— प्रेमकुमार मणि —
वरिष्ठ पत्रकार और हमारे मित्र के विक्रम राव नहीं रहे. उनके बेटे के विश्वदेव राव द्वारा भेजे गए व्हाट्सप सन्देश से यह अफसोसजनक खबर मिली. अभी कल ही पूर्व राष्ट्रपति कलाम पर केंद्रित अपना लेख उन्होंने भेजा था, जिसमें पाकिस्तान को जवाब देने में कलाम की भूमिका पर बात थी. उसके एक रोज पहले योगी आदित्यनाथ के साथ अपनी दो तस्वीरें भेजी थीं. शनिवार को वह उनके साथ थे.
राव साहब लगभग 87 के साल के थे. श्रमजीवी पत्रकारों के अखिल भारतीय फेडरेशन के अध्यक्ष थे. टाइम्स ऑफ़ इंडिया से अपनी पत्रकारिता का आरम्भ किया. समाजवादी आंदोलन में रहे. जार्ज फर्नांडिस के सहयोगी मित्र थे. जैसा कि उन्होंने बताया था जार्ज को 1967 में मुंबई से लोकसभा में खड़ा करवाने में उनकी अग्रणी भूमिका थी. जार्ज ने तब एक दिग्गज कांग्रेस नेता, जिन्हें मुंबई का बेताज बादशाह कहा जाता था, को पराजित किया था. राव आपातकाल में जार्ज के साथ डायनामाइट काण्ड में जेल में भी रहे और उन्हीं के साथ छूटे. इससे अलग वे एक ऐसे पिता के पुत्र थे जिनका पत्रकारिता जगत में बड़ा सम्मान है. नेशनल हेराल्ड के दिग्गज पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू के मित्र के रामाराव उनके पिता थे. इस तरह राव साहब अपने आप में एक संस्था थे. कुछ दिनों पूर्व ही उनसे फोन पर लम्बी बात हुई थी. वह मेरे प्रशंसक और शुभैषी रहे. यह हमारा व्यक्तिगत सम्बन्ध था.
आज जब वह नहीं हैं तब अनेक चीजें याद आ रही हैं. उनसे कई बार फोन पर असहमति जताई. उन्होंने इसका बुरा नहीं माना और संपर्क बनाए रखा. लेकिन यह चीज मेरी समझ में कभी नहीं आई कि समाजवादियों के लोहियावादी घराने का नेहरू विरोध इतना प्रबल क्यों है. अभी इस पर गहराई में नहीं जाऊंगा. मैंने देखा राव साहब भी इस व्याधि से ग्रस्त थे. उनके पिता के सहयोगी चलपती राव ने नेहरू पर शानदार किताब लिखी है. एक संस्मरण लिखा है कि आज़ादी के पूर्व ही नेशनल हेराल्ड अख़बार आर्थिक संकट से गुजर रहा था. उसे कुछ लाख रूपए की दरकार थी. किसी विषय पर नेहरू का एक लेख छपा था. कोई पूंजीपति को वह पसंद था. वह चाहता था इस विषय पर एक श्रृंखला लिखें. इसके एवज में वह अख़बार को एक करोड़ रूपए की राशि देना चाहता था. चलपति राव ने उत्साह के साथ यह खबर नेहरू को दी. नेहरू ने बताया कि उनकी भी इच्छा थी कि इस विषय पर कुछ और लिखूं. लेकिन किसी सेठ महाजन के कहने और प्रोत्साहन से लिखना ठीक नहीं होगा. और कोई जाने न जाने मैं तो जानूंगा कि सेठ के प्रोत्साहन और पैसे की लालच से मैं लिख रहा हूँ. नेहरू ने नहीं लिखा. हेराल्ड से जुड़े पत्रकारों ने सामान्य स्थिति होने तक आधा वेतन लिया. यह चरित्र था नेहरू का. लेकिन लोहियावादियों ने नेहरू को राष्ट्र के शत्रु के तौर पर देखा. और इसके शिकार विक्रम राव जैसे लोग भी होते हैं.
पिछले कुछ वर्षों से राव साहब मोदी साहब की तारीफ़ में किसी भी सीमा तक चले जाते थे. नेहरू परिवार के विरोध मामले में उनका यही हाल था. इन चीजों पर मेरी असहमति होती थी. बावजूद इसके वह मुझे प्रायः फोन करते रहे. नियमित रूप से अपना लिखा व्हाट्सप पर भेजते रहते थे. पिछली बार की बात में तय हुआ था कि लखनऊ आऊंगा तब मिलूंगा. अब कभी मिलना नहीं होगा यह मेरे लिए अत्यन्त दुखद है.
बेटे के भेजे सन्देश के अनुसार उनका पार्थिव शरीर लखनऊ के पैलेस कोर्ट अपार्टमेंट में अंतिम दर्शनों केलिए रखा है उनके बड़े बेटे सुदेव राव पहुँचने वाले हैं. यही होता है. यही जीवन है.
राव साहब को मेरा आखिरी प्रणाम. विनम्र श्रद्धांजलि.
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