कला की सेवा और सेवा की कला

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सरदार जसपाल सिंह दुग्गल


— हरीश खन्ना —

हुमुखी प्रतिभा के धनी सरदार जसपाल सिंह दुग्गल एक बहुत ही नेक इंसान हैं। अपनी कला के माध्यम से आज भी अपनी अभिव्यक्ति करते रहते हैं। यह एक बहुत अच्छे चित्रकार, शिल्पकार, मूर्तिकार, पेंटर होने के साथ एक शिक्षाविद भी रहे हैं। समाजवादी विचारों में इनकी आस्था है और जीवन भर समाजवादी विचारों से इनकी प्रतिबद्धता रही है। आचार्य नरेन्द्रदेव और डॉ. राममनोहर लोहिया इनके आदर्श रहे हैं। इन्होंने बहुत सारे महान लोगों की पेंटिंग और कलाकृतियां बनाई हैं। इनके पुराने साथियों में समाजवादी सुरेंद्र मोहन जी, मधु दंडवते, मधु लिमये, राजनारायण, प्रेम भसीन, प्रो. तिलकराज चड्ढा, जस्टिस राजिन्दर सच्चर तथा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से इनका नजदीक का संबंध रहा। टेनिस एसोसिएशन के यह प्रशासक रह चुके हैं और बहुत सारी सिख और सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं तथा एक विद्वान के रूप में भी अपना योगदान देते रहते हैं।

महात्मा गांधी, पेंटिंग : जसपाल सिंह दुग्गल

दुग्गल साहब देश बंटवारे के समय रावलपिंडी से हिंदुस्तान आए थे और देहरादून में बस गए। वहीं पर डीएवी कॉलेज में इन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। ओएनजीसी कंपनी में इन्होंने एक अधिकारी के रूप में काम किया और देहरादून में इन्होंने और इनके साथियों ने एक यूनियन बनाई जिसमें लगभग 2300 लोग मेम्बर थे। इसका खमियाज़ा भी इन्हें भुगतना पड़ा और इन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। जब इन्हें सस्पेंड किया गया तो कंपनी के दो अधिकारी इनके पिता से मिलने आए। यह सोचकर आए थे कि इनके पिता पढ़े-लिखे व्यक्ति है, शायद पुत्र को मना लें, वह माफी मांग लें तो समझौता हो जाए।

इनके पिता ने उनसे पूछा, क्या मेरे बेटे ने कोई जुर्म किया है? क्या कंपनी में कोई फाइनेंशियल हेरफेरी की? अगर की है तो बताओ?

उन्होंने कहा, जसपाल दुग्गल जी वैसे तो बहुत शरीफ और सज्जन हैं। पर न जाने क्यों जब यह स्टेज पर जाते हैं तो इन्हें क्या हो जाता है। इनका रूप बदल जाता है और भयंकर रूप से बोलते हैं, वर्कर्स को भड़काते हैं।

डॉ राममनोहर लोहिया, पेंटिंग : जसपाल सिंह दुग्गल

इनके पिता ने कहा, अपने साथियों के अधिकारों के लिए लड़ना और संघर्ष करना कोई क्राइम नहीं है। यह इनका अधिकार है। इस मामले में मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता। जसपाल दुग्गल को मेरा और परिवार का पूरा समर्थन है।

यह कहकर दुग्गल साहब के पिता ने कहा कि- आई एम टेकिंग माई ड्रिंक। इफ यू वांट, हैव ए ड्रिंक विद मि। आप चाहें तो मेरे साथ ड्रिंक ले सकते हैं।

दोनों अधिकारी निरुत्तर हो गए और चुपचाप वहां से चले गए।

इस बीच यह बैंकाक चले गए और लगभग दस साल वहां रहे। दुग्गल साहब को समाजवाद का चस्का विरासत में मिला। इनके भाई सरदार उपेन्द्र सिंह दुग्गल कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में थे। सुरेंद्र मोहन जी से उनकी मित्रता थी और वे देहरादून में ही थे। उन्हीं के माध्यम से यह भी राजनीति में सक्रिय हुए। अशोक मेहता इनके आदर्श थे। एनजी गोरे का भी बहुत आदर करते थे। समाजवादियों की ‘हिंद मजदूर सभा’ के नेता सरदार हरभजन सिंह सिद्धू से इनकी अच्छी मित्रता शुरू से ही रही है। वह भी अक्सर देहरादून में इनसे संपर्क में रहते थे। सांसद नाथपाई से भी इनकी खूब मुलाकात और मित्रता थी। दिल्ली आकर यह सुरेन्द्र मोहन जी के साथ सक्रिय होकर राजनीति करने लगे। आपातकाल में इनके खिलाफ चार बार गिरफ्तारी के वारंट निकले, पर यह भूमिगत हो गए। पुलिस बार बार इनके घर आती परंतु इनको गिरफ़्तार नहीं कर पायी।

आचार्य नरेंद्रदेव, मूर्तिशिल्प : जसपाल सिंह दुग्गल

आपातकाल समाप्त होने पर जब आम चुनाव हुए तो यह बंगलौर चले गए। वहां इन्हें जार्ज फर्नांडीज के भाई जिनका नाम माइकल था, उनके पास भेजा गया। वह बंगलौर से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे। उनके यहां चुनाव में सुरेन्द्र मोहन जी ने इन्हें भेजा था। माइकल ने कहा कि आप कन्नड़ नहीं जानते, आप किस तरह मेरी मदद करेंगे? इन्होंने कहा, मैं आपके पोस्टर, बैनर से लेकर जितने भी बोर्ड और कटआउट है, वह मैं बना सकता हूं। इस तरह इन्होंने वहां बहुत मेहनत की। उस सीट पर इन्होंने सुषमा स्वराज जो माइकल के चुनाव में अम्बाला से आयी थीं उनकी वहां के मारवाड़ी लोगों से मुलाकात करवाई और उनके साथ मिलकर माइकल के लिए समर्थन मांगा। बंगलौर में रहने वाले सिख और अल्पसंख्यक लोगों से यह लगातार मिलते रहे और माइकल के लिए समर्थन जुटाते रहे। वह सीट बहुत मुश्किल मानी जा रही थी। पर पूरी मेहनत करने पर बहुत कम मार्जिन से, लगभग पांच सौ वोट से वह सीट माइकल जीत गए। इसका श्रेय काफी हद तक उस वक्त लोगों ने इनको दिया। इस तरह निस्वार्थ भाव से जीवन भर समाजवादी विचारों के लिए निरंतर काम करते रहे।

आजकल दुग्गल साहब गुरुग्राम में अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। कभी भी किसी समाजवादी गोष्ठी या कार्यक्रम में इन्हें आप देख सकते हैं जहां यह चुपचाप किसी पद, लालच और शोहरत की आकांक्षा से बहुत दूर, समाजवाद का सपना पाले, गरीब और आम आदमी का किस तरह भला हो, इसके लिए आज भी, उम्र के इस आखिरी पड़ाव में भी, जितना भी संभव हो सकता है अपना योगदान देते रहते हैं। आज की स्वार्थ भरी इस दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग आपको दिखलाई देंगे। वह स्वस्थ रहें , प्रसन्न रहें और दीर्घायु हों।

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