— गोपाल राठी —
हमारे संविधान में वयस्क व्यक्ति को अपने वोट के जरिये सरकार चुनने का अधिकार दिया गया है। इसी तरह विवाह की निर्धारित आयु पूर्ण होते ही लड़के लड़की को अपनी मर्जी से जीवन साथी चुनने का अधिकार है। जिसे लड़के लड़की के माता पिता भी नहीं रोक सकते। वयस्क व्यक्ति अपना मत पंथ और धर्म चुनने का पात्र है जिसे कोई कानून या गुरु नहीं रोक सकता।
आज के वयस्क युवा जाति और धर्म की दीवार को तोड़कर अपना जीवन साथी चुन रहे हैं क्योंकि यह अधिकार उन्हें संविधान ने दिया है।
जाति, उपजाति और धर्म की जंजीरों में जकड़े हुए हमारे समाज को यह संवैधानिक अधिकार शूल की तरह चुभता रहा है।
पिछले कुछ वर्षों से हिन्दू लड़कियों द्वारा मुस्लिम लड़कों द्वारा की जा रही शादियों को बड़ा मुद्दा बनाया जा रहा है। इसे लव जेहाद की संज्ञा दी जा रही है। लव जेहाद ध्रुवीकरण का नया हथियार बन गया है। इस मुद्दे पर बनाई गई चर्चित फिल्म ‘केरला स्टोरी’ साम्प्रदायिक एजेंडा को फैलाने में सहायक सिद्ध हुई है। इसकी शुरुआत सबसे पहले प्रधानमंत्री ने कर्नाटक की चुनावी सभा में की। उन्होंने अपनी हर सभा में पार्टी के प्रचार के साथ ही फ़िल्म का प्रचार भी किया। प्रधानमंत्री से प्रेरणा लेकर भाजपा शासित सभी राज्यों ने फ़िल्म को टैक्स फ्री कर दिया। सांसदों, विधायकों और नेताओं ने अपनी ओर से मुफ्त में फ़िल्म दिखाई। देश में पौराणिक और धार्मिक चरित्रों पर भी फ़िल्म बनती रही है लेकिन उन फिल्मों को लेकर संघियों में ऐसा उत्साह कभी नहीं देखा गया जैसा ‘केरला स्टोरी’ और ‘कश्मीर फाइल’ नाम की फिल्मों में देखा गया। क्योंकि यह फिल्में उनके साम्प्रदायिक एजेंडे को पूरा करती हैं और हिंदुओं के मन में मुस्लिमों के प्रति घृणा को स्थायी करती हैं। संघ और भाजपा की पूरी राजनीति हिन्दू मुस्लिम अलगाव और नफरत पर ही आधारित है। उनके लिए आर्थिक सामाजिक मुद्दे गौण हैं।
लव जेहाद और धर्मांतरण ऐसे फर्जी मुद्दे हैं जिसको संघियों ने अपने प्रचार तंत्र के जरिये राष्ट्रीय चिंता का मुद्दा बना दिया है। हिन्दू लड़कियों द्वारा मुस्लिम लड़कों के साथ विवाह कोई अनहोनी घटना नहीं है। फर्क इतना आया है कि पहले यह राजनैतिक उद्देश्य से माता पिता द्वारा करवाई जाती थी तो अब लड़के लड़कियां अपनी मर्जी से कर रहे हैं।
हिन्दू राजाओं द्वारा मुगल बादशाह से अपनी बहन बेटियों के ब्याह कर उनसे रिश्तेदारी कायम करने की मिसाल इतिहास में दर्ज है।
अकबर के शासनकाल में ऐसी कुल 34 शादियां हुई, जहांगीर के वक्त कुल 7, शाहजहां के वक्त 4 और औरंगजेब के वक्त 8, सब मिलाकर 53 शादियां हुईं! यह परस्पर सहमति का रिश्ता था जिसमे जोर जबर्दस्ती कहीं दिखाई नहीं देती। भले ही इसके पीछे राजनीतिक फायदा छुपा हुआ हो।
सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अरुणा आसफ़अली ने ब्राह्मण परिवार में जन्म लेकर आसफअली को अपना जीवनसाथी बनाया । उनका यह साहसिक निर्णय दोनों तरफ के कट्टरपंथियों के लिए एक चुनौती बना रहा।
दोनों ने मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। 1942 में जब सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गए थे तब अरुणा आसफअली ने मुम्बई के गवालिया मैदान में राष्ट्रीय ध्वज फहराने का जो साहसिक कारनामा किया वो इतिहास में दर्ज है।
बांग्लादेश के राष्ट्रीय कवि काज़ी नजरुल इस्लाम को भक्ति और विद्रोह का कवि माना जाता है। नजरुल को प्रमिला नाम की हिंदू लड़की से प्रेम था। दोनों धर्मों के कट्टर लोगों के भारी विरोध के बावजूद उन्होंने यह शादी की।
मुल्लों ने प्रमिला का धर्म परिवर्तन करने का आदेश दिया तो नज़रुल ने साफ मना कर दिया और मुल्लों को फटकार कर भगा दिया।
दिलचस्प है कि नजरुल ने भक्ति साहित्य को जहां कई इस्लामिक मान्यताओं वाली रचनाएं दीं, वहीं देवी दुर्गा की भक्ति में गाया जाने वाला श्यामा संगीत और कृष्ण गीत-भजन की दुनिया को भी उन्होंने समृद्ध किया।
देखने में आ रहा है कि आजकल लड़के लड़कियाँ बाहर रहकर पढ़ाई करते हैं, जॉब करते हैं। साथ-साथ पढ़ते हुए और जॉब करते हुए उन्हें एक दूसरे को समझने का मौका मिलता है। एक दूसरे की पारिवारिक पृष्ठभूमि, रुचियां और आदतों को जानने का अवसर मिलता है। एक दूसरे की अपेक्षाएं और सपनों से रूबरू होते है। उनकी इस दोस्ती और रिलेशनशिप में जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा का कोई अवरोध नहीं होता। असली दिक्कत तब शुरू होती है जब लड़का लड़की शादी करने का निर्णय करते हैं।
हमारा समाज अभी भी उन मान्यताओं से ऊपर नहीं उठ पाया है जब बाल विवाह होते थे। अर्थात रिश्ता घर वाले तय करते थे और बच्चों को आंख बंद करके जीवन भर निबाहना पड़ता था। बाल विवाह की आयु में बच्चों के न कोई सपने होते थे न विचार, क्योंकि वो उनके खेलने कूदने की उम्र होती थी। अरेंज मैरिज में लड़के से ज्यादा उसके परिवार और उसकी हैसियत देखी जाती है ।
अपनी मनपसंद के लड़के से शादी को लव मैरिज कहा जाता है और अगर लड़के का धर्म मुस्लिम हो तो उसे लव जेहाद कहा जाने लगा है। प्यार दो वयस्क व्यक्तियों के बीच का निहायत निजी मामला है जिस पर तीसरे व्यक्ति का कोई दखल नहीं हो सकता।
हिन्दू लड़की द्वारा मुस्लिम लड़के से विवाह की घटनाएं हर युग में होती रही हैं, यह कोई अनहोनी घटना नहीं है। लेकिन यह पूरे देश की कुल आबादी के लिहाज से बहुत कम है। इक्का दुक्का घटनाओं को इस तरह तूल दिया जाता है मानो यह कोई राष्ट्रीय समस्या है या कोई षड्यंत्र है। इस मुद्दे पर जब भी चर्चा होती है तो मेरा पहला प्रश्न यह होता है कि अपने मोहल्ले, नगर, जिले और प्रदेश में पिछले दस सालों में हुए इस तरह के विवाह की सूची बनाओ तो लोग बगलें झांकने लगते हैं। लोग केरल, कश्मीर या कर्नाटक का उदाहरण देने लगते हैं।
मैं ऐसे बहुत से दम्पति को जानता हूँ जिनमें मुस्लिम लड़का और हिन्दू लड़की या हिन्दू लड़का और मुस्लिम लड़की ने विवाह किया है और सुख शांति से रह रहे हैं। उनके परिवार में ईद और होली दिवाली सहित सारे त्योहार बड़े उत्साह से मनाए जाते हैं। भाजपा के कई मुस्लिम नेताओं की बीवी हिन्दू हैं और भाजपा के कई नेताओं ने अपनी लड़की का मुस्लिम लड़के से विवाह किया है।
अभी हाल ही में उत्तराखंड के एक वरिष्ठ भाजपा नेता और नगरपालिका अध्यक्ष ने दोनों परिवारों की सहमति से अपनी बेटी का विवाह एक मुस्लिम लड़के से करने का बाकायदा निमंत्रण पत्र छपवाया। यह विवाह हिन्दू रीति रिवाजों से होने वाला था जिसका विश्व हिंदू परिषद ने कड़ा विरोध किया।
स्वजाति में हो रही बहुत सी अरेंज मैरिज असफल हो रही हैं। लड़कियां हिंसा की शिकार हो रही हैं। आत्महत्या के लिए मजबूर किया जा रहा है या वापिस लौट कर मायके आ रही हैं। इन परिस्थितियों पर भी विचार होना चाहिए । दहेज प्रताड़ना और कन्या भ्रूण हत्या जैसे उदाहरण रोजाना देखने में आ रहे हैं। इनके लिए कौन दोषी है?
एक वयस्क व्यक्ति अगर अपनी मनपसंद सरकार चुनकर, धर्म परिवर्तन करके, अपने मनपसंद लड़का या लड़की से शादी करके अगर धोखा खाता है तो उसका जिम्मेदार वो स्वयं है कोई और नहीं। यह कोई राजनीतिक मुद्दा हो ही नहीं सकता।