हरियाणा चुनाव परिणाम

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ramashankar Singh

— रमाशंकर सिंह —

रियाणा की हार को ईवीएम की रिमोटचलित काल्पनिक गड़बड़ी पर थोपने का अर्थ है कि कांग्रेस अपनी आंतरिक गुटबाज़ी, चुनावी रणनीतिक समझ की कमी, दंभ अंहकार से बजबजाते आंचलिक नेताओं पर अनियंत्रण और व्यापक सामाजिक समूहों के समन्वयपूर्ण बहुमत को कभी समझ भी नहीं पायेगी इसलिये सुधार की संभावना नगण्य ही नजर आ रही है। कांग्रेस अपनी वित्त पोषित संथाओं और व्यक्तियों के न्यस्त स्वार्थ भरे इनपुट से उबरना नहीं चाहती है तो दीगर बात है अन्यथा हार के लगातार इतने मौक़े मिले हैं कि यदि आत्मावलोकन करना चाहती तो अब तक सुधार लागू हो गया होता।

यह कितना हास्यास्पद है कि ईवीएम हरियाणा में सैट कर दी गई और कश्मीर में नहीं। कर्नाटक में सैट नहीं हो पायी और मप्र छग में कर दी गई। अब यह नितांत मूर्खता और निर्लज्जता का प्रमाण सिद्ध हो रहा है। लोकसभा में नहीं हुई लेकिन विधानसभा में हो गई।

कांग्रेस नेतृत्व को मामूली राजनीतिक सुरागदेही भी करनी नहीं आती। उनके लोग कौन कहॉं क्या कर रहे हैं इसका भी भान नहीं हो पाता है।

अब देखिये कि भाजपा और कांग्रेस के बीच हरियाणा में कुल प्राप्त मतों का अंतर मात्र इस बार 0.85% रहा है । भाजपा को कुल वोट मिले हैं 39.94% और कांग्रेस को मिले हैं 39.09% ऐसा कितने ही चुनावों में हुआ है और होता रहता है जब कुल 1% मतों के अंतर से ही सरकार बनती बिगड़ती रही है। यहॉं आप पार्टी को मिले 1.79% वोट बुरे ज़रूर हैं पर कई क्षेत्रों में हारजीत का अंतर 1% भी कुल परिणामों में असर डाल सकता है/था।

एक सुविचारित रणनीति के तहत कांग्रेस के पक्ष में सुनामी तूफ़ान आँधी का प्रचार किया गया और नेतृत्व द्वारा उस पर विश्वास भी कर लिया गया । यह प्रचार किसने किया ? ज़ाहिर है कि कांग्रेस का हुड्डा गुट इसमें शामिल रहा होना चाहिये कि स्पष्ट फ़ायदा तो उन्हीं को मिलता। पर दूसरी कई अन्य शक्तियों द्वारा नियंत्रित लोग भी थे जो सारा दिन सिर्फ़ एक ही काम करते हैं यूट्यूब और टीवी चैनलों पर बैठकर आँकड़ों की चिर-परिचित झूठी जुगाली और मनवांछित नतीजे निकाल कर आपको कुछ समय के लिये भ्रमित कर देना। ये पहले टीवी पर बैठकर सेफोलॉजी का पूर्णकालिक धंधा भी कर चुके हैं।

आप पार्टी या किसी भी छोटे दल से हरियाणा चुनाव में कांग्रेस का समझौता न होने पाये और शैलजा और हुड्डा के बीच टंटा फँसा रहे इसके लिये राहुल गांधी के निकटस्थ होने का दावा करने वाले एक भारत जोड़ो यात्री और आप पार्टी के पूर्व नेता ने गोपनीय ढंग से ओवरटाइम काम किया और पूर्णत: नकारात्मक ! कांग्रेस और आप पार्टी के बीच समझौता होते ही चुनाव पर जो अंतर पड़ता सो तो हार जीत के कुल मतों को देखते ही समझा जा सकता है पर समझौते से इन लोगों के दरवाज़े कांग्रेस में बंद हो सकते थे। वैसे ये लोग कभी पार्षद का भी चुनाव जीत नहीं सकते हैं। पिछले दो चुनावों में कोशिश भी की जहॉं बुरी तरह मुँह की खाई है – ज़मानत ज़ब्त होने से भी बहुत दूर , नतीजतन आंदोलनों में शामिल होकर अपना वही मनपंसद मीडिया पर खुद की छविनिर्माण में व्यस्त होने का विकल्प चुनना पड़ता है।

जब देखा कि आंदोलऩ शिथिल हो रहा है तो लपक कर कमजोर कांग्रेस को ताक़त देने के बहाने फिर से सत्ता का टुकड़ा हड़पने की कोशिश करते हैं। केजरीवाल द्वारा इन्हें बुरी तरह अपमानित कर धकियाया गया था। इस हरियाणा चुनाव में इनका एकमात्र उद्देश्य रहा कि कैसे भी आप पार्टी से समझौता नहीं होने पाये और इसलिये सुनामी तूफ़ान का विमर्श बनाया गया। कुछ हाशिये पर पड़ी मीडिया अज्ञानता और मूर्खतावश भी ऐसा करती रहती है। वे कहते भी हैं कि चुनाव मतगणना के पहले तक हम कांग्रेस को जिताते हैं और हारने पर ईवीएम की चिर-परिचित हायतौबा।

कांग्रेस और भाजपा के बीच कुल मतों का अंतर मात्र 0.85% रहा है , यदि कांग्रेस को मात्र एक प्रतिशत वोट और मिल जाता तो नतीजे एक दम उलट जाते !

मामूली सी यह चीज़ समझ में नहीं आने का अर्थ है कि कांग्रेस अब अपने कथित थिंकटैंक के भीतरघात को देखना नहीं चाहती । ऐसे में आगे भी लगातार इतनी हारें देखना पड़ सकती है कि विश्व रिकॉर्ड बन जायेगा लेकिन किसके नेतृत्व में ?

सुधरो अन्यथा इतिहास के गर्त में खो जाओगे !

नोट: नीचे का फ़ोटो इसलिये चिपकाया है कि मप्र के ख्यात ‘ मिस्टर बंटाढार ‘ ने ऐसा राज किया था दस साल कि पच्चीस साल बाद तक बंदे की एंटीइनकमबैंसी अभी भी बरकरार है। क्या मजाल कि कभी शीर्ष समिति कांग्रेस वर्किंग कमेटी से हट पाये ! जहॉं जिस राज्य में कांग्रेस पंद्रह साल सत्ता से बाहर रही कि फिर लौट नहीं पाती है।

१- जब तक ठेल कर ज़बरदस्ती कर वोटर कांग्रेस को कुर्सी तक नहीं पहुँचा देते तब तक अपने कर्मों से कांग्रेस ना ना करती रहती है कि ‘ भाई अभी हमारे पास पुराना कमाया बहुत है , फ़ालतू मेहनत करने की कोई ज़रूरत नहीं है । मेहनत संगठन और चुनाव कौशल से ही जीतना था तो लगातार हारने की नौबत ही क्यों आती ‘ !

२- बूथवार तो खैर छोड़ ही दीजिये , अंचल और सीटवार भी अनूठी आवश्यक रणनीति बनाने का कांग्रेस में कोई स्थान नहीं है और न ही समझ।

३- जिसे मुख्यमंत्री बनने की ग़लतफ़हमी हो जाये वो सब साधन और कुशलता पार्टी में अपने निकटतम प्रतिद्वंदी के समर्थकों को हराने में लगा देता है !

४- केंद्रीय नेतृत्व सीटवार उम्मीदवार के चयन में शामिल होने को हेठी समझता है और नीचे की कमेटी बंदरबाँट में आदतन माहिर है।

५- जब मर्ज़ी के टिकिट न बँटे तो केंद्रीय शीर्ष नेता उस अंचल में जाने से ही मना कर देता है जैसे राहुल गांधी ने जम्मू को समय नहीं दिया ।

६ – कांग्रेस द्वारा साधन की बहुत कमी का रोनाधोना नाटक अब ख़त्म है , चुनाव आयोग को जमा किये पिछले हिसाब से साफ़ हो जाता है।

७- चुनावों की घोषणा के बाद कोई एक हफ़्ता अमरीका दौरे पर जायेगा तो नतीजा कौन सा अलग होगा ?

८- वाचाल , ग्रामीण मध्यवर्गीय बड़बोला वोटर वर्ग चुनाव में नुक़सान करता है। खुद ही बूथ पर अपने प्रतिपक्षी गुट को गालियाँ दे बेइज्जत कर संगठित कर देता है।

९- पश्चिमी उप्र और हरियाणा में छत्तीस बिरादरी बनाम जाट की टकराहट में जाट अब परास्त होने लगे हैं कि एकता उनमें बची नहीं और अपनी ताक़त का भ्रम कुछ ज़्यादा ही है।

१०- जो मीडियामुखी इंसान अपने पैतृक राज्य हरियाणा के एक गॉंव तक में पचास वोट नहीं डलवा सकता वो दाड़ी बढ़ाये टीवी यूट्यूब पर इतना ज्ञान उडेलता है कि मानो सरकार उसी की भविष्यवाणी से बनती बिगड़ती है।

११- जीता हुआ चुनाव जो हार न जाये वो कैसी कांग्रेस ?

१२- जीता हुये चुनाव से जो सरकार भी पाँच बरस न चला पाये वो कैसी कांग्रेस ?

१३- यदि दस साल कांग्रेस सरकार चल जाये तो एंटीइनकमबैंसी ऐसी बने कि पच्चीस साल फिर लौटकर न आ सके !संदर्भ: मप्र उप्र बिहार बंगाल असम हरियाणा दिल्ली उड़ीसा आदि आदि।

दस साल सिर्फ़ संगठन और विचारकेंद्रित प्रशिक्षण चले , नई पार्टी बने तो भविष्य में कुछ ठोस हो सकेगा वरना LOP से संतुष्ट रहना !

भाग-१
क्रमश:

१४- पराजय या विजय मान कर चलने की मानसिकता का दल बन चुका है कांग्रेस !कार्यकर्ता स्तर पर कुछ नहीं करने व ख़ाली बकवास व गप्प करने की बैठकी होती है इस प्राचीन राजनीतिक पार्टी में। नेता के आने पर कलफ़ खिंची पोशाक के साथ एक फूलों की माला कंधे पर डालकर सामने प्रकट होकर इतनी चापलूसी करेंगें कि नेता को सब ओर निष्ठावान ही दिखें !

१५- अंतिम समय तक सारे पैंतरों व कोशिशों को करने और अंतिम वोटर को लांइन में लगाने और घर छोड़कर आने की व्यवस्था व प्रशिक्षण सिर्फ़ भाजपा में बचा व बना हुआ है । कांग्रेस इतनी महान पार्टी है कि उसे इन सब टंटों में नहीं फँसना होता है।

१६- टॉप लीडरशिप द्वारा किसी एक को सूबा सौंप दिया जाता है कि सब साधन तुम्हीं खर्च करो चुनाव लड़ाओ और यदि जीत गये तो ढाई बरस तक तुम्हीं मुख्यमंत्री बने रहो। फिर किसी की नहीं सुनी जाती सिवाय अपने सूबेदार के चाहे कालांतर में बेड़ा ही गर्क क्यों न हो जाये ? जैसे मप्र में १५ बरस दिग्गी और बाद में आठ साल कमलनाथ के सामने दिल्ली ने किसी को न टिकने दिया ।अब अगर मप्र सफ़ाचट मैदान है तो सिर्फ़ दिल्ली के कारण। इस स्वर्ण पर भ्रष्ट नेताओं का सुहागा खूब फबता है। ढाई साल बाद जो ज़्यादा साधन मुहैया कराये उसी पर आशीर्वाद ।

१७- यथास्थितिवाद पर इतना भरोसा किसी अन्य दल का नहीं हो सकता जो कांग्रेस करती है। यहॉं कहा भी जाता है कि पार्टी और सरकार में पद किसी के मरने पर ही ख़ाली होते हैं अन्यथा नहीं। यही परंपरा चल रही है लगातार इतने सात आठ दशकों से। अब तक धक गयी अब नहीं चलेगी।

१८- मोदी शाह के चुनावी नेतृत्व की एक खूबी भी चाहे अन्य विषयों पर कितने ही असहमत बने रहें कि वे अंतिम क्षण तक मेहनत कौशल साधन और ऐन केन प्रकारेण हर तरह से हर चुनाव को गंभीरता से लेते हैं जब तक कि हार के जबड़े से उसे निकाल न ले आयें।

१८- मैंने हमेशा यह कहा है कि भाजपा अपने सांगठनिक व साधनों के बल पर ५% – ७% तक विरोध को न्यूट्रलाइज करने की क्षमता रखती है। कांग्रेस चुनावों को आँखें खोलकर भी खिसकने देती है और अपने अंतिम ओवरों में विरोधी पार्टी की झोली में डालने में संकोच नहीं करती।

१९- हरियाणा व जम्मू क्षेत्र के इस चुनाव को कांग्रेस ने अंतिम दस दिनों में धीरे धीरे गँवा दिया।इसका भाव होने लगा था और मैंनें स्पष्ट रूप से यह तभी लिख भी दिया था। यदि कश्मीर के चुनावों में एन सी का नेतृत्व ड्राइविंग सीट पर न होता तो वहॉं भी कांग्रेस पीडीपी से भी पीछे रहने में गर्व महसूस करती।

२०- राहुल गांधी और अखिलेश यादव दोनों ही गत लोकसभा चुनावों में प्राप्त अपनी आंशिक सफलता में इतने मदमस्त हो गये कि उन्हें लगना लगा कि अब वे अगले चुनाव में प्रधानमंत्री बन ही गये । भाजपा ने इस लोकसभाई झटके को गंभीरता से लिया और जैसी कि उनकी तैयारी रहती है वे अब कोई कसर उठा कर नहीं रखेंगें।

२१- किस राज्य में अब कांग्रेस छोटे दल के साथ समझौता किये बग़ैर राज्य या केंद्र के चुनाव जीत सकती है? एक भी नहीं। हरियाणा में भी यदि हुड्डा के ग़रूर को दर किनार कर किसी एक या दो छोटे दलों को साथ लिया होता तो इतनी बुरी स्थिति न होती। अगर अभी भी ग़लतफ़हमी बची हो तो एकाध राज्य में और आज़मा लें मसलन दिल्ली ! कांग्रेस ने कहॉं कहॉं अपने केंद्रीय व राज्य नेतृत्व की मूर्खताओं के कारण चुनाव हारे है , इसकी सूची बहुत लम्बी हो जायेगी पर आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुई है कि उनकी सच्ची आलोचना कर सके। जिसने की वही बाहर कर दिया गया।

२२- महाराष्ट्र का चुनाव महत्वपूर्ण है और सामने है । शुक्र है कि कांग्रेस वहॉं अकेले नहीं लड़ेगी लेकिन इसका कोई ठिकाना नहीं है कि अपनी बेवक़ूफ़ी न दोहराये और महाराष्ट्र के दूसरे पार्टनर दलों के बेहतर व भावनात्मक नेतृत्व को सम्मानपूर्वक आगे बढ़ाये। थोड़ी भी चूक यहॉं हुई तो हरियाणा के बाद बढ़े हुये मनोबल की भाजपा उसकी हवा निकाल सकती है।

२३- बराबर महत्व का चुनाव तो झारखंड का भी है और वहॉं भी वही हालात हो सकते हैं।

२४- कभी भी चुनाव हारने पर गांधी नेहरू परिवार ज़िम्मेदार नहीं होता और इसी लिये राज्य वाले भी बच निकलते हैं।

२५- सिवाय हिंदू सांप्रदायिकता और बहुसंख्यक तुष्टिकरण के एक विशेष विषय के किस मायने में भाजपा से कांग्रेस अलग है ? आर्थिक सभी मुद्दों नीतियों पर एक जैसी नीतियों का संरक्षण दोनों दल करते हैं। लागू भी वैसा ही करते हैं। कर्नाटक में १२ घंटे काम करने का आदेश कांग्रेस सरकार ने अभी हाल ही में निकाला है। भ्रष्टाचार पर खूब प्रतिद्वंद्विता है कि कौन आगे निकले ? विपक्ष के नाते कहा तो कुछ भी जा सकता है लेकिन जब व्यवहार की बात आती है तो फिस्स! लोकतंत्र के विस्तार और मज़बूती पर कांग्रेस कैसे भी अपना दामन अभी तक साफ़ नहीं रख पायी है।

२५- कन्हैया कुमार , सुरजेवाला जैसे कई जनाधारमुक्त हवाई भाषणजीवी यहॉं स्टारप्रचारक बन हेलिकॉप्टर में घूमते हैं जैसे कि इनका भाषण सुना और उम्मीदवार के पक्ष में तूफ़ान चल उठेगा।

कितना लिखो ….. !

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