1. नारी का अपराध
उन्हें बगीचों में घूमना मना है,
उन्हें शुद्ध हवा में निकलना मना है।
उनका अकेले निकलना गुनाह है,
उन्हें घर की चारदीवारी के अलावा
बंद सभी राह है।
उनके ऊपर पुरुष का साया जरूरी है।
उन्हें एक मर्द की छाया जरूरी है।
पर पुरुष माने/ऐरा गैरा मर्द नहीं
मित्र नहीं दोस्त नहीं
केवल खाबिंद की ही, हाजिरी जरूरी है,
यह तो मजहबी कानून की मजबूरी है।
उनसे निकाह कबूल कर खुद को गुलाम बना लिया है।
उन्होंने उस कागज पर दस्तखत कर
खुद को जाल में फॅंसा लिया है।
वे दौड़ना चाहें तो भी परदा जरूरी है।
जैसे पालतू पंछी को उड़ने के लिए
पैर में जंजीर जरूरी है।
वे बंद चेहरे के पीछे
छिपी आंखों से ही
दुनिया देख सकती हैं
वे अपनी सुंदरता को छिपाकर ही
दुनिया की सुंदरता देख सकती हैं
उनके लिए अलग कानून कायदे हैं
उन्हें बंधनों और परदों में रहने पर ही फायदे हैं।
उन्हें घर की गाय के लिए चारा ढोना है
उन्हें चूल्हे को जलाने के लिए लकड़ी का गट्ठर ढोना है
परंतु इसके साथ परदा जरूरी है आखिर वो औरत है
उन्हें ही तो मर्यादा जरूरी है।
उन्हें गॉंव की निगाह से बचना है
उनका जीवन जेल से बदतर, एक भयावह सपना है।
वे अल्लाह से शिकायत तो कर सकती हैं
पर मर्द से नहीं, वे भगवान से तो लड़ सकती हैं
पर पति परमेश्वर से नहीं,
वे खुदा से पूछ सकती हैं कि,
मेरा क्या गुनाह था, जो मुझे औरत बनाया
मेरे ही ऊपर क्यों इन बंधनों का जाल लगाया।
वे रो तो सकती हैं,
पर आंसू नहीं बहा सकतीं
वे काबिल तो हैं
पर काबिलियत दिखा नहीं सकतीं
दरअसल उनका गुनाह
उनका नारी होना है
उनके मुकद्दर में तो बस
उन्हें मर्द की दासी होना है।
2. केरलम
केलों की छाया
नारियल की बस्ती
समुद्र की अठखेलियां
लहरों की मस्ती
दूर जहॉं तक नजर दौड़ सकती है
समंदर ही समंदर
विशाल आकाश से मिलता है
सब दूर पानी ही पानी
ऊपर चादर बनकर फैला आकाश
विशाल सागर से जूझता-खेलता
मछुआरा-समुद्र की संतान
बस केवल कट्टूमारान की ही इस
तिलक लगाकर निकल पड़े हैं वैष्णव,
घरों से लेकर मंदिरों तक
गूॅंज रहा
जय शैव-जय शिव
मस्जिदों से गूॅंज रही
अजान
पादरी सिखा रहे
गोस्पेल बाइबिल का ज्ञान
जो सबसे घुलती-मिलती है,
जो,
सबका सत्कार और सबको प्यार करती है
जो जल के सागर
और मानव के आगर को
साथ लेकर चलती है
चहुं ओर हरी-भरी, फलदार वृक्षों से लदी
तेज हवाओं के झोंके फेंकती
वह प्यारी-न्यारी
केरल की धरती है
जहॉं केवलम और कोविलम
जहॉं त्रिवेन्द्रम और अर्णाकुलम
धन्य हो वह धरा बस,
केरलम् केरलम्
3. राष्ट्रवाद
हवाई अड्डों को बेचा है
रेल को भी बेचेंगे
बी.एस.एन.एल. को बंद करेंगे
जीवन बीमा बेचेंगे
खुदरा व्यापार में एफडीआई लाकर
वालमार्ट को दे देंगे
सारे देश को बेच-बेचकर
जय राष्ट्रवाद फिर बोलेंगे।
4. समाजवादी
हम जो समाजवादी हुए
न हिन्दू के रहे – न मुसलमान के रहे
न अगड़े के रहे – न पिछड़ों के रहे
न दोस्त के रहे – न दुश्मन के रहे
न अपनों के रहे – न परायों के रहे।
हम जो समाजवादी हुए
बेकसी व मुफलिसी की जिंदगी जिए,
न गरीब के रहे
न अमीर के रहे।
हम तो ताउम्र
सफर करते रहे।
और आखिरी सॉंस तक
समाजवाद ज़िंदाबाद
इंकलाब ज़िंदाबाद
के नारों को गुॅंजाते रहे।
फखत एक ही कमाई है अपनी,
हम जो बचपन से समाजवादी थे
ताउम्र समाजवादी रहे।