— ध्रुव शुक्ल —
पण्डित कुमार गंधर्व भारत के हृदय प्रदेश के देवास शहर में सुदूर कर्नाटक से संयोगवश उस तीस जनवरी को बसने आये जिस दिन महात्मा गांधी की क्रूर हत्या की गयी। वे तपेदिक से जूझ रहे थे और वर्षों तक देवास की आबोहवा के बीच एक पुराने घर के एकांत में मालवा की लोकधुन पर ध्यान लगाकर अपने धुन उगम रागों का अन्वेषण करते रहे। फिर वह संगीत अवतरित हुआ जिसे पूरी दुनिया ने सुना और भारतीय शास्त्रीय संगीत का इतिहास कुमार गंधर्व से पहले और उनके बाद पढ़ा जाने लगा।
क्या भारत भवन के न्यासियों को इस कलाओं के घर की कहानी याद नहीं रही? किसी समय भारत भवन का परिसर कुमार गंधर्व की सादगी से भरी गरिमामय उपस्थिति और उनकी आवाज से गूंजा करता था। वे उसके प्रथम न्यासी थे और मध्यप्रदेश की संस्कृति सलाहकार परिषद के उपाध्यक्ष भी रहे। मध्यप्रदेश की सरकार उन्हें अनेक राजकीय सम्मानों से नवाजते हुए उनके प्रति प्रणम्य बनी रही। देवास कुमार गंधर्व के अप्रतिम सांगीतिक योगदान से भारत का तीर्थस्थल बन गया।
कुमार गंधर्व विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी के शिखर पर विराजी भगवती चामुण्डा के मंदिर की तलहटी में अपने संगीत का न्यारा घर बसाकर रहे। आज जब मध्यप्रदेश सरकार मंदिरों के भव्य कारिडोर करोड़ों की लागत से बना रही है, उसे संगीत का तीर्थ बन गये पण्डित कुमार गंधर्व की जन्मशती पर एक अविस्मरणीय आयोजन करने में संकोच है। 29-30 जुलाई 2023 को भारत भवन में जो आयोजन हो रहा है, वह एक खानापूर्ति भर है। उसका निमंत्रण पत्र देखकर मन खिन्न हो गया।
क्या भारत भवन के न्यासी, जिनमें संगीतकार भी हैं, उन्हें नहीं मालूम कि कुमार गंधर्व के शिष्यों में उनके सुपुत्र मुकुल शिवपुत्र के अलावा मधुप मुद्गल और सत्यशील देशपाण्डे आज भी संगीत साधना और शिक्षण में अपना योगदान दे रहे हैं। कुमार जी के प्रति गहन श्रद्धा रखने वाले अनेक उत्तम संगीतकार भी देश में हैं, जिन्हें इस जन्मशती आयोजन में शामिल करने से समारोह की गरिमा बढ़ती। संगीत के उन जानकार सुधी समीक्षकों को बुलाया जाता जो केवल संत कबीर पर भाषण नहीं, तुलसीदास, मीरा, सूरदास, तुकाराम से कुमार गंधर्व के गहन सांगीतिक रिश्ते पर विमर्श करने में समर्थ हैं।
फिलहाल संतोष के लिए यह ठीक है कि इस दो दिन के बेमन से किये जा रहे जन्मशती आयोजन का शुभारंभ कुमार गंधर्व की पुत्री कलापिनी और पौत्र भुवनेश के गायन से हो रहा है पर कुमार गंधर्व की महिमा का गुणगान केवल इतने से न हो पाएगा। लगता है कि भारत भवन और सरकार के संस्कृति विभाग में श्रेष्ठ सलाहकारों का अभाव है। पता नहीं इस आयोजन की रूपरेखा किस अल्पमति की उपज है। याद आते हैं वे दिन जब भारत भवन पण्डित कुमार गंधर्व और उस्ताद मोहिउद्दीन डागर जैसे संगीतकारों के मशविरे से अपनी संगीत सभाओं और संगीत-विमर्श की रूपरेखा इस तरह तैयार कर पाता था कि भारतीय संगीत व्यापक रसिक समाज की स्मृति में अपनी जगह बनाये रख सके।
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ओ मेरे देश! तेरा क्या नाम रखूॅं?
मुझे तो नामों में रहने की आदत है
किस नाम में रहूॅं
नाम रहते हैं कई नामों में
आकाश में रहूॅं कि आस्मां में रहूॅं
धरती पर बसूॅं कि ज़मीं पे रहूॅं
किसी को अपने पास बुलाऊॅं
तो सखा कहूॅं कि यार कहूॅं
भाषा में बोलूॅं कि ज़ुबां में कहूॅं
आशा करूॅं कि उम्मीद करूॅं
मुझे तो इश्क़ हो जाये अगर मैं प्रेम करूॅं
आवाज़ दूॅं उसे कि पुकारूॅं
खु़दा कहूॅं कि भगवान कहूॅं
उसे स्वर्ग में खोजूॅं कि जन्नत में
प्रार्थना करूॅं कि अजान दूॅं
किस हक़ूमत में रहूॅं किस पे राज करूॅं
हर समय प्यास बहुत लगती है
नीर पिऊॅं कि आब पिऊॅं
मदिरा पिऊॅं कि शराब पिऊॅं
माहताब को चन्द्रमा कहूॅं
कि चन्द्रमा को माहताब कहूॅं
आफ़ताब को सूरज कहूॅं
कि सूरज को आफ़ताब कहूॅं
भाग्य में क्या लिखा है
शायद क़िसमत में लिखा हो
कौन-सा कर्म करूॅं
किस फ़र्ज़ को अदा करूॅं
ढलते दिन को
शाम कहूॅं कि संध्या कहूॅं
उगते दिन को
सुबह कहूॅं कि भोर कहूॅं
ओ मेरे देश!
ओ मेरी जान, मैं तुझसे प्यार करूँ
तेरा क्या नाम रखूॅं?