23 जनवरी। देश भर के अनेक मानवाधिकार संगठनों, विद्यार्थी संगठनों, किसान संगठनों तथा कई सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने एक साझा बयान जारी करके ओड़िशा के जगतसिंहपुर के ढिंकिया गाँव में 14 जनवरी को ग्रामीणों पर ढाये गये पुलिसिया जुल्म की निन्दा की है। इस पूरे क्षेत्र के ग्रामीण उनकी जमीन जिन्दल स्टील वर्क उत्कल लिमिटेड के लिए राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहीत किये जाने का विरोध कर रहे हैं।
साझा बयान में यह माँग की गयी है कि ओड़िशा सरकार ग्रामीणों के विरोध को कुचलने के लिए तैनात किये गये पुलिस बल को वहाँ से हटाये, ग्रामीणों पर थोपे गये आपराधिक केस वापस ले (जिनमें पोस्को और जिन्दल स्टील, दोनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान थोपे गये केस शामिल हैं), हिरासत में रखे गये ग्रामीणों को रिहा करे और पोस्को के लिए ली गयी जमीन ग्रामीणों को लौटाये।
बयान में कहा गया है कि-
हम 14 जनवरी को ढिंकिया में हुई पुलिस ज्यादती की कड़ी निन्दा करते हैं। इस पूरे क्षेत्र के ग्रामीण जिन्दल स्टील वर्क उत्कल लिमिटेड के लिए जिला प्रशासन द्वारा उनकी जमीन अधिग्रहीत किये जाने का विरोध करते रहे हैं।
14 जनवरी को लोग जैसे ही रैली को लिए इकट्ठा हुए, पुलिस बड़ी निर्ममता से उन पर टूट पड़ी। क्षेत्रीय टीवी चैनलों में शाम के समाचारों में दिखाया गया कि किस तरह पुलिस ने भाग रहे बच्चों व औरतों का पीछा किया और उन्हें पीटा, ग्रामीणों को जमीन पर गिराकर उन पर लाठियाँ बरसायीं, उन्हें कुचला। लोग मदद के लिए इधर-उधर भाग रहे थे और चीख-पुकार कर रहे थे। जुल्म ढाने के बाद पुलिस ने फ्लैग मार्च निकाला।
बहुत से ग्रामीण बुरी तरह जख्मी हैं। कई लोग पुलिसिया आतंक के कारण इलाज के लिए बाहर नहीं जा पा रहे हैं। कई लोग लापता हैं। हो सकता है वे डर के मारे जंगल में या पान के खेतों में छिपे हों।
छह लोग गिरफ्तार हैं जिनमें इस आंदोलन के नेता देवेन्द्र स्वेन के अलावा कैंपेन अगेंस्ट फैब्रिकेटेड केसेज (भुवनेश्वर) के नरेन्द्र मोहंती भी शामिल हैं जो इस इलाके के दौरे पर आए थे। इनके अलावा मुरलीधर साहू, निमाई मलिक, मांगुली कंडी और त्रिनाथ मलिक भी गिरफ्तार हैं। इन्हें घसीटकर पुलिस वाहन में ले जाया गया, परिजनों को बगैर बताये कि उन्हें कहाँ ले जाया जा रहा है, उन्हें अज्ञात स्थान पर रखा गया, और मजिस्ट्रेट के सामने 15 जनवरी को देर रात गये पेश किया गया।
ढिंकिया गाँव में सन्नाटा पसरा है। ढिंकिया समेत पूरे इलाके में भारी पुलिस बल की तैनाती है। आतंकित ग्रामीण अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं। बहुत-से लोग डर के मारे अपने फोन भी स्विच ऑफ किये हुए हैं। बहुत-से लोगों ने अपने घर को बाहर से ताला लगा दिया है और पीछे के दरवाजे से आते जाते हैं।
ढिंकिया में सैकड़ों दलित परिवार हैं जो पान के खेतों में मजदूरी करते हैं या मछली पकड़ते हैं। इनमें से बहुत से लोग पुलिस ज्यादती के शिकार हुए हैं। 6 जनवरी को एक दलित परिवार के छह लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। इनके नाम हैं- शिबा मलिक, शंकर मलिक, कौशल्या पार्बती मलिक, कुसुम मलिक, सरत मलिक, सुजान मलिक और झीनी मलिक।
15 जनवरी को ओड़िशा के संयुक्त किसान मोर्चा की टीम को ढिंकिया में घुसने से रोक दिया गया। टीम के लोग त्रिलोचनपुर की तरफ से ढिंकिया जा रहे थे। वहाँ जाने का मकसद ग्रामीणों के प्रति अपना समर्थन जताना तथा लाठीचार्ज की घटना की जाँच करना था। पचास से साठ लोगों के झुंड ने टीम को रास्ते में रोक दिया, गालियाँ दीं और आरोप लगाया कि मानवाधिकारों की बात करनेवाले लोग ग्रामीणों के लिए परेशानी पैदा कर रहे हैं। उन्होंने टीम को धमकियाँ दीं, गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी। उनके मुँह से आ रही गंध बता रही थी कि वे शराब पीये हुए थे।
संयुक्त किसान मोर्चा की टीम में शामिल थे– महेन्द्र परिदा, प्रफुल्ला सामंतरा, ज्योति रंजन महापात्र, प्रदीप्त नायक, संतोष राठा, जम्बेश्वर सामानतरे, सुजाता साहनी और रंजना पाधी। टीम ने अभयचंदपुर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करायी।
उपर्युक्त बयान जारी करते समय खबर आयी कि पुलिस ढिकिंया में घर-घर दस्तक दे रही है, ग्रामीणों से कह रही है कि वे बाहर आएँ और शांति समिति गठित करें। यह लूट और जबरदस्ती जमीन अधिग्रहण को वैध बनाने का एक तरीका है।
जिन्दल स्टील वर्क के लिए जमीन अधिग्रहण में लगी राज्य सरकार इस पुलिसिया जुल्म के लिए जिम्मेवार है। वह प्रगतिशील संगठनों और व्यापक समाज की अपीलों को लगातार अनसुनी कर रही है।
# राज्य के मानवाधिकार आयोग को मनमाने ढंग से थोपे गये केसों और पुलिस ज्यादती के बारे में अवगत करा दिया गया है।
# कई नागरिक समूहों ने मुख्यमंत्री से अपील की है कि वे पुलिसबल की तैनाती हटा लें, क्योंकि ग्रामीणों ने डर के मारे खुद को घरों में बंद कर रखा है।
# मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की ओड़िशा इकाई ने पुलिस को वहाँ से वापस बुलाने तथा सामान्य स्थिति बहाल करने माँग की है।
# राज्य के राज्यपाल को ओड़िशा के संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से एक अपील दी गयी है।
साझा बयान में ओड़िशा सरकार से माँग की गयी है कि-
1. इलाके से पुलिस बल की तैनाती फौरन हटा ली जाए।
2. हाइकोर्ट के एक जज की अध्यक्षता में एसआईटी गठित करके 4 दिसम्बर से अब तक के घटनाक्रम की जाँच करायी जाए।
3. पोस्को के खिलाफ चले आंदोलन के दौरान और अब जिन्दल स्टील के खिलाफ शुरू हुए आंदोलन के दौरान ग्रामीणों पर लगाये गये आपराधिक केस वापस लिये जाएँ।
4. उन सभी लोगों को फौरन रिहा किया जाए जो न्यायिक हिरासत में हैं।
5. इलाके के पान उगानेवाले किसानों को मुआवजा दिया जाए, जिनके खेतों को पुलिस ने रौंद डाला और खड़ी फसल नष्ट कर दी।
6. पोस्को के लिए ली गयी जमीन लोगों को वापस की जाए।
7. लोगों की भूमि, जीवन और जीविका की रक्षा की जाए।
8. पूर्वी तटीय इलाके की नाजुक पारिस्थितिकी की रक्षा की जाए ताकि जलवायु संकट से निपटने के वैश्विक प्रयासों को बल मिले।
साझा बयान पर हस्ताक्षर करनेवालों में शामिल हैं-
विश्वप्रिय कानूनगो (वकील एवं एक्टिविस्ट), देबरंजन (गणतांत्रिक अधिकार सुरक्षा संगठन), प्रमोदिनी प्रधान (पीयूसीएल, ओड़िशा), शंकर साहू (ऑल इंडिया क्रांतिकारी किसान सभा), श्रीकांत मोहन्ती (चासी मुलिया संघ), महिन्द्रा परिदा (एआईसीसीटीयू, भुवनेश्वर), भालचंद्र सडंगी (न्यू डेमोक्रेसी), सुधीर पटनायक (पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता), रंजना पाधी (नारीवादी कार्यकर्ता एवं लेखिका), सुजाता साहनी (कवयित्री एवं एक्टिविस्ट), प्रमिला बेहेरा (एआईआरडब्ल्यूओ), सब्यसाची (टीयीसीआई, ओड़िशा), तुना मलिक (आदिवासी भारत महासभा ओड़िशा), हेना बरीक (सचिव, बस्ती सुरक्षा मंच, भुवनेश्वर), निगमानन्द सडंगी (लेखक एवं अनुवादक), श्रीमंत मोहन्ती (राजनीतिक कार्यकर्ता, भुवनेश्वर), प्रमोद गुप्ता (राजनीतिक कार्यकर्ता, कोलकाता), वी. गीता (नारीवादी इतिहासकार एवं लेखिका, चेन्नई), कमिटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स, तमिलनाडु, सहेली वुमेन्स रिसोर्स सेन्टर, नयी दिल्ली, पीयूसीएल महाराष्ट्र, फोरम अगेंस्ट आप्रेसन ऑफ वुमेन (मुंबई), स्वाति आजाद (राजनीतिक कार्यकर्ता, भुवनेश्वर), निशा विश्वास (डब्ल्यूएसएस, कोलकाता), सुजाता गोठोस्कर (लेबर राइट्स एक्टिविस्ट, मुंबई), आर्य (लेबर राइट्स एक्टिविस्ट, नयी दिल्ली), वेंकटचंद्रिका राधाकृष्णन, थोझिलालार कूडम, चेन्नई, आलोक लड्ढा (शिक्षक, चेन्नई), संतोष कुमार (वर्कर्स यूनिटी, नयी दिल्ली), अनुराधा बनर्जी (सहेली, नयी दिल्ली), शांभवी (जनरल सेक्रेटरी, कलेक्टिव फेमिनिस्ट्स इन रेजिस्टेंस, कोलकाता), वर्कर पीजेंट स्टूडेन्ट यूनिटी फोरम (कोलकाता), रिवोल्यूशनरी स्टूडेन्ट्स फ्रंट (कोलकाता), इंकलाबी स्टूडेन्ट्स यूनिटी (कोलकाता), टीचर्स अगेंस्ट क्लाइमेट क्राइसिस (टीएसीसी)।