और समाजवादी हस्तक्षेप की संभावनाओं पर भी। एक सोशलिस्ट मेनिफेस्टो तैयार करने और जारी करने का खयाल 2018 में ऐसे ही मिलन कार्यक्रम में उभरा था और इसपर सहमति बनते ही सोशलिस्ट मेनिफेस्टो ग्रुप का गठन किया गया और फिर मसौदा समिति का। विचार-विमर्श तथा सलाह-मशिवरे में अनेक समाजवादी बौद्धिकों और कार्यकर्ताओं की हिस्सेदारी रही। मसौदा तैयार हुआ और 17 मई 2018 को, कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के 84वें स्थापना दिवस के अवसर पर, नयी दिल्ली में मावलंकर हॉल में हुए एक सम्मेलन में ‘सोशलिस्ट मेनिफेस्टो ग्रुप’ और ‘वी द सोशलिस्ट इंस्टीट्यूशंस’की ओर से, ‘1934 में घोषित सीएसपी कार्यक्रम के मौलिक सिद्धांतों के प्रति अपनी वचनबद्धता को दोहराते हुए’ जारी किया गया। मौजूदा हालातऔर चुनौतियों के मद्देनजर इस घोषणापत्र को हम किस्तवार प्रकाशित कर रहे हैं।)

कॉरपोरेट समर्थक नीतियां

रेंद्र मोदी की अगुआई वाली भाजपा सरकार ने विश्व बैंक निर्देशित आर्थिक नीतियों को लागू कर दिया है, जिसकी गति पिछली यूपीए सरकार की तुलना में अधिक तीव्र है। इन नीतियों को नवउदारवादी नीतियों के रूप में जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप दानवाकार विदेशी और भारतीय कॉरपोरेट घरानों को अकूत लाभ मिल रहा है और उसे अधिकतम स्तर पर ले जाने की बात हो रही है। कुल मिलाकर देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से उन्हीं कॉरपोरेट घरानों के लिए चल रही है।

सरकार हर साल अमीरों को कई लाख करोड़ रुपये की टैक्स रियायत दे रही है। बजट दस्तावेजों के एक विश्लेषण से अनुमान लगाया गया है कि सत्ता में आने के बाद से अपने चार वर्षों के दौरान, मोदी सरकार ने देश के इन धनपतियों को 22 लाख करोड़ रुपये से अधिक की कर रियायतें दी हैं। यह राशि 2018-19 के बजट व्यय के बराबर (24 लाख करोड़ रुपये) है। इन सभी कर-रियायतों और सरकार की काली अर्थव्यवस्था पर रोक लगाने की अनिच्छा के कारण देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कर का अनुमान बहुत कम लगभग 16.5 फीसद पर है। भारत का जीडीपी में कर का अनुपात ब्रिक्स देशों (ब्राजील 35.6 फीसद, दक्षिण अफ्रीका 28.8 फीसद) के मुकाबले कम है, और ओईसीडी देशों (औसतन 34 फीसद) से तो काफी नीचे है।

इसके शीर्ष पर, केंद्र के कुल कर-राजस्व का सर्वाधिक हिस्सा आम लोगों (अप्रत्यक्ष करों के माध्यम से) से आता है, न कि अमीरों से (प्रत्यक्ष करों के रूप में)। जबकि यूरोप के विकसित देशों के कुल कर-राजस्व में प्रत्यक्ष करों और अप्रत्यक्ष करों का अनुपात 70:30 है, जबकि भारत में यह बिलकुल विपरीत 30:70 है।

कर रियायतों के अलावा, सरकार सार्वजनिक-निजी साझेदारी के नाम पर सबसिडी, ऋण छूट/ ऋण पुनर्गठन के रूप में कॉरपोरेट घरानों को देश के खजाने से लाखों करोड़ों की सार्वजनिक धनराशि दे रही है। इसके अलावा निजी निगमों को देश की खनिज संपदा और संसाधनों का नियंत्रण न के बराबर रॉयल्टी पर दिया जा रहा है। लाभदायक सार्वजनिक क्षेत्र के निगमों के स्वामित्व को निजी व्यावसायिक घरानों को औने-पौने दामों पर बेचकर इसी तरह के कार्यों से कॉरपोरेट क्षेत्र को फायदा पहुंचाने की कोशिशें चल रही हैं।

देश भर में किसान संगठनों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के कारण कॉरपोरेट घरानों के लिए भूमि अधिग्रहण आसान बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन पारित करने में केंद्र द्वारा विफल होने के बाद कई राज्यों, विशेष रूप से भाजपा शासित राज्यों ने भूमि मालिकों के अधिकारों को कम करने के कानून पारित किये हैं और परियोजनाओं के लिए जमीन का अधिग्रहण आसान और सस्ता बना दिया है।

हमारे जीवन के सभी पहलुओं, हम जो खाना खाते हैं, जो पानी हम पीते हैं, हम जिस ऊर्जा का उपयोग करते हैं, हमारे स्वास्थ्य और स्वच्छता, हमारी संचार प्रणालियां और परिवहन जिसका हम उपयोग करते हैं, सबको तेजी से निजी और कॉरपोरेट के हाथों में सौंपा जा रहा है।

कर-रियायतों और गैर-कर रियायतों के रूप में अमीरों को दी जानेवाली ये बड़ी सबसिडी सरकार के कम राजस्व संग्रह और इसके परिणामस्वरूप कम बजटीय व्यय के लिए जिम्मेदार है। भारत की जीडीपी में कुल सरकारी राजस्व का प्रतिशत दुनिया में सबसे कम है। यह यूरोपीय संघ के अधिकांश देशों के लिए 40 फीसद से अधिक है। दुनिया का औसत 30.2 फीसद है। लेकिन भारत सरकार का कुल राजस्व सकल घरेलू उत्पाद का केवल 20.8% है (कुल सरकारी राजस्व, केंद्र + राज्य को मिलाकर)।

ऋण–संकट

इन सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गहरे बाहरी संकट में धकेल दिया है। दिसम्बर 2017 तक देश का विदेशी ऋण 5130 लाख डॉलर को पार कर गया था, जिससे भारत दुनिया के सबसे अधिक ऋणी देशों में से एक बन गया है। वित्तीय खातों की स्थिति तेजी से खराब हो रही है, चालू राजकोषीय वित्तीय घाटा वित्तीय वर्ष 2017 की तुलना में 2018 में तीन गुना बढ़ने की उम्मीद है, और वित्तीय वर्ष 2019 में और आगे बढ़ने की उम्मीद है। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था को विदेशी पूंजी प्रवाह के लिए पूरी तरह से कमजोर बना दिया है, जिसमें अनुमानित पूंजी प्रवाह भी शामिल है।

प्रधानमंत्री मोदी देश में निवेश करने के लिए विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए देश-देश में घूम रहे हैं, और उनके द्वारा लगायी गयी शर्तों के सामने आत्मसमर्पण कर रहे हैं। हमारे आधारभूत क्षेत्र से लेकर हमारी कृषि और प्राकृतिक संसाधनों तक, भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र को विशाल विदेशी बहुराष्ट्रीय निगमों की लूट के लिए खोला जा रहा है। पिछले चार वर्षों के दौरान, भाजपा सरकार ने विदेशी निवेशकों के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के नियमों में बड़ी ढील देने की घोषणा की है, इस तरह स्वदेशी सरकार अब दावा कर सकती है कि भारत दुनिया की सबसे खुली अर्थव्यवस्था है। भाजपा ने रिटेल में एफडीआई के पहले के विरोध में भी यू-टर्न ले लिया है, और इस क्षेत्र को विदेशी निवेशकों के लिए कदम दर कदम खोलना शुरू कर दिया है, जो आनेवाले वर्षों में लाखों छोटे खुदरा कारोबारियों की आजीविका को नष्ट कर देगा।

विदेशी निवेशक मांग कर रहे हैं कि भारत अपने वित्तीय क्षेत्र का निजीकरण करे और पिछले चार वर्षों के दौरान सरकार ने इसके लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये हैं। प्रधानमंत्री मोदी भारत के परमाणु दायित्व कानून में अमेरिकी आपत्तियों को पूरा करने के लिए पूरी तरह आत्मसमर्पण कर रहे हैं, ताकि विशाल अमरीकी निगम भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर सकें। इसमें इस बात की भी चिंता नहीं की जा रही है कि परमाणु डिजाइन में दोषों के कारण होनेवाली दुर्घटनाओं के मामले में क्षतिपूर्ति का क्या होगा। इस प्रकार उन्हें जोखिम-भरे उपकरण की आपूर्ति करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जो कि आपदा को आमंत्रण के अलावा कुछ भी नहीं है। अपने मूल देशों में प्रतिबंधित दुनिया के सबसे प्रदूषणकारी उद्योगों को भारत में स्थापित करने की इजाजत दी जा रही है। जो कि भोपाल जैसी 1000 और दुर्घटनाओं को न्योता देने के समान है। यह सरकार चोरी चुपके भारतीय कृषि क्षेत्र को मॉन्सेंटो जैसी कृषि के क्षेत्र में व्यवसाय करनेवाले पश्चिमी निगमों के आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों (जीएम) के लिए खोलने की कोशिश कर रही है, जो न केवल भारतीय कृषि के लिए विनाशकारी परिणाम वाले होंगे बल्कि हमारे देश की खाद्य सुरक्षा को भी खतरे में डाल देंगे।

यहां तक कि हमारी स्वतंत्र गुट निरपेक्ष रक्षा नीति को भी खत्म किया जा रहा है और भारत सरकार धीर-धीरे संयुक्त राज्य अमरीका के वैश्विक आधिपत्यवादी हितों के लिए भारत को गुलाम बनाने की तैयारी कर रही है। हाल ही में, मोदी सरकार ने संयुक्त राज्य अमरीका के साथ एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किये जिसमें अमेरिकी सेना को रसद आपूर्ति व सैन्य संचालन विषयक सहयोग के लिए भारत के नौसेना और वायुसैनिक अड्डों का उपयोग करने की अनुमति दी गयी है।

(जारी)

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