लॉकडाउन से छोटे और मझोले उद्योगों पर सबसे बुरा असर – आरटीआई

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14 मार्च। बीते दो सालों में कोविड-19 महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था में आई मंदी के चलते देश के सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम (एमएसएमई) सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार द्वारा ऋण पुनर्गठन योजनाओं और पैकेज के ऐलान के बावजूद एमएसएमई पर इसकी सर्वाधिक मार पड़ी है।

इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जरिये आरबीआई से मिली जानकारी के हवाले से बताया है कि एमएसएमई की कुल गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) या फंसा हुआ कर्ज सितंबर 2020 में 1,45,673 करोड़ की तुलना में 20,000 करोड़ रुपये बढ़कर सितंबर 2021 में 1,65,732 हो गया। आरबीआई के मुताबिक, एमएसएमई का एनपीए सितंबर 2020 में 8.2 फीसदी के मुकाबले 17.33 लाख करोड़ रुपये के सकल अग्रिम (ग्रॉस एडवांस) का 9.6 फीसदी है। असल में एमएसएमई का एनपीए सितंबर 2019 में 1,47,260 करोड़ रुपये (ग्रॉस एडवांस का 8.8 प्रतिशत) से कम हो गया था, जो 2021 में दोबारा बढ़ गया है।

आरबीआई का कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एमएसएमई एनपीए में 1,37,087 करोड़ रुपये का बड़ा हिस्सा है। सरकारी बैंकों में पीएनबी का सितंबर 2021 तक एमएसएमई एनपीए 25,893 था। भारतीय स्टेट बैंक का 24,394 करोड़ रुपये, यूनियन बैंक का 22,297 करोड़ रुपये और केनरा बैंक का 15,299 करोड़ रुपये का एमएसएमई एनपीए था।

बता दें कि कोई कर्ज उस समय एनपीए में बदल जाता है, जब मूलधन या ब्याज 90 दिनों के बाद भी नहीं चुकाया जाता। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में आरबीआई द्वारा बताया गया है कि जनवरी 2019, फरवरी 2020, अगस्त 2020 और मई 2021 में एमएसएमई के लिए चार कर्ज पुनर्गठन योजनाओं का ऐलान करने के बाद एमएसएमई के एनपीए में बढ़ोतरी हुई है। इन योजनाओं के तहत 1,16,332 करोड़ रुपये के 24.51 लाख एमएसएमई खातों के कर्जों का पुनर्गठन किया गया है।

आरबीआई द्वारा मई 2021 में जारी किए गए सर्कुलर के मुताबिक, आरबीआई की ‘ट्रेंड एंड प्रोग्रेस ऑफ बैंकिंग’ रिपोर्ट के अनुसार 51,467 करोड़ रुपये के कर्ज का पुनर्गठन किया गया. बता दें कि एमएसएमई सेक्टर पर कोरोना की सर्वाधिक मार पड़ी है। केंद्र सरकार द्वारा मार्च 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन लगाने के बाद हजारों की संख्या में एमएसएमई या तो बंद हो गए या उनकी हालत खस्ता हो गई। आरबीआई और केंद्र सरकार ने आर्थिक गतिविधियों में दोबारा जान फूंकने के लिए इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) सहित कई उपाय किए, जिससे एमएमएमई और छोटे कारोबारों को तीन लाख करोड़ रुपये का अनसिक्योर्ड कर्ज मुहैया कराया गया। बैंकिंग सूत्रों का कहना है कि पुनर्गठन योजनाएं और पैकेज का उन हजारों इकाइयों को कोई लाभ नहीं हुआ, जो पहले से ही कर्ज में डूबी हुई थीं।

बताते चलें कि वर्षों से अर्थशास्त्रियों का एक खास वर्ग अर्थव्यवस्था को लेकर लगातार कहते आ रहा है कि भारत में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (एमएसएमई) जगत ने नरेंद्र मोदी सरकार की कई गलत नीतियों के कारण व्यापक नुकसान उठाया है। जिन नीतियों को उन्होंने गलत बताया है, वे नोटबंदी, जीएसटी और कोविड-19 लॉकडाउन रहीं. अब इस बात के प्रमाण भी सामने आए हैं कि महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन ने एमएसएमई क्षेत्र को चौपट कर दिया।

ये दावा बीते महीने जारी एक रिपोर्ट में किया गया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा सरकार के लिए शर्म की बात यह है कि यह डेटा किसी तीसरे पक्ष द्वारा जारी नहीं किया गया था बल्कि, एमएसएमई मंत्रालय के आदेश पर किए गए एक अध्ययन में सामने आया था। फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मुताबिक, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) द्वारा किए गए इस अध्ययन में 20 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में फैले 1,029 एमएसएमई को नमूनों के तौर पर शामिल किया गया था।

मालूम हो कि 27 जनवरी 2022 को प्रस्तुत अध्ययन की रिपोर्ट से पता चलता है कि अध्ययन में जवाब देने वाले 67 फीसदी एमएसएमई वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान तीन महीने से अस्थायी रूप से बंद थे और 50 फीसदी से अधिक इकाइयों ने अपने राजस्व में 25 फीसदी से अधिक की गिरावट का सामना किया। करीब 66 फीसदी उत्तरदाताओं ने बताया कि उनके राजस्व और लाभ में गिरावट आई है।

एमएसएमई क्षेत्र में लॉकडाउन के कारण हुए नुकसान की गंभीरता का आकलन इस बात से लगाया जा सकता है कि बड़ी संख्या में एमएसएमई को सरकार की आपातकालीन ऋण योजना का सहारा लेना पड़ा। अध्ययन से पता चलता है कि सर्वे में शामिल करीब 65 फीसदी एमएसएमई ने आपातकालीन ऋण गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) के तहत लाभ उठाया है और करीब 36 फीसदी ने भी सूक्ष्म और लघु उद्यम ऋण गारंटी फंड ट्रस्ट (सीजीटीएमएसई) के तहत ऋण प्राप्त किया है।

बता दें कि एमएसएमई सेक्टर के लिए कठिन दौर की शुरुआत तब हुई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को अचानक ही नोटबंदी की घोषणा कर दी। इसने अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख दिया और लाखों लघु और संकटग्रस्त एमएसएमई को कारोबार से बाहर कर दिया। नोटबंदी ने असंगठित क्षेत्र को एक बड़ा झटका देते हुए करीब तीन करोड़ लोगों को बेरोजगार कर दिया था, जो भारत में एमएसएमई का एक बड़ा हिस्सा थे।

इसके बाद असफल तरीके से जीएसटी को लागू किया गया। जिसने अनौपचारिक या असंगठित क्षेत्र को बर्बाद कर दिया और सरकार की ओर से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद जब सोचा गया कि चीजें और खराब नहीं हो सकतीं, तो कोरोना महामारी आ गई और राष्ट्रीय लॉकडाउन लग गया।

(MN News से साभार)

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