— प्रोफेसर राजकुमार जैन —
1964 में लोहिया मिसिसिपी अमेरिका में कई कॉलेजों के निमंत्रण पर भाषण देने गए थे। अमेरिका में लोहिया के अनेक अच्छे मित्र थे। इनमें संयुक्त राष्ट्र संघ के एडलाई स्टीवेंसन से लेकर ए,जे मुस्ते सहित कई लोग थे। मिसिसिपी इन दिनों नागरिक अधिकारों के आंदोलन का केंद्र बना हुआ था। वे तुगालू कॉलेज की अध्यक्ष श्रीमती डान बीटेल के मेहमान के रूप में कैंपस में ठहरे हुए थे। बीटेल दंपति जैक्सन हवाई अड्डे पर लोहिया से मिले। उनके साथ एक और अमेरिकी दोस्त श्रीमती रूथ स्टीफन, ग्रीनविच, कनेक्टीकट की प्रसिद्ध कवि तथा उपन्यासकार थी। वे मौरिसन कैफेटेरिया में भोजन करने के लिए रुके। कैफेटेरिया के मैनेजर ने 54 साल के भारतीय (डॉक्टर लोहिया) की काली त्वचा देखकर उन्हें भोजन देने से इनकार कर दिया। वे चुपचाप वहां से चल दिए, लेकिन लोहिया गोरे मैंनेजर से कह गए कि वह अगले दिन फिर लौट सकते हैं।
उस रात तुगालू कॉलेज में वे कई छात्रों से मिले जो नागरिक अधिकारों के आंदोलन में सक्रिय थे। उन्होंने फिर उस रेस्तरां में जाने का फैसला किया हालांकि छात्रों ने कहा कि वहां उनकी गिरफ्तारी हो सकती है। परंतु लोहिया ने कहा अगर अब मैं फिर वहां नहीं जाऊंगा तो यह अहिंसा के सिद्धांत की मेरी धारणा के खिलाफ होगा उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर वे वापस वहां नहीं गए तो इसका मतलब होगा कि मैं वहां जाने से डरा और मैंने स्थानीय अश्वेतों के साथ किए जाने वाले व्यवहार के प्रति पर्याप्त प्रतिबद्धता नहीं दिखाई। वे वहां गए, मॉरीसन के प्रबंधकों को उनकी योजना की पहले से जानकारी दे दी गई और पुलिस तथा प्रेस को भी सूचित कर दिया। जैक्सन के डेली न्यूज़ के किसी व्यक्ति को भनक मिल गई थी कि एक अहिंसक प्रदर्शनकारी की गिरफ्तारी मिसिसिपी में हो सकती है और यह प्रदर्शनकारी भारत में भी इस तरह के प्रदर्शन करता रहा है।
उस अखबार में कैफेटेरिया में हुई घटना का पूरा ब्योरा लोहिया के इंटरव्यू के साथ छपा जो एक असाधारण बात थी। संभवतः इस व्यापक प्रचार का एकमात्र कारण था कि यह एक विदेशी राजनेता का मामला था। प्रेस में इसे जो महत्व दिया गया था वह असाधारण था और खबर में कोई कांट छांट नहीं की गई। पुलिस का व्यवहार भी असाधारण था। उस पर जो रिपोर्ट छपी थी उसके मुताबिक डॉ लोहिया रेस्टोरेंट में आए जैसा कि उन्होंने पहले घोषणा कर रखी थी। धोती और चप्पल पहने हुए जैसे ही वे अंदर जाने लगे, कैफेटेरिया के प्रबंधक ने कहा हमें आपका बिजनेस नहीं चाहिए यह निजी संपत्ति है हमें आपका बिजनेस नहीं चाहिए। मैं आपसे कहता हूं आप चले जाइए। डॉ लोहिया ने जवाब दिया मैं नहीं जाऊंगा। पुलिस लेफ्टिनेंट सी,आर, विल्सन ने लोहिया से पूछा, आपने मैनेजर की बात सुनी? वह आपसे जाने के लिए कह रहा है। मेहरबानी कर यहां से चले जाइए। जब डॉक्टर लोहिया ने कहा कि वह कैफेटेरिया छोड़कर नहीं जाएंगे तो विल्सन ने कहा मुझे खेद है कि मुझे आपको गिरफ्तार करना पड़ेगा। इसके बाद लोहिया को पैडीवैगन ,(कैदियों को ले जाने वाली पुलिस की लारी) में बैठाया गया।
उसका पिछला दरवाजा बंद किया गया ओर उस पर ताला लगा दिया गया पुलिस अपने कैदी को लेकर चल दी। लेकिन वे जेल नहीं गए। पुलिस ने लगभग एक घंटा उन्हें शहर में घुमाया, तब शायद मिसिसिपी के अधिकारी यह फैसला कर रहे थे कि कैदी को जेल में डाला जाए या नहीं। शायद पुलिस ने वाशिंगटन से भी संपर्क किया। काफी समय इस तरह बीता और आंदोलन के कुछ लोगों ने व्यंग्य किया कि वाशिंगटन इस बात का पूरा ध्यान रख रहा है कि लोहिया जेल से बाहर रहे लेकिन यह अमेरिकी नागरिक के लिए ऐसा कभी नहीं करेगा। पुलिस ने लोहिया को कैफेटेरिया से कई ब्लॉक दूर छोड़ दिया। लोहिया बहुत शांत थे ओर इस बात के लिए बिल्कुल लापरवाह थे कि अधिकारी उन्हें जेल में डालते हैं या नहीं।
जैक्सन डेली न्यूज़ में लोहिया की कई टिप्पणियां प्रकाशित की जिसमें लोहिया ने कहा था मैं आमतौर पर उस राज्य से बाहर चला जाता हूं जहां मुझे पसंद नहीं किया जाता। लेकिन अमेरिका में इस समय जो कुछ हो रहा है उसमें मैं ऐसा करता तो यह अन्याय और अत्याचार को बढ़ावा देना होता। अगर मैं सार्वजनिक स्थान में दाखिल होकर कानून का उल्लंघन कर रहा हूं तो मैं उम्मीद करुंगा कि मेयर मुझे गिरफ्तार करें और मेरे मन में उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं होगी। यह काम में मानव होने के नाते गोया में एक अमेरिकन नागरिक हूं, करूंगा। इसलिए मैं इसकी सूचना अपने दूतावास या संसद को नहीं दूंगा। इस तत्व के अलावा मुझे अपने काम का औचित्य सिद्ध करने की जरूरत नहीं, कि मैं सिविल नाफरमानी की जीत के लिए कोशिश कर रहा हूं। मैं उस अमेरिका के स्वास्थ्य और उत्साह को अपनी श्रद्धांजलि दे रहा हूं जिसने रंग और जाति की चुनौती को स्वीकार किया।
लोहिया ने इन सारी बातों को आंदोलन के कार्यकर्ताओं की बैठक में रात को दोहराया कहा की रंगभेद करने वाले रेस्टोरेंट में वापस जाने का उनका फैसला शायद वे न करते अगर यह घटना न्यूओलीन या अटलांटा में होती। उनका फैसला था अपने शरीर को उस लाइन में रखने का जहां मृत्यु और गिरफ्तारी का जोखिम था। सब जानते थे कि यह उनका देश और उनकी लड़ाई नहीं है। फिर भी उन्होंने उस तत्काल समस्या का, जिससे वह आसानी से बच सकते थे, सामना करने का पूर्ण निश्चय कर रखा था। जब लोहिया ने आंदोलनकारी से कहा कि हम वर्तमान के लिए अत्यधिक चिंतित हैं, तत्काल के लिए , तो आंदोलनकारी ने कहा हमें उनकी बात सुनाई पड़ी।आंदोलन के कार्यकर्ताओं कि बैठक में रात को जैक्सन के लिंक स्ट्रीट घर में इकट्ठे हुए हुए अहिंसा और क्रांति विषय पर चर्चा करने के लिए। आंदोलन के पुराने कार्यकर्ता जिन्हें दो या दो साल से ज्यादा अनुभव था। भारत के अहिंसक आंदोलन के उस पुराने योद्धा के अनुभव विचारों को जानने के लिए इकट्ठे हुए थे जिनका पूरा जीवन आंदोलन में बीता था। भारत के इस योद्धा ने युवा अमेरिकी तथा अहिंसात्मक क्रांति को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों की प्रशंसा की। युवा अमेरिकन उनसे बहुत प्रभावित हुए उन्हें इस बात की खुशी हुई कि डॉक्टर लोहिया ने उनके आंदोलन में इतनी रुची ली।
तुगलू कॉलेज में लोहिया को अमेरिका के विदेश विभाग से टेलीफोन संदेश आया जिसमें जैक्सन में उनके साथ किए गए बुरे व्यवहार के लिए माफी मांगी गई थी।कई राष्ट्रीय पत्रकारों के लिए जो उनसे मिलने आए उनका एक ही जवाब था कि वह किसी भी अमेरिकी नागरिक से भिन्न व्यवहार की उम्मीद नहीं करते हैं अगर जैक्सन में जो भी हुआ वैसा ही है जैसा किसी अमेरिकी अश्वेत नागरिक से हो सकता है तो यह निश्चित ही इससे बेहतर व्यवहार नहीं चाहेंगे।
न्यूयॉर्क से भेजे गए एक संदेश में कहा गया कि संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिकी राजदूत एडलाई स्टीवेंसन लोहिया से गिरफ्तारी के संबंध में मिलना चाहते हैं। लोहिया हंसे और बोले वे स्टीवेंसन से कहें,गे कि वे ‘स्वतंत्रता की प्रतिमा’ statue of Liberty से क्षमा मांग सकते हैं।
नीचे फोटो में डॉ राममनोहर लोहिया दाहिने, डॉ रूट स्टीवन, पुलिस ऑफिसर लेफ्टिनेंट सी आर विल्सन लोहिया को गिरफ्तार करके ले जाते हुए।
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