6 अक्टूबर। जन आंदोलनों की राष्ट्रीय पहल के फलस्वरूप नफरत छोड़ो, संविधान बचाओ अभियान शुरू किया गया है। इसके तहत विभिन्न स्तरों पर कई तरह के कार्यक्रम होंगे, पर दो बड़े कार्यक्रम – यात्राओं के – घोषित किए गए हैं। उपर्युक्त अभियान का वक्तव्य और कार्यक्रम की रूपरेखा इस प्रकार है –
हमारा देश ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ लंबे संघर्ष के बाद आजाद हुआ। हमारे संस्थापक पिताओं और माताओं के पास सांप्रदायिक सद्भाव, समानता, न्याय, धर्मनिरपेक्षता, बंधुत्व और लोकतंत्र के मूल्यों पर आधारित भारत का एक दृष्टिकोण था, जो सभी संविधान में निहित थे।
राष्ट्र विभाजन के अंगारों से उभरा, इसके तुरंत बाद गांधीजी की दुखद हत्या हुई। ये दोनों त्रासदियां धार्मिक घृणा और जहर का परिणाम थीं, जो हमारे समाज में धार्मिक दक्षिणपंथी और चरमपंथी संगठनों द्वारा व्यवस्थित रूप से फैलाई गई थी, जो कि फूट डालो और राज करो की ब्रिटिश नीति से सहायता प्राप्त और प्रेरित थी। फिर भी समय के साथ, भारत एक मजबूत जीवंत उदार धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में उभरा। डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान ने मार्गदर्शक प्रकाश प्रदान किया। अब वही भारत, वही ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ खतरे में है।
देश के नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाने और नफरत का जहर फैलाने वाली विभाजनकारी ताकतों को हराने, स्वतन्त्रता आंदोलन के मूल्यों और संवैधानिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करने के लिए भारत के जन संगठनों ने नफरत छोड़ो, संविधान बचाओ अभियान की शुरुआत की है। जिसके माध्यम से हम लोकतंत्र, संविधान तथा देश बचाने के मकसद से एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा करना चाहते हैं। हम मानते हैं कि भाजपा-आरएसएस और कारपोरेट शक्तियों का गठजोड़ ‘फूट डालो, राज करो’ की नीति के माध्यम से आम नागरिकों के रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, रोजगार, महंगाई जैसे बुनियादी मुद्दों की ओर से ध्यान हटाकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के माध्यम से सत्ता में बने रहना चाहता है।
आज भारत का लोकतंत्र और संविधान एक अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहा है। देश में फासीवादी, कट्टरपंथी और दक्षिणपंथी ताकतों की उत्पत्ति और परिणामस्वरूप समाज में हिंसा में वृद्धि ने सबसे कमजोर और हाशिए के समुदायों के जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। लिंग आधारित हिंसा और दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार तेजी से बढ़ रहे हैं। अल्पसंख्यकों पर हमलों ने भय और असुरक्षा का माहौल बना दिया है। देश में सांप्रदायिक नफरत फैलाने और लोगों को धार्मिक आधार पर बांटने का एक व्यवस्थित षड्यंत्र जारी है। तथाकथित ‘धर्म संसदों’ में स्व-घोषित धार्मिक नेताओं, जिनमें कई सत्ताधारी दल से जुड़े हैं, ने खुले तौर पर मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार का आह्वान कर घृणास्पद भाषण देकर नफरत फैलाने का एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। धर्म को नागरिकता का आधार बनाकर, एनआरसी और एनपीआर के साथ नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) ने भारत के संविधान की धर्मनिरपेक्ष संरचना को खतरे में डाल दिया है। अनुच्छेद 370 को निरस्त कर और जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को खत्म कर सरकार ने भारत के संविधान और संघवाद पर हमला किया है।
पिछले कुछ वर्षों से देश में लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला जारी है। न्यायपालिका और निगरानी की अन्य संस्थाओं की स्वतंत्रता गंभीर संकट में आ गई है और संसद के कामकाज के साथ गंभीर रूप से समझौता किया गया है। ईवीएम आधारित वोटिंग और वीवीपैट काउंटिंग, जो मतदाताओं को यह सत्यापित करने का अधिकार नहीं देता है कि उनके वोट अपने इरादे के अनुसार डाले जाएं, डाले जाने के अनुसार रिकॉर्ड किए जाएं और रिकॉर्ड किए जाने के अनुसार गिने जाएं, ने लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया को विकृत कर दिया है। इलेक्टोरल बॉन्ड के साथ सरकार ने चुनावी चंदा में भ्रष्टाचार और अपारदर्शिता को संस्थागत रूप दे दिया है, जिसने राजनीतिक दलों के लिए असीमित अज्ञात चंदा के द्वार खोल दिए हैं, जिससे निगमों को गुप्त रूप से सत्तारूढ़ दल के खज़ाने में काले धन को स्थानांतरित करने की अनुमति मिल गई है। इलेक्टोरल बांड के माध्यम से पार्टियों को मिले दस हजार करोड़ से ज्यादा के चंदे का 90% से अधिक भाजपा को मिला है।
आज संविधान द्वारा गारंटीकृत अभिव्यक्ति- स्वातंत्र्य – बोलने, लिखने, खाने और पहनावे के अधिकार पर प्रत्यक्ष हमला जारी है। सूचना का अधिकार अधिनियम को कमजोर किए जाने से नागरिकों के सरकार से सवाल करने और उसे जवाबदेह ठहराने के लोकतांत्रिक अधिकार पर प्रहार हुआ है। असहमति की आवाज़ को कुचल दिया गया है और उन्हें राष्ट्र-विरोधी करार दिया गया है। जहां कई राजनैतिक कैदी जेल में बंद हैं, वहीं डॉ.नरेंद्र दाभोलकर, कॉमरेड गोविंद पानसरे, प्रो.कलबुर्गी, रोहित वेमुला, गौरी लंकेश, स्टेन स्वामी और पांडू जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय तक ने न्याय की गुहार लगाने वाली तीस्ता सीतलवाड़, आरबी श्रीकुमार, संजीव भट्ट पर मुकदमा दर्ज करवा दिया गया है तथा हिमांशु कुमार पर जुर्माना लगा दिया है।
केंद्र सरकार ने अधिकतम पूंजी, ऊर्जा, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन एवं उच्चतम तकनीक पर आधारित पर्यावरण को नष्ट करने वाले विकास (मोदानी मॉडल) को लागू कर जीविकोपार्जन के स्रोतों को नष्ट कर गैर बराबरी को चरम पर पहुंचा दिया है। एक तरफ अडानी-अंबानी प्रतिदिन दो हजार करोड़ कमा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ 90 करोड़ नागरिक 1 और 2 रुपये किलो के अनाज पर आश्रित रहने को मजबूर कर दिए गए हैं। यह स्पष्ट है कि बेपरवाह सह-पूँजीवाद ने लाखों किसानों और श्रमिकों की कीमत पर कुछ पूँजीपतियों और कॉरपोरेट के समर्थन में जन-विरोधी कृषि कानूनों और श्रम संहिताओं जैसे कानूनों की मदद से आर्थिक असमानता को बढ़ा दिया है। आखिरकार, एक ऐतिहासिक किसान आंदोलन के बाद, जिसमें महिलाओं समेत 715 किसान शहीद हुए, सरकार को किसान-विरोधी, कॉर्पोरेट – समर्थक कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा। सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां, जो भारत के लोगों की सम्पत्ति है, का निजीकरण करने में और अडानी अंबानी के हाथों सौंपने में व्यस्त है, हमारी नदियों, जंगलों और भूमि की विनाशकारी लूट को आसान बनाने के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन प्रक्रियाओं को नष्ट करने की कोशिश कर रही है।
तालाबंदी ने बेरोजगारी और महंगाई को चरम पर पंहुचा दिया है। भारत की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और महंगाई बढ़ी है। इस बढ़ती हुई असमानता से कुछ मुट्ठी भर कार्पोरेटों ने मुनाफा कमाया है। व्यापक भुखमरी, कुपोषण और गरीबी पैदा हुई। अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों, जिनमें से एक बड़ा वर्ग प्रवासी श्रमिक है, की आजीविका नष्ट हो गई है। श्रमिकों के अधिकारों और परिवेश की रक्षा करने वाले कानूनों को निरस्त या कमजोर कर दिया गया है।
नफरत छोड़ो, संविधान बचाओ अभियान स्वतंत्रता आंदोलन, जे पी के नेतृत्व में चले छात्र आंदोलन, एनआरसी के विरुद्ध चले देशव्यापी आंदोलन और संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा चलाए गए किसान आंदोलन से प्रेरणा लेते हुए भारत के लोगों से एकजुट होने और नफरत और हमारे संविधान पर हो रहे हमले के खिलाफ उठ खड़े होने और आवाज़ बुलंद करने का आह्वान करता है।
अभियान के हिस्से के रूप में, दो चरणों में यात्राएँ आयोजित की जााएँगी :
पहला चरण : 2 अक्टूबर (गांधी जयंती) से 26 नवंबर (राष्ट्रीय संविधान दिन)/10 दिसंबर (मानव अधिकार दिवस) तक देश के विभिन्न जिलों में 75 किलोमीटर लंबी जिला-स्तरीय पद यात्राएँ आयोजित की जाएंगी।
दूसरा चरण : दिल्ली चलो यात्रा !
30 जनवरी 2023 ( महात्मा गांधी की 75 वीं शहादत दिन) विभिन्न राज्यों से यात्राएँ 25 जनवरी को दिल्ली के बॉर्डर पर पहुंचेगी, जहां से 26 जनवरी से पदयात्रा करते हुए हम दिल्ली पहुँचेंगे I 30 जनवरी को सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे तक जंतर-मंतर पर जनसभा का आयोजन किया जाएगा और उसके बाद गांधी स्मृति से राजघाट तक महात्मा गांधीजी की 75 वें शहादत दिन के अवसर पर मार्च किया जाएगा।
हमारी मांगें – हमारा संकल्प
– नफरत और हिंसा की राजनीति बंद करो! दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यक समुदायों, महिलाओं और एलजीबीटीक्यूआईए (समलैंगिक) समुदायों के खिलाफ अत्याचार बंद करो! प्रत्येक नागरिक के जीवन के अधिकार का संरक्षण करो!
– धर्म, जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव बंद करो ! सीएए – एनआरसी – एनपीआर बंद करो!
– शिक्षा का साम्प्रदायीकरण बंद करो!
– सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और असहमति की आवाजों पर हो रहे हमले बंद करो! न्याय और समानता के लिए खड़े लोगों को यूएपीए, देशद्रोह और पीएमएलए जैसे कठोर कानूनों का इस्तेमाल कर निशाना बनाना और अन्यायपूर्ण तरीके से जेल में कैद करना बंद करो! राजनीतिक कैदियों को मुक्त करो!
– बिलकिस बानो मामले में दोषियों की रिहाई रद्द करो ! उचित न्याय और सुरक्षा मिले I
– हमारे प्राकृतिक संसाधनों की लूट बंद करो! ग्राम सभाओं और मोहल्ला सभाओं के माध्यम से लोगों की भागीदारी और अधिकार से ही भूमि, जंगल और जल निकायों की रक्षा की जा सकती है। वन संरक्षण कानून के तहत प्रतिगामी वन (संरक्षण) नियम, 2022 को वापस लो। वनाधिकार कानून, पेसा कानून कड़ाई से लागू करो।
– देश में प्रत्यक्ष आर्थिक असमानता को दूर करने, सभी नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए 5% अतिरिक्त कारपोरेट टैक्स और उत्तराधिकार टैक्स लगाओ। सबके लिए सार्वभौमिक बुनियादी आय सुनिश्चित करो। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को सर्व-जन बनाओ और खाद्य सुरक्षा और पोषण सुनिश्चित करने के लिए खाद्य टोकरी का विस्तार करो और सभी के लिए सस्ती कीमतों पर आवश्यक वस्तुएं प्रदान करो! 60 वर्ष से अधिक उम्र के जरूरतमंदों एवं किसानों को प्रति माह 5000 रुपये वृद्धावस्था पेंशन दो! सभी के लिए आवास के अधिकार की गारंटी करो!
– सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के विकृत और अंधाधुंध निजीकरण को बंद करो! पानी, शिक्षा, स्वास्थ और बिजली जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निजीकरण बंद करो! अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं सहित बुनियादी अधिकारों और सेवाओं का सार्वजनिक प्रावधान सुनिश्चित कर शासकीय स्कूल प्रणाली को मजबूत कर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी दो। बजट का 10% शिक्षा पर खर्च करो!
– किसानों की उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित करो! सभी कृषि उत्पादों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की कानूनी गारंटी करो। कृषि भूमि और जंगलों को कॉर्पोरेट को सौंपना बंद करो! किसानों को कर्ज मुक्त करो!
– पर्यावरण संकट से देश को उबारने के लिए वैकल्पिक विकास की नीति लागू करो।
– देश में व्यापक बेरोजगारी संकट से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाओ। रोजगार के अधिकार को संवैधानिक अधिकारों में शामिल करो। मनरेगा योजना के तहत कम से कम 200 दिन का रोजगार, न्यूनतम 500 रूपये की मजदूरी के साथ लागू करो।
– अग्निवीर योजना रद्द करो!
– एमएसएमई, कुटीर उद्योग और ग्रामीण उद्यमों को प्रत्साहन दो। सार्वजनिक क्षेत्र में सभी रिक्त पदों को भरो। मनरेगा के लिए बजट को बढ़ाओ और एक प्रभावी राष्ट्रीय शहरी रोजगार गारंटी कार्यक्रम लागू करो।
– श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करो — प्रगतिशील श्रम कानूनों को पुनः बहाल करो, न्यायिक सुधार लागू करो!
– 4 श्रम संहिताओं को वापस लो! ओल्ड एज पेंशन योजना लागू करो!
– न्यायपालिका और निगरानी के अन्य संस्थानों के कामकाज में कार्यपालिका का हस्तक्षेप बंद करो। इन निकायों में जनता का विश्वास सुनिश्चित करने के लिए इन संस्थानों में सभी नियुक्तियां समयबद्ध और पारदर्शी तरीके से की जाएं।
– लोकपाल, सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीवीसी जैसी जांच और भ्रष्टाचार-विरोधी निकायों की स्वायत्तता से समझौता करके उन्हें पिंजरे का तोता बनाना बंद करो। ईडी, आईटी, सीबीआई एवं अन्य केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग बंद करो! भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, लोकपाल अधिनियम और आरटीआई अधिनियम जैसे कानूनों में प्रतिगामी संशोधनों, जिन्होंने देश में भ्रष्टाचार विरोधी ढांचे को कमजोर किया है, को वापस लो! 2014 में पारित व्हिसल ब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम को लागू करो। 2011 में संसद में पेश किया गया शिकायत निवारण विधेयक को लागू करो!
– जाति जनगणना कराओ! पिछड़े वर्गों को आबादी के अनुपात में आरक्षण दो! सभी रिक्त पदों पर भर्ती करो!
– आरएसएस एवं अन्य सांप्रदायिक संगठनों पर कानूनी प्रतिबंध लगाओ।
– मीडिया की आजादी विविधता और जवाबदेही सुनिश्चित करो!
– मौजूदा रूप में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को तत्काल बंद करो। राजनीतिक दलों के चंदा में पारदर्शिता सुनिश्चित करो — राशि और दानदाताओं के नाम समेत चंदा का विवरण सार्वजनिक करो।
– ईवीएम वोटिंग और वीवीपैट काउंटिंग सिस्टम को फिर से डिजाइन करो ताकि मतदाता यह सत्यापित कर सके कि उनका वोट अपने इरादे के अनुसार डाला जाए; डाले जाने के अनुसार रिकॉर्ड किया जाए, और रिकॉर्ड किए जाने के अनुसार गिना जाए।
हम उक्त मुद्दों पर “नफरत छोड़ो, संविधान बचाओ” अभियान के माध्यम से राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन खड़ा करने का संकल्प लेते हैं। हम सभी समविचारी व्यक्तियों, संस्थाओं, संगठनों एवं पार्टियों से अनुरोध करते हैं कि वे बढ़-चढ़कर इस अभियान में शामिल हों। हम समता, न्याय, बंधुता और पर्यावरण शाश्वतता आधारित समाज और राष्ट्र निर्माण का संकल्प लेते हैं।
आइए हम अपने संविधान, अपने लोकतंत्र की रक्षा, संविधान बचाने और विविधता का सम्मान करने के लिए एकजुट हों! हम आपको इस यात्रा में सह-यात्री बनने के लिए आमंत्रित करते हैं।
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