— सत्यनारायण साहु —
यह बहुत अप्रत्याशित और बहुत असामान्य बात है कि नयी दिल्ली में जी-20 के होने वाले शिखर सम्मेलन के दौरान विश्व नेताओं के लिए 9 सितंबर को आयोजित रात्रिभोज, जो कि सुर्खियों में रहेगा, के लिए निमंत्रण पत्र ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ के बजाय ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ की ओर से जारी किया गया है। हमारे गणतंत्र के इतिहास में ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ की जगह ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ कभी नहीं लिखा गया। अलबत्ता ‘भारत के राष्ट्रपति’ यह पद हिंदी में इस्तेमाल होता आया है। हिंदी में यह पदनाम, जिसका अर्थ संवैधानिक तौर पर “प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया” होता है, हमेशा हिंदी भाषा में बनाए गए निमंत्रण पत्रों या दस्तावेजों में इस्तेमाल होता आया है।
लिहाजा, अंग्रेजी में जारी निमंत्रण पत्र में ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखा होना काफी हैरानी की बात है। यह स्पष्ट नहीं है कि क्या राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनकी ओर से, उनके नाम से जारी किये गए निमंत्रण पत्र पर इन शब्दों (प्रेसिडेंट ऑफ भारत) के इस्तेमाल को औपचारिक मंजूरी दी? लेकिन सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी के नेतागण इस निमंत्रण पत्र के मजमून का खूब प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। ऐसे अवसरों पर राष्ट्रपति भवन से हरी झंडी मिलने के बाद निमंत्रण पत्र विदेश मंत्रालय तैयार करता है।
आरएसएस मुखिया का बयान
यह गौरतलब है कि “प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया” के बजाय “प्रेसिडेंट ऑफ भारत” आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत के उस बयान के दो दिन बाद इस्तेमाल किया गया जिसमें उन्होंने अपील की थी कि इंडिया को भारत कहा जाना चाहिए और भविष्य में यही नाम इस्तेमाल किया जाए क्योंकि प्राचीन काल से यही नाम चला आ रहा है। संभवतः भागवत का बयान इस पृष्ठभूमि में आया था कि 26 विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ने अपना नाम I.N.D.I.A. रख लिया है, जो कि Indian National Developmental Inclusive Alliance के आद्याक्षरों का जोड़ है। इस बात की संभावना है कि जी-20 के मेहमानों को सरकार एक पुस्तिका भेंट देगी – “भारत, द मदर ऑफ डेमोक्रेसी”। और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने “रिपब्लिक ऑफ भारत” पद का भी इस्तेमाल किया है, जबकि अंग्रेजी में “रिपब्लिक ऑफ इंडिया” लिखना ही संवैधानिक तौर पर मान्य है। यह राष्ट्रपति से ताल्लुक रखने वाले संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ जाता है और उस शपथ के भी खिलाफ है जो पदग्रहण के समय हमारे गणतंत्र के सर्वोच्च पदाधिकारी (राष्ट्रपति) लेते हैं।
अंग्रेजी और हिंदी में संवैधानिक प्रावधान
हमारे संविधान का अनुच्छेद 1 कहता है, “इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा।” अनुच्छेद 52 भारत के राष्ट्रपति से ताल्लुक रखता है। इसमें एक “प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया” होगा ऐसा कहा गया है (न कि “प्रेसिडेंट ऑफ भारत”)। और यह अनुच्छेद कहता है कि अंग्रेजी में तैयार किये जाने वाले किसी भी दस्तावेज में “प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया” ही लिखा जाना चाहिए।
बेशक अनुच्छेद 52 के हिंदी संस्करण में कहा गया है कि : “भारत का राष्ट्रपति : भारत का एक राष्ट्रपति होगा (प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया : देअर शैल बी ए प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया)।” इसलिए उचित यही होगा कि निमंत्रण के हिंदी संस्करण में “भारत के राष्ट्रपति” लिखा जाए और अंग्रेजी संस्करण में “प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया”।
निमंत्रण अंग्रेजी और हिंदी में जारी करना प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के समय से ही राष्ट्रपति भवन की रवायत रही है। इस अक्षुण्ण परंपरा की जड़ें संवैधानिक प्रावधानों में हैं जिसके साथ किसी भी राष्ट्रपति ने छेड़छाड़ नहीं की थी। राष्ट्रपति ने शपथ ली होती है कि वह संविधान की रक्षा करेंगे, उसकी हिफाजत करेंगे, उसका संरक्षण करेंगे।
राष्ट्रपति पद की शपथ
हमारे संविधान के अनुच्छेद 60 में वह शपथ बतायी गयी है जो पदभार सॅंभालने से पहले भारत के हर राष्ट्रपति को लेनी होती है। इसके अंग्रेजी संस्करण में “प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया” पद का इस्तेमाल किया गया है, न कि “प्रेसिडेंट ऑफ भारत” का। शपथ का हिंदी संस्करण “भारत के राष्ट्रपति” पद का इस्तेमाल करता है, लेकिन “प्रेसिडेंट ऑफ भारत” का कहीं भी जिक्र नहीं है।
इसलिए राष्ट्रपति को “प्रेसिडेंट ऑफ भारत” लिखना, “प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया” की शपथ के मजमून का सरासर उल्लंघन है।
अंग्रेजी के निमंत्रण में “प्रेसिडेंट ऑफ भारत” लिखना संविधान के अनुच्छेद 52 का उल्लंघन है, जो कहता है कि एक “प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया” होगा।
प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया “संविधान की रक्षा करने, हिफाजत करने और संरक्षण करने” की शपथ से बॅंधे हैं। यह दुखद और स्तब्धकारी है कि एक रात्रिभोज जो सुर्खियों में रहेगा, राष्ट्रपति की ओर से भेजा गया उसका निमंत्रण पत्र न तो अनुच्छेद 52 के अनुरूप है और न ही अनुच्छेद 60 में दी गयी शपथ के अनुरूप। लिहाजा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को संविधान की रक्षा करने की अपनी शपथ के अनुरूप अवश्य कार्रवाई करनी चाहिए और संबंधित अधिकारियों को निर्देश देना चाहिए कि वे निमंत्रण पत्र में हुई त्रुटि को दूर करें।
दरअसल, यह त्रुटि इतनी ध्यान खींचने वाली है कि लगता है यह संविधान का उल्लंघन करने के इरादे से सोच-समझकर की गयी है। भारत के राष्ट्रपति को अपने नाम से जारी एक निमंत्रण पत्र में संविधान को ठेंगे पर रखने की इजाजत क्यों देनी चाहिए? इसे वाजिब कैसे ठहराया जा सकता है, इस बिना पर कि कोई बीस पार्टियों के गठबंधन ने, आद्याक्षरों से बना अपना नाम ‘इंडिया’ रखा है? संविधान सर्वोच्च है और हर हाल में उसकी रक्षा की जानी चाहिए, ताकि हमारे गणतंत्र की शक्ति और गरिमा बनी रहे।
(लेखक राष्ट्रपति केआर नारायणन के विशेष कार्याधिकारी रह चुके हैं)
अनुवाद : राजेन्द्र राजन