खबर मिली कि मुरशिदाबाद जल रहा है! मुर्शिदाबाद के बारे में मीडिया में भयानक खबरें आ रही थीं। इसी वज़ह से लोकतान्त्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान और सद्भावना मिशन ने वहाँ जाकर स्थिति को जानने समझने का फैसला किया। हमारी टीम में आईआईटी दिल्ली से सेवनिवृत प्रोफेसर विपिन कुमार त्रिपाठी (सद्भावना मिशन), मनीषा बनर्जी, शिक्षिका (लोकतान्त्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान), फ़िरोज़ और माणिक ज्योति दास (दोनों स्थानी शिक्षक) और मणिमाला, पत्रकार (लोकतान्त्रिक राष्ट्र अभियान) शामिल हुए। हमने चार मई को दिन भर वहाँ बिताने का फैसला किया।
मौजूद हालातः एक नजर में
हमने पाया कि तोड़फोड़, लूटपाट और हत्या की घटनाएं 11 और 12 अप्रैल के दरम्यान हुई, जब इलाके के मुस्लिम संगठनों ने जुम्मा के नमाज़ के बाद वक़्फ़ संशोधन कानून के खिलाफ़ प्रतिरोध मार्च निकाला तो सब कुछ ठीक था। मार्च समापन को था तभी अचानक धूलियान बाज़ार के इलाके में तोडफोड-लूटपाट शुरू हो गया। सबसे खौफ़नाक रहा तीन जनों की कत्ल की वारदात । लोग परेशान, दुखी थे। बहुत ही ज़्यादा। लेकिन ज़िंदगी आम तौर पर जैसी चलती है, वैसे ही चल रही थी। पटरी पर लौट आने को बेताब। कुछ टूटफूट ठीक करवा लिए गए थे। कुछ यूं ही पड़े थे। जहां कहीं लूटपाट ज़्यादा हुई थी, वे अभी फिर से सामान्य नहीं हो पाए थे। लेकिन लोग खौफ़ज़दा नहीं दिखें। लोगों ने बताया कि तोड़फोड़ लूटपाट मचाने वाले लोग, ज़्यादातर नाबालिग बाहर से आए थे। स्थानीय नहीं थे। तो, आपस में लोगों की नफ़रत को उतनी ज्यादा हवा नहीं मिली कि बात दुश्मनी तक पहुंचे। लेकिन अपेक्षाकृत शांत और मिलजुल कर रहने वाली आबादी में हिन्दू-मुसलमान वाला ज़हर तो रह ही गया है दो दिनों का इस बवाल के बाद। साथ ही अफवाहों का बाज़ार भी गरम है।
हमारा सफ़र
हम अजीमगंज रेलवे स्टेशन से टैक्सी लेकर सबसे पहले धूलियान बाज़ार इलाके में घोशपारा गए। यहीं से उस दिन बवाल की शुरुआत हुई थी। स्थानीय लोग ‘तांडव’ कह रहे हैं। यहाँ हमें एक बड़ा सा मॉल दिखा। यह बंद था। बाहर से दिखा कि तोड़फोड़ मचाई गई थी। मालिक कोई मुसलमान हैं। अभी वो सदमें से बाहर नहीं आ पाए हैं। हमारी उनसे मुलाक़ात नहीं हो पाई। बाहर से टूट फूटा बंद पड़ा मॉल उस दिन के तांडव की कहानी बयां कर रहा था। वहाँ से जाफराबद गए जहां एक पिता-पुत्र की हत्या बड़ी बेरहमी से कर दी गई थी। अंत में हम सूती गए जहां इज़ाज अहमद नाम के 17 साल के बालक की जान फायरिंग में चली गई। लोग कहते हैं कि गोली पुलिस ने चलायी थी।
हमारी पहली बातचीत सोहेल अहमद नाम के एक छात्र से हुई। उसने अभी अभी जादवपुर विश्वविद्यालय से एम फिल किया है। पीएचडी की तैयारी कर रहा है। उसके साथ और भी कई स्थानीय नौजवान और वयस्क मौजूद थे। उन्होंने बताया कि 11 अप्रैल को कई मुस्लिम संगठनों ने वक़्फ़ संशोधन कानून के खिलाफ़ अपना विरोध दर्ज करने के लिए प्रतिवाद मार्च निकाला था। यह मार्च समशेरगंज पुलिस थाना के पास से निकला था। मार्च जब खत्म होने को था तभी भीड़ की एक टूकड़ी ने तोड़फोड़ लूटपाट मचानी शुरू कर दी। इस भीड़ में मुख्य रूप से बहुत ही कम उम्र के लड़के शामिल थे। ज्यादातर नाबालिग, किशोर। वे नहीं जानते थे, या नहीं देख रहे थे दुकानें हिंदुओं की हैं या मुसलमानों की।
पहला निशाना
सबसे पहला निशाना एक बहुमंजिली मॉल बना, जिसका मालिक मुसलमान था। अभी भी वह मॉल उस दिन की गुंडागर्दी के निशान लिए बंद पड़ा था। वहाँ मौजूद कई लोगों ने हमें बुला बुला कर अपने टूटे हुए मकान दूकान दिखाएं। लिस्ट बनाएं तो लंबी बनेगी। ज़्यादातर टूटफूट बाहरी हिस्से में दिख रही थी। कहीं साईन बोर्ड पर निशान थे, तो कहीं रेलिंग और दरवाजों को तोड़ने की कोशिशों के निशान थे। यह साफ समझ में आ रहा था कि यह सब करने वाले हाथ अभी गुंडागर्दी में दक्ष नहीं हुए थे, यह ट्रैनिंग थी। शायद नाबालिग किशोरों की यह पहली ट्रेनिंग रही हो। यह वारदात हवामान में दहशत कम, ज़हर ज़्यादा घोल गया।
लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को पनाह दी
हमें जो भी मिला सबने यही कहा कि ऐसा पहले यहाँ कभी कुछ नहीं हुआ। यहाँ हिन्दू-मुसलमानों की बस्तियां अलग अलग नहीं हैं। सभी एक दूसरे से मिलकर रहते हैं। वे सोच भी नहीं सकते थे कि कभी ऐसा भी होगा। शुभ्रा साह, एक स्थानीय व्यापारी ने अपने घर का टूट फुट, लूटपाट के निशान दिखाते हुए बताया कि उस दिन जब पाँच स्कूली लड़कियां भीड़ में घिर गयीं थीं तो इसी घर में उन्हें बचाकर रखा गया था। ये सभी लड़कियां मुस्लिम समुदाय से थीं और वहाँ तोड़फोड़ कर रहे लड़के भी मुस्लिम समुदाय से ही थे। लेकिन लड़कियों को अपने आशियाने में सुरक्षित रखने वाला यह परिवार हिन्दू है। शाम होने पर जब तांडव रुका तब इन लड़कियों के वालीदान से संपर्क करके, उन्हें बुलाकर सुरक्षित सौंप दिया गया।
घोसपारा से हम जनप्रिय स्वीट्स आए। यह मिठाई की दूकान है। तीन मंजिला । यहाँ काम करने वालों में हिन्दू मुसलमान दोनों हैं। ग्राहकों में भी दोनों ही हैं। दुकान मालिक ने बताया कि ग्राहकों में ज़्यादा हिन्दू है। उनके तीज-त्योहार, पर्व-त्योहारों, पारिवारिक जश्नों में मिठाई की मांग ज़्यादा होती है। इनकी दुकान पर भी हमला हुआ था। फ्रिज, ऐसी, सहित अन्य कई मशीनों और बनी हुई मिठाइयों का भी नुकसान हुआ। इसके मालिक हमायूं मोमिन हमें मिले। मुसकुराते हुए। उन्हें राहत महसूस हो रहा है कि सामान की जो बर्बादी हुई सो हुई, हिन्दू-मुसलमान, नफ़रत और दंगे से तो बच गए। उन्हें पता है कि उनकी दूकान को नुकसान पहुंचाने की कोशिश किसने की थी। किसने पहुंचाई। लेकिन उन्होंने कोई शिकायत दर्ज नहीं कारवाई। क्या फायदा? साथ ही रहना है। कहा ‘जितना माफ़ कर सकें, जितनी जल्दी भूल सकें उतना अच्छा।’ सबके लिए यही अच्छा है। वे और भी कई दूकानों मकानों के नाम बताते हैं जिनका नुकसान हुआ और जिनके मालिक मुसलमान हैं। पर उनकी कोशिश है कि दो दिनों का यह दर्द जीवन भर के दर्द में ना बदले।
जाफराबाद
यहाँ से हम जाफराबाद गए। 12 अप्रैल (शनिवार) को ही एक मकान में तोड़ फोड़ मचाने के बाद भीड़ ने पिता-पुत्र (चंदन दास-गोविंद दास) की हत्या बड़ी बेरहमी से कर दी। घटना के वक़्त पुलिस का कही कोई आता पता नहीं था। dead bodies भी काफ़ी देर वहीं पड़े रहे। पुलिस करीब डेढ़-दो घंटे बाद आई। दहशत का आलम ऐसा था कि कई घरों महिलाएं और बच्चे घर-बार यूं ही छोड़ गंगा नदी पार कर मालदा व अन्य इलाकों में चले गए थे। तृणमूल सांसद अब्बू ताहिर खान और स्थानीय तृणमूल कार्यकर्ताओं और सांसद की मदद और उनके आश्वासन पर कई लौट आए हैं। हम मारे गए पिता-पुत्र के परिजनों से मिलना चाहे थे। पर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता उन्हें इंसाफ दिलाने के आश्वासन पर कोलकाता ले गए थे। हम जब इलाके में ही थे कई दफ़ा अफ़वाह उठी कि कोलकाता में उनके नाम पर बवाल हो गया…। हुआ कहीं भी कुछ नहीं था। कोरी अफवाहें थीं।
आगजनी
कई जगह लोगों ने बताया कि चार पाँच सौ घरों को आग में झोंक दिया गया है। कई लोगों ने बताया कि 40-50 घरों में आग लगाई गई। लोगों और मीडिया के हिसाब से सिर्फ हिंदुओं के घरों को आग के हवाले किया गया। BSF के DIO ने बताया कि 120 के करीब घरों को आग के हवाले किया गया है। उन्होंने समुदाय के हिसाब से जले हुए घरों का ब्योरा देने से माना कर दिया। हमने जले हुए घरों को देखने के लिए दो चक्कर लगाएं। लेकिन हमें एक घर भी ऐसा नहीं मिल जो आगजनी का शिकार हुआ हो।
BSF सीमा सुरक्षा बल और पुलिस
इलाके में लोगों ने यह बात खुल कर कही कि BSF की वर्दी में बगैर जूते और नाम वाली पट्टी के लोग घूम रहे हैं और मुस्लिम परिवारों को धमका रहे हैं। उन्होंने शंका जाहिर की कि कई नॉन बीएसएफ लोग भी वर्दी पहन कर घूम रहे हैं। इससे भी खतरनाक बात यह है कि समाज दो भागों में बँटता दिख रहा है। जहां हिन्दू BSF तैनाती बढ़ाने की मांग कर रहे हैं वहीं मुस्लिमों में उनका खौफ है।
बीएसएफ की मौजूदगी ग्रामीण इलाकों में चप्पे चप्पे पर है। विडंबना यह कि उन्हें पूरी आबादी के रक्षक के रूप में नहीं, सिर्फ हिंदुओं के रक्षक के रूप में देखा जा रहा है। हमें पोस्टर्स भी देखने को मिलें, जिसमें लिखा था, “हम हिन्दू है। हम असहाय हैं। हमे BSF की सुरक्षा चाहिए। जाहिर है ये पोस्टर हिन्दू संगठनों द्वारा लगाए गए हैं।
पुलिस मौके पर मौजूद रहकर भी समय पर सक्रिय नहीं हो रही है। वक़्फ़ संशोधन कानून के खिलाफ़ प्रतिरोध रैलियों के दौरान पुलिस ने मौजूद रहते हुए भी बवाल और तोड़फोड़ एवं हिंसा के वक़्त मौके पर ना तो रोकने की कोई कोशिश की, और ना ही बलवा करने पर कोई कार्रवाई। इलाके में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नजर नहीं आई।
मीडिया की मनमानी
दो दिनों के बवाल ने जन माल का नुकसान तो किया ही किया, सामाजिक ताने बाने को भी बड़ा नुकसान पहुंचाया है। मंदिरों पर हमले हुए, मस्जिदों पर भी हमले हुए। लेकिन मीडिया ने मंदिरों के नुकसान की बात फैलाई, मस्जिदों पर हमले की वारदातों पर चुप्पी साध ली। जैसे पूरे देश में एक ट्रेंड चल रहा है कि मीडिया सिर्फ़ हिंदुओं की बर्बादी पर फोकस करती है यहाँ पर भी वही हो रहा है। सच तो यह है कि हमें भी कहाँ मालूम था कि बर्बादी का कहर दोनों पर बरसा है।
इस झूठ ने पूरे देश में यह गलतफहमी फैलाई कि मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदुओं कि खैर नहीं। जबकि हमने पाया कि मुसलमानों ने इलाके में बहुसंख्यक होने का फ़र्ज़ बखूबी निभाया है। हिन्दू पड़ोसियों की सुरक्षा की है। हिंदुओं ने भी भरसक अपने मुस्लिम पड़ोसियों की मदद की और दिलाशा देने की कोशिश की है। नफ़रत की आग को पूरे मुर्शिदाबाद में फैलने से रोक दिया। बावजूद इसके एक विभाजन रेखा तो खींच ही गई है तुम हिन्दू, हम मुसलमान या इसके उलट।
बलवाइयों में नाबालिग ज़्यादा थे
सारे लोगों ने भी बताया कि भीड़ में शामिल ज़्यादा कम उम्र नाबालिग ही थे। वे बाहर से आए थे। प्रवासी मजदूरों के बच्चे थे। उनकी गरीबी और मजबूरी का फायदा उठाते हुए कुछ लोग उन्हें भीड़ बनाकर ले आए थे। चूंकि वो बाहर से आए थे इसलिए उन्हें यहाँ की स्थानीय आबादी के ताल्लुकात के बारे में मालूमात नहीं था। तो, वे हिन्दू-मुसलमान दोनों के मकानों-दुकानों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे।
राजनीतिक हिंदुवाद
हालांकि यहाँ के सांसद अब्बू ताहिर खान तृणमूल काँग्रेस से हैं, भारतीय जनता पार्टी की भी अच्छी मौजूदगी है। जय श्री राम के नारों और इस तरह के हादसों के जरिए और मजबूत होने की कोशिश में लगी है। उस दिन हमें भी कई दफ़ा जयश्रीराम के उद्घोष सुनने को मिले।
सूती में इज़ाज अहमद की हत्या
इस बलवाई हमले के पहले भी 10 अप्रैल को वक्फ बोर्ड के खिलाफ़ प्रतिवाद मार्च के दौरान दो ग्रुप में भिड़ंत हो गई थी। सूती गाँव इसकी चपेट में था। हम सूती गए। वहाँ एक 17 वर्षीय बालक इज़ाज अहमद की गोलीबारी में मौत हो गई थी। लोग कहते हैं कि वह पुलिस कि गोली से मारा गया। घर में मातम पसार हुआ था । हम घर पर गए तो सही, पर किसी से बात नहीं हो पाई। इज़ाज के पिता बाहर आए। लेकिन मातम में डूबे हुए। बात करने से माना कर दिया।
निष्कर्ष
हमें लगा कि यहाँ हिन्दू-मुसलमान करवाने की कोशिश तो ज़बरदस्त हुई थी। लेकिन लोगों की मिली जुली जरूरतों और सदियों सालों से साथ रहने के अहसासत से उपजी समझदारी ने वैसा होने नहीं दिया। यह समझदारी दिखी कि यहाँ की आबादी एक दूसरे से इतनी गूँथी हुई है और एक दूसरे पर उतनी ही आश्रित भी, कि बर्बाद होंगे तो दोनों। इसीलिए, जो हुआ सो हुआ, अब इसे और नहीं खींचना। सब अपने आप को संभालने की कोशिश में लग गए। तो, इस तरह कोशिशों के बावजूद, कुछ गहरे जख्मों के साथ मुर्शिदाबाद बर्बाद होने से बच गया है। टूटे हुए साईन बोर्ड, खिड़कियों के टूटे हुए शीशे, टेढ़े मेढ़े दरवाज़े बवाल की कहानी अब भी कह रहे थे।
भारतीय जनता पार्टी सहित अन्य हिन्दू संगठन हिंदुओं में यह डर पैदा करने कि कोशिश में लगे हैं कि बहुसंख्यक आबादी मुस्लिम होने की वजह से हिन्दू डर के साये में जी रहे हैं। जबकि यहाँ पहले इस तरह की कोई घटना कभी नहीं हुई। देश भर में मुसलमानों पर हो रहे हमलों, दुकानों-मकानों को बुलडोज़ किए जाने कि खबरों ने मुसलमानों को, बहुसंख्यक होने के बावजूद दहशत के घेरे में घेर रखा है। वक्फ संशोधन कानून की वज़ह से उन्हें अब अपना वजूद पर खतरा महसूस होने लगा है। इसीलिए उन्होंने इसकी मुखालफत में प्रतिरोध मार्च के ज़रिए अपनी बात समाज और सरकार तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। हिंदुओं को यह अच्छा नहीं लग रहा है। इस तनाव का सबसे भयानक पहलू यह है कि 10 से बारह साल के लड़कों को इस पचड़े में घसीटा जा रहा है। बेसहारा, गरीब, मजबूर परिवारों के बच्चों को लालच और डर दिखा कर बलवाई बनाया जा रहा है।
थोड़ा मुर्शिदाबाद के बारे में
मुर्शिदाबाद मुस्लिम बहुल आबादी वाला जिला है। जिले की कुल आबादी 7102 है, जिसमें मुस्लिम 63.67%, हिंदू 35.92% और ईसाई व अन्य 0.23% हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, कुल जनसंख्या 7102 लाख है और साक्षरता दर 63.88% है।
मुर्शिदाबाद कभी रेशमी कपड़ों के उत्पादन और व्यापार का केंद्र हुआ करता था। यह अपने पीतल और कांसे की बनी वस्तुओं के लिए भी जाना जाता था. 1757 में 23 साल के नवाब सिराजूदौला ने मुर्शिदाबाद को बंगाल की राजधानी बनाया था। जब East India कंपनी के ज़रिए अंग्रेज आए तो उन्होंने रेशम और पीतल उद्योग को तहस नहस करके इस इलाके को भूख की कगार पर धकेल दिया। रेशम की जगह रोजी रोटी की तलाश में औरतों ने बीड़ी बनाने का काम शुरू किया। आज यह देश भर में बीड़ी बनाने का सबसे बड़ा केंद्र है। हिन्दू और मुसलमान, दोनों औरते बीड़ी बनाती हैं और कमरतोड़ मेहनत करके परिवार और समाज की जीवन रेखा बनी हुई हैं।
टीमः
मनीषा बैनर्जी (टीम लीडर), शिक्षक, शांतिनिकेतन, लोकतांन्त्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान, प्रो. (सेवनिवृत) विपिन कुमार त्रिपाठी (सद्भावना मिशन), फ़िरोज़ और माणिक ज्योति दास (दोनों शिक्षक, अजीमगंज) और मणिमाला, पत्रकार (लोकतान्त्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान)।
यात्रा और व्यवस्था
प्रो विपिन कुमार त्रिपाठी और मणिमाला अपनी व्यवस्था और जुगाड़ से दिल्ली से कोलकाता 3 मई को पहुंचे। उसी रात कविगुरु एक्सप्रेस से रात भर की यात्रा करके अहले सुबह अजीमगंज पहुंचे। मनीषा ने इसी ट्रेन में बोलपुर से जॉइन किया। अजीमगंज स्टेशन पर चार घंटे इंतजार किया। वही फ़िरोज़ और माणिक लोकल टैक्सी लेकर आए। दिन भर इसी टैक्सी से हम सबने इलाके में घूमने का काम किया। शाम को त्रिपाठी जी मालदा चले गए। बाकी लोग अजीमगंज स्टेशन पहुँचे। ट्रेन आधी रात को थी। तो मनीषा और मणिमाला ने स्टेशन पर करीब चार घंटे फिर इंतजार किया। रात भर की यात्रा के बाद अहले सुबह सियालदह स्टेशन पहुंचे। वहाँ से मनीषा शांति निकेतन और मणिमाला दिल्ली के सफ़र पर निकले। फ़िरोज़ और माणिक हमें अजीमगंज स्टेशन छोड़ कर अपने घरों का रवाना हुए।
दिल्ली से कोलकत्ता का खर्च त्रिपाठी जी और मणिमाला ने अपना अपना किया। कोलकाता से अजीमगंज और अजीमगंज से कोलकाता का स्लीपर क्लास टिकट मनीषा ने दिया। स्थानीय यात्रा के लिए टैक्सी और खानपान की व्यवस्था मनीषा ने अपनी स्थानीय टीम के साथ किया।