समाजवादी विरासत की साक्षात प्रतिमूर्ति डॉक्टर जीजी पारीख

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GG Parikh

Randhir K Gautam

— रणधीर कुमार गौतम —

दुनिया में दो तरह के लोग राजनीति में आते हैं: एक, कुछ बनने के लिए और दूसरे, कुछ करने के लिए। – डॉक्टर लोहिया

गुणवंतरि गणपतलाल पारिख जिन्हें प्यार से लोग जीजी कहते हैं, समाजवादी स्वतंत्रता संग्राम की उस परंपरा से आते हैं, जिनका जीवन देश सेवा को ही समर्पित रहा है। लगभग हर भारतीय समाजवादी की तरह जीजी पारिख की विचार यात्रा भी मार्क्स से गांधी तक पहुंचने वाली रही है। वे समाजवादी परंपरा की विभिन्न विचारधाराओं के तमाम पहलुओं को जानने और समझने के लिए प्रसिद्ध हैं।

वैसे तो बड़े-बड़े समाजवादी नेता छोटी-छोटी पहचान के लिए सरकार और पार्टी के सामने घुटने टेक देते हैं, लेकिन जी. जी पारिख उस विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनके लिए केवल सामाजिक सेवा और राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम की विरासत ही प्राथमिकता पर रही है। महात्मा गांधी का स्वराज, सत्याग्रह और उससे भी महत्त्वपूर्ण रचनात्मक कार्यक्रम की अवधारणा को उन्होंने अपने जीवन का आधार बनाया।

रचनात्मक कार्यों को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने यूसुफ मेहर अली जैसे संस्थान की स्थापना की, जिसने न जाने कितने समाजसेवियों को शिक्षित, प्रशिक्षित और समाज सेवा की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए तैयार किया। जीजी पारिख अपने एक साक्षात्कार में कहते हैं कि उनके संस्कारों में समाजवादी विचारधारा की गहरी छाप है, जिसमें गांधीजी का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इसका मतलब है कि वे अहिंसक समाजवाद की धारा को अपना आदर्श और प्रेरणा का स्रोत मानते हैं। वे हमेशा अहिंसक समाज के निर्माण के लिए एक पारिस्थितिकी निर्मित करने की बात करते हैं।

वह एक उदाहरण देते हुए कहते हैं कि केवल एटम बम और विश्व युद्ध की बात करने से समस्या का समाधान नहीं होगा। हमें ऐसे प्रयासों का समर्थन करना होगा जो युद्ध और विश्व युद्ध जैसी घटनाओं को रोकें। जीजी पारिख गांधी विचार को जेपी और विनोबा भावे की साधना के रूप में देखते हैं और युवाओं से अपील करते हैं कि वे भी इस विचार परंपरा को आगे बढ़ाएं।

यूसुफ मेहर अली सेंटर मानता है कि जब तक किसी भी समाज की अर्थव्यवस्था, राजनीति और सामाजिक चरित्र अहिंसक नहीं होते, तब तक एक अहिंसक वातावरण की स्थापना करना असंभव-सा प्रयास होगा। यह सेंटर अपने रचनात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से अहिंसक समाज के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने में निरंतर प्रयासरत है।

यूसुफ मेहर अली सेंटर राष्ट्र निर्माण की विचारधारा से जुड़े हर व्यक्ति का स्वागत करता है, जो स्वतंत्रता संग्राम की विरासत को आगे बढ़ाना चाहता है। यूसुफ मेहर अली का नाम इसलिए लिया जाता है क्योंकि वे न केवल स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन पर हम चर्चा कर सकते हैं, बल्कि उनके नाम से मुस्लिम समाज को भी अपने स्वतंत्रता संग्राम के योगदान पर गर्व और प्रेरणा मिलती है। यूसुफ मेहर अली हिंदू-मुस्लिम साझी विरासत के प्रतीक हैं। यूसुफ मेहर अली केंद्र के संविधान में लिखा है कि सब कुछ बदल सकता है लेकिन केंद्र का नाम नहीं बदलेगा।

भारत की राष्ट्रीयता, एकता और अखंडता को सबसे अधिक कमजोर करने वाला पहलू है फिरकापरस्त विचारधारा, जो साझी विरासत को भुला देना चाहती है। इसी कारण कौमी एकता (साम्प्रदायिक सौहार्द) को प्राप्त करना आज भी एक अधूरा कार्य है। विभाजन की पीड़ा और महात्मा गांधी की हत्या जैसी ऐतिहासिक घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि नफरत की विचारधारा इस देश के लिए कितनी खतरनाक है।

यूसुफ मेहर अली सेंटर का एक महत्त्वपूर्ण कार्य हर प्रकार के अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाने की दिशा में प्रयास करना है। जीजी पारिख अपनी विचारधारा में हमेशा व्यक्ति निर्माण को एक बड़ा कदम मानते हैं। वे मार्क्सवादी विचारधारा को, जो समाज निर्माण को व्यक्ति निर्माण से अधिक प्राथमिकता देती है और व्यक्ति निर्माण को उसका परिणाम मानती है, गांधीवादी मूल्यों के आधार पर चुनौती देते हैं।

जीजी पारिख पढ़ने-लिखने और चिंतन-मनन में हमेशा सक्रिय रहे। `जनता’ मैगज़ीन उनका एक अनोखा प्रयास है, जिसके माध्यम से समाजवादी मूल्यों को लोकचेतना का हिस्सा बनाकर नए-नए विमर्शों के रूप में समाज में स्थापित किया गया। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका समर्पण स्पष्ट था, जहां उन्होंने 1950 के दशक की शुरुआत में समाजवादी साप्ताहिक “जनता” का नेतृत्व किया और आज तक इससे जुड़े हुए हैं।

यह मैगज़ीन न सिर्फ समाजवादी विमर्शों को पाठकों के बीच लाने का काम करती है, बल्कि समाजवादी आंदोलन और विचारों के दस्तावेजीकरण में भी इसका एक महत्त्वपूर्ण योगदान है।

इसके साथ ही, वे गांधी के दर्शन से प्राप्त अर्थशास्त्र के सिद्धांत, अप्रोप्रियेट टेक्नोलॉजी, और डॉ. लोहिया के स्मॉल मशीन जैसे विषयों को गहराई से पढ़ते हैं और इन विचारों को सामाजिक निर्माण कार्य से जोड़ते हैं।

इसके अतिरिक्त, वे देश-विदेश से जुड़े विभिन्न लोकतांत्रिक चेतना निर्माण के प्रयासों में भी भाग लेते हैं। यूसुफ मेहर अली सेंटर की स्थापना कर जब जीजी पारिख गांव की ओर लौटे, तो यह महान गांधीवादी परंपरा की याद दिलाती है, जिसमें गांव का निर्माण ही देश निर्माण का सबसे बहुमूल्य साधन माना जाता है।

जीजी पारिख हमेशा कहते हैं कि आंदोलनकारी को टीका-टिप्पणी तो करनी ही चाहिए, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण है कि वह स्वयं आगे बढ़कर समस्या का समाधान खोजने का मार्ग प्रशस्त करे। इस संदर्भ में वे गांधीवादी मूल्य “बी द चेंज दैट यू वांट टू सी इन द वर्ल्ड” को पुनः स्थापित करते हैं।

जीजी पारिख यह भी कहते हैं कि जो समाजवादी यह मानते हैं कि केवल सत्ता से ही सारी समस्याओं का समाधान हो सकता है, उन्हें गांधीवादी दर्शन से सीखने और समझने की आवश्यकता है। वे नाबार्ड जैसी संस्थाओं, बंकर रॉय, अरुणा रॉय, राजेंद्र सिंह, मेधा पाटेकर, और प्रोफेसर आनंद कुमार जैसे व्यक्तित्वों की भूमिका को अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानते हैं। ये सभी लोग सरकार के प्रतिपक्ष के रूप में लोकतांत्रिक, समाजवादी सरकार और समाज निर्माण के लिए निरंतर कार्य कर रहे हैं।

वे युवाओं और नई पीढ़ी में ही उम्मीद देखते हैं। उनका जीवन उस विरासत को जीवंत करता है, जो स्वतंत्रता-पूर्व और स्वतंत्रता-बाद भारत में एक समाजवादी होने को परिभाषित करती है।

यह गर्व की बात है कि जीजी पारिख, जो 1942 के आंदोलन में जेल गए थे, आज भी हमारे बीच हैं और उनका साक्षात्कार करना मेरे लिए गौरव का अनुभव है। 1942 में जीजी पारिख 17 साल के थे, जब उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था। जीजी पारिख इस आंदोलन के दौरान के अनुभवों को याद करते हुए बताते हैं कि जेल में रहते हुए उन्हें कई महान स्वतंत्रता सेनानियों का सानिध्य मिला। उनके साथ समय बिताने से उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और भविष्य में जीजी पारिख बनने की प्रेरणा भी मिली।

जी. पारिख की जीवन यात्रा में 1940 से सौराष्ट्र और मुंबई में छात्र आंदोलन में उनकी भागीदारी, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान दस महीने की कैद, छात्र सहकारी समितियों और उपभोक्ता सहकारी समितियों को प्रोत्साहन देना, 1946 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (CSP) का कैडेट सदस्य बनना और समाजवादी आंदोलन के प्रति उनकी स्थायी प्रतिबद्धता शामिल है। बाद में डॉ जीजी पारिख की जीवन संगिनी बनने वाली मंगला बहन भी 1942 के आंदोलन के दौरान ठाणे जेल में थीं, जबकि डॉ जीजी पारिख वर्ली की अस्थायी जेल में थे। आपातकाल के समय भी जीजी पारिख ,मंगला बहन के साथ जेल में रहे। उनकी बेटी भी उस समय जेल में थी। मंगला बहन को शांतिनिकेतन में दाखिला यूसुफ मेहरअली की वजह से मिला, जो कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य थे।

मेरे लिए जीजी पारिख जैसे व्यक्ति का क्या अर्थ है? वह एक जीवंत और प्रेरणादायक विरासत हैं, जो अपने पूरे जीवन में समाजवादी विचारधारा को सिद्ध करते हुए उसकी मिसाल बने। वह महान समाजवादियों में से एक हैं, जिन्होंने अपने जीवन के माध्यम से अपने विचारों को साकार किया।

“नफरत भारत छोड़ो ” यात्रा जैसे विचार को जीजी पारिख कई सालों से “क्विट इंडिया मूवमेंट ” के विरासत के मार्फत आगे बढ़ा रहे हैं। इसके माध्यम से वे नफरत, भारत को कमजोर करने वाली शक्तियों और अन्याय के खिलाफ जनता में विरोध, संघर्ष और जागरूकता की भावना को जगाने का प्रयास कर रहे हैं।

कभी-कभी मेरे मन में यह ख्याल आता है कि जीजी पारिख जैसे लोग इस देश में अब तक क्यों जीवित हैं? क्या वे इसलिए जीवित हैं ताकि अन्याय, जातिवाद और भेदभाव को अपनी आंखों के सामने होता देख सकें? क्या वे इस गुलामी और असमानता को सहने के लिए जीवित हैं? आखिर क्यों हमारे समाज के वे लोग, जो भारतीयता और राष्ट्रीयता की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, जीजी पारिख के प्रयासों और उनके आग्रह को नहीं सुनते?

धिक्कार है उन लोगों पर, जो आजादी के संग्राम के गीतों को सुनकर तो उत्साहित हो जाते हैं, लेकिन जीजी पारिख जैसे लोगों को अपना आदर्श नहीं मानते। यदि यही जीजी पारिख किसी दूसरे देश में होते, तो उनके पीछे पूरा राष्ट्र खड़ा होता।
चाहे साबरमती आश्रम की बात हो या बनारस में गांधी-विनोबा की विरासत पर बुलडोज़र चलाने का मुद्दा, जीजी पारिख हमेशा कहते रहे कि “मुझे वहां होना चाहिए था।” उनकी उम्र के इस पड़ाव पर भी उनका उत्साह और उमंग हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है।

लेकिन भारत के नागरिक, विशेषकर हम जैसे लोग, अपराधबोध महसूस करते हैं कि हम जीजी पारिख जैसे व्यक्तित्वों का उचित सम्मान नहीं कर पा रहे हैं। उनकी कुर्बानी और संघर्ष का अनादर करना हमारे लिए शर्म की बात है।
किसी भी विचारक, विशेषकर समाजवादी विचारक, के चिंतन का मूल्यांकन उसकी विरासत और प्रभाव से किया जाता है। युसूफ मेहर अली सेंटर के बारे में बात करें तो इसके पीछे डॉ. जीजी पारिख का गहरा प्रभाव दिखता है। युसूफ मेहर अली सेंटर मसूरी समाजवादी विचार शिविरों के आयोजन में अग्रणी भूमिका निभाता रहा है।

जबर सिंह बताते हैं कि उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि बेहद साधारण थी। वे सरकारी स्कूल में पढ़े और कठिन परिस्थितियों के बावजूद समाजवादी शिविरों में भाग लेने के लिए मेहनत कर धन जुटाते थे। पहली बार उनकी बैतूल में समाजवादी प्रशिक्षण केंद्र में प्रशिक्षण लेने के दौरान डॉ. सुनीलम से मुलाकात हुई। शिविर में सुरेंद्र मोहन और मधु दंडवते जैसे विचारकों से संवाद ने उनके विचारों को गहराई दी। समाजवाद, भूमंडलीकरण और जातिवाद जैसे मुद्दों पर उनकी राय इन्हीं अनुभवों से परिपक्व हुई।
जबर सिंह समाजवादी आंदोलन की धारा से प्रभावित होकर रचना और संघर्ष का संतुलन साध कर आंदोलन की धारा को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। समाजवादी शिविरों में मिले प्रेम और प्रेरणा को वे जीवनभर का ऋण मानते हैं और समाजवादी विचारधारा के प्रसार में तन-मन-धन से लगे रहते हैं।

वे राष्ट्र सेवा दल के फुल टाइमर रहे और देशभर के समाजवादी साथियों से जुड़कर लोक शिक्षण और प्रशिक्षण का कार्य करते रहे। उन्होंने सैकड़ों शिविरों का आयोजन किया, जहां हजारों युवाओं और आंदोलनकारियों को प्रशिक्षित किया गया।
युसूफ मेहर अली सेंटर उत्तराखंड में रचनात्मक कार्यों और आंदोलनों की धारा को प्रशिक्षित कर रहा है। जबर सिंह की वैचारिकी में अंबेडकर और समाजवाद दोनों का प्रभाव स्पष्ट है। वे सामाजिक नव निर्माण में दलितों, आदिवासियों, और वंचित वर्गों के मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं।

पत्रकारिता में भी जबर सिंह ने जातिवाद, दलित उत्पीड़न, और महिलाओं के अधिकारों जैसे मुद्दों को उठाया। अमर उजाला में काम करते हुए उन्होंने इन विषयों पर लेखनी के माध्यम से आवाज बुलंद की। डॉ. जीजी पारिख और सुरेंद्र मोहन जैसे समाजवादी विचारकों के साथ बिताए गए समय को जबर सिंह आज भी प्रेरणा का स्रोत मानते हैं। वे अपने विचारों के माध्यम से यह संदेश देते हैं कि चुनावी राजनीति से दूर रहकर भी समाज में बदलाव लाया जा सकता है, बशर्ते आप रचनात्मक कार्य और संगठन निर्माण में लगे रहें।

आज जबर सिंह उत्तराखंड के प्रमुख समाजवादी और सामाजिक कार्यकर्ताओं में गिने जाते हैं। उनका मानना है कि जल, जंगल, और जमीन के सवालों को समाजवादी आंदोलन के केंद्रीय मुद्दों के रूप में लिया जाना चाहिए। उनकी संस्था न केवल प्रशिक्षण केंद्र के रूप में काम कर रही है बल्कि लोगों को आत्मनिर्भर बनाने और रोजगार से जोड़ने में भी सक्रिय है।

जीजी पारिख विभिन्न संस्थानों का गहन अध्ययन करते हैं, खासकर महाराष्ट्र में सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं के प्रयासों से वे भलीभांति परिचित हैं। वे हमेशा वैकल्पिक समाज निर्माण की परंपरा की खोज में रहते हैं। मैं मानता हूं कि यह समाजवादी विचारधारा का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण और लक्ष्य है। पर्यावरण सुधार के प्रयासों में भी उनकी सक्रियता दिखाई देती है, जो 21वीं सदी के समाजवाद की चुनौती और संघर्ष की रूपरेखा तय करने में सहायक है।

जीजी पारिख समाजवादी परंपरा के उन महानायकों में से हैं, जो अतीत की विरासत को संजोते हैं, वर्तमान के संघर्षों में सक्रिय रहते हैं और भविष्य का मार्गदर्शन करते हैं। ऐसे महानायक को प्रणाम, और शुभकामना है कि वे सतायु हों और उनके विचार भी सतायु हों, जो 21वीं सदी के भारत और विश्व के कल्याण में योगदान दे सकते हैं। टूटते और बिखरते समाजवादी आंदोलन को एक सूत्र में बांधने वाले जीजी पारिख एक महान शख्सियत हैं। आइए, 30 दिसंबर 2024 को हम सभी इस महान आत्मा के नाम पर एकत्रित हों और उनके आदर्शों का स्मरण करें।

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