भारत में अमीर गरीब की नित बढ़ती खाई

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— डॉ. लखन चौधरी —

भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी है, लेकिन बेरोजगारी दर पिछले 45-50 साल के चरम पर है। विकास दर के मामले में भारत दुनिया भर में अग्रणी है लेकिन प्रतिव्यक्ति आय ढाई हजार डॉलर से नीचे है। ऑक्सफैम सहित कई एजेंसियों की रिपोर्ट बताती है कि भारत के सबसे अमीर एक फीसदी लोगों के पास देश की कुल संपत्ति के 40 फीसदी से अधिक संपत्ति है, जबकि देश की आधी यानी 50 फीसदी आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का मात्र तीन फीसदी हिस्सा है। 2022 में 88 फीसदी भारतीय अरबपतियों की संपत्ति दुनिया के रईसों से दोगुनी रफ्तार से बढ़ी है। देश के 166 अरबपतियों में से मात्र 21 की संपत्ति 70 करोड़ भारतीयों की कुल संपत्ति से अधिक है।

तात्पर्य यह कि दुनिया की तमाम विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था में आय एवं धन-संपत्ति की असमानता तेजी से बढ़ रही है, जो कि बेहद चिंताजनक है, इसके बावजूद सरकार की चुप्पी समझ से परे है। इधर जाने-माने आर्थिक विशेषज्ञों, सरकार एवं सरकार के नुमाइंदों और बहुत-से अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि 2023 में हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया भर में सर्वाधिक विकास दर वाली अर्थव्यवस्था बनने के साथ सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरेगी और दुनिया भर में छा जाएगी।

इस अनुमान के पीछे का तर्क यह है कि कोरोना महामारी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास दर सर्वाधिक बनी हुई है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक मंदी का असर इसलिए न्यूनतम है, या कम से कम होगा क्योंकि भारतीय बाजारों में मांग लगातार बनी हुई है। कुल मिलाकर 2023 में भारतीय अर्थव्यवस्था की चमक एवं धमक बनी रहने के पूरे आसार दिखलाई देते हैं।

अर्थव्यवस्था के आकार के बारे में तथ्यात्मक आंकड़े हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2019 की तुलना में 2022 में केवल साढ़े सात फीसदी बढ़ी है। इसका अर्थ है कि पिछले तीन सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था की औसत वृद्धि प्रतिवर्ष मात्र ढाई फीसदी रही है, जोकि चीन और अमेरिका की तुलना में बहुत कम मानी जा रही है। यह सच है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 5-6 फीसदी के आसपास बनी हुई है, जो दुनिया भर में सबसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में चिह्नित है। लेकिन चिंता की बात यह है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिका और चीन की हिस्सेदारी लगभग 45 फीसदी है, जबकि भारत की हिस्सेदारी मात्र तीन फीसदी है।

इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 2023 में चुनौतियां बनी रहेंगी। भारत के संदर्भ में हकीकत यह है कि भारतीयों का जीवन स्तर दुनिया के अन्य विकासशील देशों की तुलना में बहुत निम्न स्तर का है। घरेलू जीवन स्तर बढ़ाने के लिए विकास दर द्विअंकीय अधिक होनी चाहिए। इसके लिए उपभोक्ता खर्च और प्रतिव्यक्ति आमदनी बढ़ानी होगी। विरोधाभास यह है कि यहां प्रतिव्यक्ति आमदनी बढ़ने के बजाय कम हो रही है। कोविड-19 के बाद भारतीयों की आमदनी में तेजी से कटौती हुई है। रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए नई परियोजनाओं में निवेश चाहिए, लेकिन निजी निवेश बढ़ नहीं रहे हैं। सरकारी निवेश केवल आधारभूत संरचनाओं में हो रहा है, जहां रोजगार के अवसर पर्याप्त मात्रा में पैदा नहीं हो रहे हैं।

कोरोना कालखण्ड के बाद आई वैश्विक मंदी की वजह से भारत से होने वाले रत्न, आभूषण, इंजीनियरिंग आदि सामानों का निर्यात 20-25 फीसदी घट चुका है। भारतीय अर्थव्यवस्था में छोटे उद्यमियों को प्रभावित करनेवाली थोक मुद्रास्फीति द्विअंकीय बनी हुई है। 8-10 फीसदी सालाना बेरोजगारी की वजह से उपभोक्ता खर्च में बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है। सॉफ्टवेयर निर्यात भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा मजबूत पक्ष रहा है, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका के तकनीकी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर छंटनी की वजह से यह प्रभावित हो रहा है।

किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास के चार महत्वपूर्ण सूत्रधार या चालक अथवा अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने वाले इंजन होते हैं। उपभोक्ता यानी निजी खपत, निवेशक यानी पूंजी निवेश, सरकार यानी सरकारी खर्च और निर्यात। इस समय दो इंजन निर्यात और सरकारी खर्च, कोविड-19 के समय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में मददगार तो रहे हैं, लेकिन दो प्रमुख इंजन पूंजी निवेश और निजी खपत की रफ्तार बहुत सुस्त है। इसलिए सरकार को पूंजी निवेश और निजी खपत पर काम करने की जरूरत है।

इस समय राज्यों और केंद्र का संयुक्त राजकोषीय घाटा जीडीपी के 90 फीसदी से ऊपर बना हुआ है। इसकी वजह से अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ नहीं रहा है। इसके बावजूद तमाम राज्य सरकारें वोटबैंक के लिए संचालित होनेवाली सैकड़ों मुफ्त की योजनाओं के लिए लगातार ऋण ले रही हैं। ऊंची ब्याज दरों की वजह से आवास एवं वाहन ऋण प्रभावित हो रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में पिछले दशक में अमीर-गरीब की खाई तेजी से बढ़ी है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट बताती है कि भारत के सबसे अमीर एक फीसदी लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 40 फीसदी से ज्यादा हिस्सा है, जबकि देश की आधी यानी 50 फीसदी आबादी के पास भारत की कुल संपत्ति का सिर्फ तीन फीसदी है।

2023 में प्राकृतिक विनाश और तबाही से निपटने की चुनौती विकास या अर्थव्यवस्था के लिए संकट पैदा कर सकती है। हिमालयी परिक्षेत्र में जिस तरह से प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं, इससे भारी आर्थिक नुकसान की आशंकाएं हैं। 2023 में भारत दुनिया का सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन रहा है, इसकी वजह से अर्थव्यवस्था के दायित्व बढ़ेंगे। नोटबंदी, मुद्रास्फीति, वित्तीय संघवाद और जीएसटी के आधे-अधूरे क्रियान्वयन के चलते पिछले कुछ सालों में चुनौतियां पैदा हुई हैं। इसका प्रतिकूल असर उपभोक्ता एवं औद्योगिक उत्पादन, निवेश, उपभोग और कारोबारी माहौल पर पड़ रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बढ़ते एनपीए को नियंत्रण में रखना और काले धन की चुनौती अर्थव्यवस्था में लगातार बनी हुई है, जो कहीं से कम होती नहीं दिखाई देती है।

जानकारों का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय अत्यंत नाजुक एवं विरोधाभासी दौर से गुजर रही है, जहां अर्थव्यवस्था को वांछित सरकारी समर्थन एवं निष्पक्ष नीतियों की जरूरत है। बाजार के विकास के लिए उपभोक्ता मांग बढ़ाने की जरूरत है। बेरोजगारी और मुद्रास्फीति की ऊंची दरों को नियंत्रित करते हुए निजी निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है, जिससे युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा हो सकें।

सार यह है कि सर्वाधिक तेज गति से बढ़ने वाली भारतीय अर्थव्यवस्था होने के बावजूद 2023 में भारतीय अर्थव्यवस्था कई आर्थिक मोर्चों पर जूझती रहेगी। विकास या विकास दर के साथ रोजगार और महंगाई में संतुलन बनाये रखना या बनाना 2023 की सबसे बड़ी चुनौती रहने वाली है।

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