देश में अधिसंख्य लोग बहु-आयामी दृष्टिकोण से गरीब हैं!

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हर चौथा भारतीय ‘बहु-आयामी ग़रीबी ‘की चपेट में है।नीति आयोग का ‘बहु-आयामी ग़रीबी सूचकांक’ जारी!

भारत सरकार का आला ‘थिंक-टैंक’ यानी चोटी का राय-बहादुर है- नीति आयोग। उसने अपना पहला ‘बहु-आयामी गरीबी सूचकांक’ (एमपीआई यानी मल्टीडाइमैंशनल पावर्टी इण्डेक्स) 26 नवम्बर, 2021को जारी किया है। एमपीआई की संगणना में समान भारांश वाले 3 बृहद् बुनियादी आयामों को सम्मिलित किया गया है- स्वास्थ्य, शिक्षा एवं जीवन-स्तर। इन 3 बड़े आयामों को 12 लघु आयामों में विभक्त किया गया है। वे 12 लघु आयाम हैं- पोषण, बाल एवं किशोर मृत्यु-दर, जन्मपूर्व यानी प्राक्प्रसव परिचर्या, स्कूली शिक्षा की अवधि, स्कूली शिक्षा के दौरान कक्षा में उपस्थिति, खाना पकाने के लिए ईंधन, सफाई, पेयजल, बिजली, मकान, परिसम्पत्तियां; तथा बैंक खाता।

नीति आयोग जिन निष्कर्षों पर पहुँचा है, वे बेहद चिन्ताजनक हैं। उसके एमपीआई के अनुसार, अमूमन हर चौथा भारतीय बहु-आयामी दृष्टिकोण से गरीब है। कारण, देश की कुल आबादी का 25.01 फीसद बहु-आयामी दृष्टिकोण से गरीब है। बिहार की आधी से ज्यादा आबादी (51.91फीसद) बहु-आयामी दृष्टिकोण से गरीब है। बिहार के बाद झारखण्ड (42.16 फीसद ), उत्तर प्रदेश (37.79 फीसद ),मध्य प्रदेश (36.65 फीसद) तथा मेघालय (32.67 फीसद) आते हैं। कमतर ‘बहु-आयामी गरीबी’ वाले राज्यों में केरल (0.71 फीसद )सिरमौर है। केरल के बाद क्रमश: गोवा (3.76 फीसद), सिक्किम (3.82 फीसद), तमिलनाडु (4.89 फीसद) तथा पंजाब (5.59 फीसद) हैं।

उल्लेखनीय है कि एमपीआई को यूएनडीपी (यूनाइटेड नेशंस डेवलमेण्ट प्रोग्राम ) तथा ओ.पी.एच.आई. (आक्सफोर्ड पावर्टी एण्ड ह्यूमन डेवलपमेण्ट इनिशिएटिव) की शोध-प्रविधियों या कार्यप्रणालियों के आधार पर गठित एवं विकसित किया गया है।

एमपीआई संयुक्त राष्ट्र संघ के सस्टेनेबल डेवलपमेण्ट गोल्स फ्रेमवर्क में भी फिट बैठता है जिसे 193 देशों ने वर्ष 2015 में अंगीकार किया था।

– कृष्णस्वरूप आनन्दी।

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