आपदाओं का वर्ष रहा 2021, औसतन 2.8 लाख लोग रोज निशाना बने

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25 अप्रैल। यदि प्राकृतिक आपदाओं की बात करें, तो वर्ष 2021 आपदाओं का वर्ष रहा, जब उनकी संख्या सामान्य से 22 फीसदी दर्ज की गयी। गौरतलब है कि 2021 में 435 विनाशकारी प्राकृतिक आपदाएँ आयीं, जबकि 2001 से 2020 के बीच इनका औसत 357 घटनाएँ प्रतिवर्ष था। इसका मतलब 2021 में औसत से 78 घटनाएँ ज्यादा दर्ज की गयीं। यह जानकारी इमरजेंसी इवेंट डेटाबेस (ईएम-डेट) में सामने आयी है।

ईएम-डेट द्वारा जारी आँकड़ों के मुताबिक 2021 में कुल 435 प्राकृतिक आपदाएँ रिकॉर्ड की गयीं थी जिसने भारत से लेकर अमेरिका तक सभी देशों में जनजीवन और अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाला था। पता चला है, कि इन आपदाओं के चलते करीब 10.2 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे।

यदि इस आँकड़े को दैनिक आधार पर देखें तो यह करीब 278,904 बैठता है। मतलब इन आपदाओं के चलते हर रोज औसतन 29 लोगों की जान जा रही है, जबकि 2.8 लाख इनसे प्रभावित हो रहे हैं। इन आपदाओं में बाढ़, सूखा, तूफान, भूकंप, दावाग्नि, भूस्खलन, चरम मौसम और ग्लेशियर झीलों के फटने जैसी घटनाएँ शामिल थीं। वहीं 10,492 लोगों की जान गयी थी। इतना ही नहीं, इन आपदाओं के चलते 19.3 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ था। हालांकि देखा जाए तो वास्तविक आँकड़े इससे कहीं ज्यादा हो सकते हैं, क्योंकि यह वो आँकड़े हैं, जो ईएम-डेट ने रिकॉर्ड किये हैं। लेकिन वैश्विक स्तर पर ऐसी बहुत सी प्राकृतिक आपदाएँ हर रोज घटती रहती हैं, जो रिकॉर्ड ही नहीं की जाती हैं।

इतना ही नहीं सूखा, बाढ़ जैसी घटनाओं से वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य आदि को नुकसान पहुँचता है। उसका अनुमान लगाना आसान नहीं है। गौरतलब है कि इससे पहले अंतरराष्ट्रीय बीमा कंपनी म्यूनिख रे द्वारा जारी रिपोर्ट में भी इन आपदाओं में 20.7 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाया था।

हालांकि इसके बावजूद जैसे-जैसे तकनीकी रूप से सुधार हो रहा है, और इन आपदाओं के बारे में समय पर जानकारी मिलने लगी है, उसके चलते इन आपदाओं से होनेवाली मौतों में पहले की तुलना में गिरावट आयी है। यह वजह है कि 2021 में इन आपदाओं के कारण होनेवाली मौतों और प्रभावित हुए लोगों का आँकड़ा पिछले 20 वर्षों के औसत से कम था। इसके बावजूद जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहा है उसके चलते इन आपदाओं की संख्या में भी वृद्धि देखी गयी है, साथ ही इनसे होनेवाले आर्थिक नुकसान में भी बढ़ोतरी हुई है।

यदि महाद्वीपों के आधार पर देखें तो इन आपदाओं का सबसे ज्यादा दंश एशिया को झेलना पड़ा था। पता चला है कि इनमें से करीब 40 फीसदी आपदाएँ अकेले एशिया में दर्ज की गयी थीं। जबकि 49 फीसदी मौतें और कुल प्रभावित 10.2 करोड़ लोगों में से 66 फीसदी एशिया के ही थे। हालांकि अमेरिका को भी इन आपदाओं से कम नुकसान नहीं हुआ है। आँकड़ों के मुताबिक 2021 में जिन दस आपदाओं में सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान हुआ था उनमें से पाँच अमेरिका में दर्ज की गयी थीं। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्थ्या को करीब 8.6 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।

वहीं वैश्विक स्तर पर जो 435 प्राकृतिक आपदाएँ 2021 में समाने आयी थी, उनमें बाढ़ की घटनाएँ सबसे ज्यादा थीं, जिसकी कुल संख्या 223 दर्ज की गयी थी। इसके साथ ही यह पिछले 20 वर्षों में औसतन हर वर्ष सामने आयी बाढ़ की 163 घटनाओं से भी ज्यादा है।

इसी तरह जुलाई में चीन के हेनान प्रान्त में आयी बाढ़ में भारी क्षति हुई थी, जिसमें करीब 352 लोगों की जान गयी थी, वहीं 1.45 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे। इसके साथ ही इसमें करीब 1.3 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ था। इसी तरह जुलाई में अफगानिस्तान के नूरिस्तान में आयी बाढ़ के चलते 260 लोगों की जान गयी थी। जुलाई में, मध्य यूरोप में आयी बाढ़ और उसके बाद भूस्खलन के कारण अकेले जर्मनी में तीन लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ था जोकि 2021 में आयी दुनिया की दूसरी सबसे महंगी आपदा है।

भारत में भी इस दौरान बाढ़, तूफान, भूकंप, भूस्खलन और हिमनद झीलों में आनेवाले बदलावों जैसी 19 आपदाएँ रिकॉर्ड की गयी थीं। जिनमें चमोली में ग्लेशियर टूटने से लेकर बिहार, उत्तराखंड और तमिलनाडु में आनेवाली बढ़ तक शामिल थी। देश में इन आपदाओं में करीब 2,126 लोगों की जान गयी थी, जबकि 38,33, 811 लोग प्रभावित हुए थे। वहीं अर्थव्यवस्था का करीब 60,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। मानसून के दौरान भारत में आयी बाढ़ की ऐसी ही घटनाओं में 1,282 लोगों की जान चली गयी थी।

देखा जाए तो भले ही तकनीकी विकास के चलते साल दर साल इन आपदाओं से होनेवाली मौतों में कमी आ रही है पर जैसे-जैसे जलवायु में बदलाव आ रहा है इन घटनाओं की संख्या में भी इजाफा हो रहा है और इनसे होनेवाला नुकसान भी बढ़ रहा है। आँकड़ों से यह तो स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन का असर अब खुलकर हमारे सामने आने लगा है, जिसके चलते मौसम से जुड़ी आपदाएँ कहीं ज्यादा विनाशकारी रूप लेती जा रही हैं। ऐसे में जरूरी है कि हम इन आपदाओं के लिए पहले ही तैयार रहें। साथ ही वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को कम करने के लिए जल्द से जल्द जरूरी कदम उठायें।

– ललित मौर्य

(Down to earth से साभार)

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