बापू की हत्या हुई तब कविवर श्री बालकृष्णशर्मा नवीन ने एक बड़ी कविता लिखी थी ,
उसका सार यह था >
ऐसे संत-पुरुष के मरने का दु:ख नहीं है ,
दु:ख तो मनुष्य और मनुष्यता के मर जाने का है !
ऐसे रामभरोसे रहने वाले आदमी पर जिन हाथों से गोली चली
क्या वह मनुष्य था ?
क्या उसकी मनुष्यता मर गयी थी ?
लोककवि ने लिखा था >>
महत्मा को अपना निसाना बनाके
किया अंग छलनी तमंचा चला के।
रहे हाथ जोडे खडे वो सभा में
हरेराम हेराम की रट लगा के।
हिला न जालिम का किसलिये दिल
हुए न टुकडे रिवालवर के।
न टूटे क्यों हाथ वो सितमगर
चलाई थीं गोलियां जी-भर के।
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गान्धी किसे अच्छा लगेगा ?
जब स्वतन्त्रता की लडा़ई लड़ी जा रही थी ,
तब महात्माजी सबके लिये अनिवार्य थे ,
किन्तु जब सत्ता पास आती हुई दिखी
तब गान्धी उन सभी सत्ता-प्रार्थियों के लिये अनावश्यक लगने लगे ।
उनकी बातों की उपेक्षा उन्हीं के परिकर में होने लगी ।
गान्धी तो संयम की बात कर रहे थे ,
निर्धन से निर्धन की आवाज उठा रहे थे ,
निर्बलों की आवाज बुलन्द कर रहे थे ।
आज भी आप देख रहे हैं कि भिन्न-भिन्न कोणों से
नाना-प्रकार से गान्धी पर प्रहार हो रहा है ,
क्यों ?
गान्धी को किसने क्या दे दिया ?
गांधी ने किससे क्या ले लिया ?
इसका उत्तर आपको मिलेगा ,
जब हम राजसत्ता और लोक के द्वन्द्व को देखेंगे ,!
लोक का पक्ष गांधी का पक्ष है। गांधी लोकमय हैं।
आज भी किसे जरूरत है गांधी की ?
गांधी तो सत्ता के विकेन्द्रीकरण के प्रतिपादक थे ,
लोकतन्त्र के प्रतिपादक थे । प्रत्येक दल का
हाईकमान चाहता है कि समग्रसत्ता का सूत्र मेरे ही हाथ में रहे !
गांधी कहता है कि बडे भवनों में मत रहना
सामन्ती- ठसक से मत रहना
अब बताओ गान्धी किसे अच्छा लगेगा ?
छोटे-छोटे मन्त्री चाहते हैं कि मैं चलूं तो मेरे साथ कारों का काफिला चले !
बिना जैड-सुरक्षा के इनका जीवन ही खटाई में है !
गांधी ने तो जैड-सुरक्षा मांगी ही नहीं !
गांधी पर आक्रमण भारत की लोकचेतना पर आक्रमण है।
लेकिन लोकचेतना पर कोई क्यों ध्यान देगा, सत्ता के ध्यान से कुछ न कुछ मिलेगा।