आज धरती का बढ़ता तापमान पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय है। धरती पर जीवन ही संकट में है और इसके हल के लिए विश्व के हर नागरिक को जागरूक होना है और अपना योगदान देना है। धरती के बढ़ते तापमान का मुख्य कारण है अंधाधुंध धरती के संसाधनों का दोहन और अपनी सुविधाओं के लिए मनुष्य ने जीवांश फ्यूल का अत्याधिक इस्तेमाल कर धरती के वातावरण में अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड के साथ दूसरे हानिकारक तत्व जमा किए हैं जो प्रकृति के संतुलन बनाने की क्रिया से बहुत अधिक होने की वजह से विपरीत असर डाल रहे हैं। यह प्रक्रिया विश्व औद्योगिकरण क्रांति के समय से शुरू हो कर अब चरम सीमा में पहुंच चुका है। विश्व भर के वैज्ञानिकों बुद्धिजीवियों और समझदार हुक्मरानों ने 1970 के दशक से इसे नियंत्रित करने के लिए समझ बनाई है और सभी के लिए कार्बन डाइऑक्साइड जो धरती के तामपान बढ़ने की मुख्य वजह है को नियंत्रित करने के लिए कार्यक्रम बनाए हैं। पर इसपर कारगर काम नहीं हो रहा है क्योंकि ज्यादातर देश एक दूसरे पर इसको नियंत्रण करने के लिए दबाव बना रहे हैं और विकसित देश जो कि ज्यादातर धरती के संसाधनों का इस्तेमाल कर बढ़ते तापमान में सबसे ज्यादा योगदान कर रहे हैं अपनी कमिटमेंट से किनारा कर रहे हैं और इसमें सबसे ज्यादा अमेरिका जिम्मेदारी से भाग रहे हैं।
भारत ने भी धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के लिए अपनी कमिटमेंट की है और जीवांश ईंधन के इस्तेमाल को घटाने और जीरो कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ोतरी के लिए अपनी सहमति जताई है। बता दें कि कार्बन डाइऑक्साइड को पेड़ विशेषकर जंगल बहुत हद तक अपने में सोखने यानी जमा करने में योगदान करते हैं। और भारत में 1980 के बाद वनों के संवर्धन और सरंक्षण के लिए कदम उठाए हैं और कुछ हद तक कामयाब भी हुए हैं। पर विकास की अंधी दौड़ में वनों पर बहुत दबाव पड़ा है और खेती के साथ दूसरे इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए वनों को काट कर कंक्रीट के स्ट्रक्चर बनाए जा रहे हैं। इसमें बड़े पैमाने पर संतुलन बनाने की जरूरत है।हिमालय भारत के लगभग आधे हिस्से को स्वच्छ जल और वायु के साथ भोजन की जरूरतों को पूरा करता है और यहां के जंगल पूरे देश के पर्यावरण के लिए बहुत ही अहम हैं। विकास की मार हिमालय पर बहुत ज्यादा है इसलिए इसे प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देने की जरूरत है।
वनों को सबसे ज्यादा आज नुकसान जंगलों में आग से होता है। और ज्यादातर आग मनुष्य की गलती से ही लगती है और कई जगह तो लोग खुद जंगलों में आग लगाते हैं। इससे एक तरफ धरती के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के साथ दूसरे हानिकारक तत्व बड़ी मात्रा में मिलते हैं और दूसरी तरफ जंगल की क्षमता में बहुत बड़ी कमी आती है।
जंगलों से यहां स्थानीय लोगों को बहुत लाभ प्राप्त होते हैं और आग लगने से उन्हें विशेषकर गरीब जनता को इससे वंचित होना पड़ता है वहीं स्थानीय लोगों पर पर्यावरण के दूषित होने का स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। सरकार की नीति रही है कि जंगलों की देखरेख में स्थानीय लोग सहयोग करें इसके बदले उन्हें बिना किसी रोक टोक के अपनी जरूरतें पूरी करने दी जाएं।
क्योंकि आग स्थानीय लोगों की गलती से ही जंगलों में लगती है इसलिए स्थानीय लोग अपनी सोच में बदलाब लाएं और जंगलों में आग न लगे इसके लिए अपना योगदान करें। जंगलों मेंज्यादातर आग गर्मियों और सर्दियों में लोग अपने खेतों में झाड़ियां साफ करने के लिए लगाते हैं और खेतों से ही आग जंगल में फैलती है। इसलिए हिमाचल प्रदेश सरकार ने कानून बनाया है कि फायर सीजन 15 अप्रैल से 30 जून या बरसात आने तक जंगल के साथ लगते 100 मीटर तक खेतों में आग नहीं जलाई जाएगी और इसके आगे भी केवल वन विभाग की इजायत से ही आग जलाने का प्रावधान है। पर ऐसा देखा गया है कि लोग इसका पालन नहीं कर रहे हैं और प्रशासन भी इसे लागू नहीं कर पाया है।
पंचायती राज अधिनियम के मुताबिक भी पंचायत की जिम्मेदारी है कि जंगलों को आग से बचाया जाए। आपदा प्रबंध में भी जंगलों की आग को आपदा घोषित किया है और आपदा प्रबंध में भी सभी संस्थाओं और नागरिकों की जिम्मेदारी है कि जंगलों को आग से बचाया जाए। हम पूरे प्रदेश में साथी संस्थाओं और समाज सेवी साथियों के साथ मिलकर इस वर्ष सभी नागरिकों को जागरूक कर रहे हैं कि जंगलों में आग न लगे और यदि किन्हीं कारणों से आग लगती है तो प्रशासन के साथ स्थानीय लोग सहयोग करें और आग पर शीघ्र काबू पाया जाए। जागरूक और जिम्मेदार समाज अपने इलाका को बेहतर बनाता है। इसलिए हमें धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रण करना है तो जंगलों को बेहतर बनाए रखने में अपना योगदान करना है। हमारा जिलाधीश महोदय से निवेदन है कि अपने अधीन सभी अधिकारियों कर्मचारियों के साथ पंचायती राज संस्थाओं को आदेश दिए जाएं कि जंगलों में आग न लगे और यदि लगती है तो इसे काबू करने में भरपूर प्रयास किए जाएं। किसी भी सूरत में जंगलों को सुरक्षित रखा जाना है। वन विभाग के सभी अधिकारियों से भी आग्रह रहेगा कि वे युद्ध स्तर पर जंगलों को सुरक्षित रखने में अपनी भूमिका संजीदगी से निभाएं। आरण्यपाल धर्मशाला से निवेदन है कि वे अपने अधीनस्थ सभी वनमण्डल अधिकारियों को निर्देश दें कि वे सभी कर्मचारियों को आदेश दें कि अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा से निभाएं और जंगलों कोआग से बचाए रखने में स्थानीय निकायों और नागरिकों का वांछित सहयोग सुनिश्चित करें।
जिलाधीश कांगड़ा स्थित धर्मशाला
अरण्यपाल धर्मशाला
प्रधानमुख्य अरण्यपाल हि. प्र.
मुख्य सचिव हि. प्र.
सूचनार्थ एवं आवश्यक करवाई हेतु
डॉ अशोक कुमार सोमल
पूर्व वन मंडलाधिकारी हि. प्र.
एवं पर्यावरण सरंक्षण हितैषी।
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