समाजवादी समागम के तत्वावधान में डॉ. जी. जी. पारिख जी की आभासी श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया, जिसमें देशभर के जाने-माने समाजवादी विचारधारा से जुड़े साथी, जीजी पारिख जी के प्रशंसक और आम लोग बड़ी संख्या में सहभागी बने।
भारतीय समाजवादी आंदोलन के श्रेष्ठ प्रतीकों में से एक, मार्गदर्शक Dr. G G Parikh की स्मृति में लोगों ने उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रो. आनंद कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि जीजी पारिख जी के मन में समाजवादी विचारधारा के प्रति गहरी आस्था थी। समाजवादी आंदोलन और राजनीति के सवालों को लेकर वे सदैव चिंतित रहते थे। यूसुफ मेहर अली सेंटर के माध्यम से ग्रामीण और आदिवासी समाज की सेवा का उनका संकल्प हम सबके लिए प्रेरणादायी है। राष्ट्र सेवा दल के जरिए युवाओं को समाज निर्माण हेतु प्रशिक्षण देने का उनका योगदान तथा नए-पुराने कार्यकर्ताओं को समाजवादी आंदोलन से जोड़ने का उनका प्रयास उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा था।
उन्होंने यह भी कहा कि मेरा सौभाग्य रहा कि मेरा उनके साथ संबंध 40 वर्षों तक रहा। श्री चंद्रशेखर जी की यात्रा के दौरान मेरी उनसे पहली भेंट हुई। मुंबई में जीजी पारिख ने पदयात्रियों को बहुत सहयोग दिया, किंतु जब अंत में अभिनंदन सभा हुई तो वक्ताओं की सूची में उन्होंने अपना नाम नहीं रखा, जबकि आयोजन में उनकी सबसे बड़ी भूमिका थी। यह उनके व्यक्तित्व का विशिष्ट पक्ष था—हर काम में जुड़े रहना, पर यश दूसरों को देना, खासकर नई पीढ़ी को आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करना। यह दुर्लभ गुण आज की राजनीति में बहुत कम मिलता है। अपने इसी स्वभाव से उन्होंने हजारों लोगों को प्रेरित किया।
डॉ. जी. जी. पारिख के 90वें जन्मदिन के अवसर पर ही समाजवादी समागम की परिकल्पना जन्मी थी। धीरे-धीरे हमने उनके मित्रों और समाजवादी आंदोलन के वरिष्ठ नेताओं—मधुलिमये, मधुदंडवते, कर्पूरी ठाकुर, गोपाल गौड़ा आदि—को याद किया, उनकी स्मृति में सभाएँ कीं और नए लोगों को आंदोलन से जोड़ा। हर अच्छे काम के बाद जीजी मुस्कुराते हुए आपका अभिनंदन करते थे, और यदि कोई काम अधूरा रह गया या गलती हो गई, तो वे क्षमा कर उत्साहवर्धन करते थे—कहते थे, “इस बार नहीं हुआ तो अगली बार होगा।”
उनका व्यक्तित्व बहुत विशाल था। वे न कभी सांसद बने, न विधायक, पर उन्होंने कभी शिकायत नहीं की कि समाजवादी आंदोलन ने उन्हें क्या दिया। उनका चिंता हमेशा यही रहा कि उन्होंने समाजवादी आंदोलन को क्या दिया। वे बड़े सपनों के साधक और तपस्वी थे। जिस पथ का उन्होंने निर्माण किया, उस पर गांधी, लोहिया, जयप्रकाश, अच्युत पटवर्धन, यूसुफ मेहर अली, एस. एम. जोशी, अंबेडकर, N G Goray और साने गुरुजी जैसे महान राष्ट्रीय नेता साथ खड़े दिखाई देते हैं।
गुड्डी जी ने जीजी पारिख को याद करते हुए कहा :
“मैं समाजवादी समागम का हिस्सा होते हुए जीजी पारिख जी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहती हूँ। मेरा और जीजी पारिख जी का रिश्ता 22 वर्षों का रहा है। मेरे सामाजिक जीवन के पहले मित्र भी जीजी ही थे। उन्होंने ही मुझे सामाजिक और राजनीतिक जीवन के लिए प्रेरित किया, मार्गदर्शन दिया और आशीर्वाद भी दिया।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होकर जेल को आंदोलन की ‘गिफ्ट’ के रूप में स्वीकार करने वाले, और गांधी को आदर्श मानने वाले जीजी ने 2 अक्टूबर (गांधी जयंती) को ही इस दुनिया से विदा लेने का दिन चुना।
जीजी और मेरे बीच उम्र का अंतर 61 वर्ष का था, लेकिन फिर भी उन्होंने मुझे हमेशा हमउम्र जैसा महसूस कराया। हर चीज़ को सीखने और समझने की उनकी चाहत ने उन्हें हमेशा युवा बनाए रखा। यहाँ तक कि मोबाइल और तकनीकी साधनों को भी वे बहुत ही सहजता और दक्षता से समझते और प्रयोग करते थे।
साधारण दिखने वाले जीजी वास्तव में असाधारण थे। उनके कई व्यवहारों से मुझे यह अहसास होता रहा। जीजी पारिख एक व्यक्ति मात्र नहीं थे, बल्कि वे सामूहिकता और साझा प्रतीक थे—भारत के समाजवादी आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक। वे सामूहिकता में दृढ़ विश्वास रखते थे। हर बड़े सामाजिक-राजनीतिक कार्य को वे संगठन के रूप में ही करना चाहते थे—चाहे वह ट्रेड यूनियन का कार्य हो, कोई आंदोलन हो या समाज सुधार की पहल।
जीजी पारिख जी आज़ादी के आंदोलन के नायक यूसुफ मेहर अली से बहुत प्रेरणा लेते थे। जैसा कि आप जानते हैं, स्वतंत्रता सेनानी समाजवादी नेता यूसुफ मेहर अली मुंबई के मेयर भी रहे। जीजी ने उनके नाम पर संस्था को चलाने का कार्य अनेक समर्पण भाव से किया। एक कारण यह भी था कि इस संस्था के नाम और कार्य से भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के नेता का स्मरण बना रहे और लोगों को यह संदेश मिले कि आज़ादी की लड़ाई में अल्पसंख्यकों का भी बड़ा योगदान रहा है। जीजी हमेशा कहा करते थे— “मैं रहूँ या न रहूँ, इस संस्था को समाज और राष्ट्र की सेवा करते रहना चाहिए।”
जीजी पारिख ने कभी भी पावर पॉलिटिक्स को महत्व नहीं दिया। इसके विपरीत, उन्होंने सेवा को ही सर्वोपरि माना। वे मानते थे कि बिना सत्ता में गए भी सेवा के माध्यम से समाज में रचनात्मक बदलाव किया जा सकता है।
इसीलिए, जब 2003 में यूसुफ मेहर अली युवा बिरादरी सेवा संगठन का गठन हुआ, तो उसमें यह संकल्प स्पष्ट था कि हमें कभी भी पावर पॉलिटिक्स नहीं करनी है। गुड्डी बताती है कि ” मैं भी उस संगठन की एक संकल्पित कार्यकर्ता होने के कारण जीजी की इस शिक्षा को हमेशा याद रखती हूँ और मुझे इस पर गर्व भी है। जीजी के साथ काम करते हुए मेरी यह समझ और भी गहरी और मजबूत होती चली गई है।”
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जीजी पारिख के अंतिम दिनों की चिंताएँ और उनकी विरासत;
जीजी के आख़िरी दिनों में उनका सबसे प्रिय और गंभीर विषय पर्यावरण था। वे जलवायु परिवर्तन और भविष्य के खतरों से पूरी तरह वाकिफ़ थे और पर्यावरण बचाने के आंदोलन को गति और धार देना चाहते थे।
जीजी अत्यंत अध्ययनशील व्यक्ति थे। हर मुद्दे को समझने की उनमें गहरी ललक रहती थी। वे हर खबर और लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ते थे और जब भी किसी विषय पर चिंता व्यक्त करते, तो उस पर काम करने की तत्परता भी दिखाते थे।
90 वर्ष पूरे होने पर आयोजित समाजवादी आंदोलन के समारोह में देशभर के समाजवादियों को एक साथ लाने में जीजी की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
अंततः, वे अनेक संस्थाओं से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहे और उन्हें अपनी साधना का केंद्र बनाया। वे यूसुफ मेहर अली सेंटर, एस. एम. जोशी फाउंडेशन, जनता ट्रस्ट, बैकुंठ भाई मेहता रिसर्च फाउंडेशन, मुंबई खादी और रिसर्च फाउंडेशन, तथा यूसुफ मेहर अली मेमोरियल एजुकेशन सोसाइटी जैसे कई संगठनों के प्रमुख रहे। इसके अलावा, वे अनेक अन्य संस्थाओं के सक्रिय सदस्य भी थे। इन सभी संस्थाओं की ओर से, और व्यक्तिगत रूप से भी, मैं उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ।
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सतीश नाथ जी का संस्मरण –
अमेरिका से ऑनलाइन जुड़ते हुए सतीश नाथ जी ने जीजी पारिख जी के महान और क्रांतिकारी जीवन को याद किया। उन्होंने विशेष रूप से जीजी द्वारा बताए गए ग्रामीण विकास की पहलों और सामुदायिक समाज (Communitarian Society) को बनाने के लिए सहकारी समितियों (Cooperatives) को बढ़ावा देने की योजनाओं पर प्रकाश डाला।
सतीश जी ने अपने संस्मरण साझा करते हुए बताया कि मुंबई में जीजी पारिख जी के निवास पर हुई उनकी मुलाकातें उनके जीवन के लिए अत्यंत यादगार लम्हे थीं। इन मुलाकातों ने उन्हें जीजी के समाजवादी विचारों के स्पर्श से गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उनकी योजना थी कि अमेरिका से लौटने के बाद जीजी पारिख जी के साथ हुई इन मुलाकातों को टेप रिकॉर्ड करके ओरल हिस्ट्री (oral history ) के रूप में सुरक्षित किया जाए—लेकिन अफसोस, अब यह कार्य कभी पूरा नहीं हो सकेगा।
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श्री महेंद्र शर्मा जी का संस्मरण –
श्री महेंद्र शर्मा जी ने भी जीजी पारिख जी के संस्मरणों को भावपूर्ण ढंग से साझा किया। उन्होंने बताया कि 1965 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की एक बैठक के दौरान उनकी जीजी से पहली मुलाकात हुई थी। इसके बाद उनके साथ मुलाकातों और संवाद का एक लंबा सिलसिला चलता रहा।
महेंद्र जी ने कहा—“मैंने बहुत करीब से जीजी को निस्वार्थ भाव से समाजवादी आंदोलन में काम करते हुए देखा है। मैं मंगल ताई (जीजी पारिख जी की धर्मपत्नी) को भी याद करना चाहूँगा, जिन्होंने जीजी के साथ मिलकर अत्यंत समर्पण भाव से अपने संस्थानों के माध्यम से समाज की सेवा की।”
उन्होंने समाजवादी नेता तूफान साहब का उल्लेख करते हुए बताया कि वे हमेशा कहा करते थे— “जीजी पारिख सुबह 6 बजे से लेकर रात 10 बजे तक लगातार काम करते । वे कभी भी एक मिनट भी व्यर्थ नहीं करते थे और जीवन भर इसी अनुशासन का पालन करते रहे। यह हम सबके लिए प्रेरणा है।”
प्रो. प्रेम सिंह जी का संस्मरण-
प्रोफेसर प्रेम सिंह जी ने जीजी पारिख जी की स्मृति में अपने संस्मरण साझा करते हुए कहा:
“जीजी का व्यक्तित्व अत्यंत समावेशी था। वे बहुत स्नेह और प्रेम से लोगों से मिलते थे। आज के समय में ऐसा व्यक्तित्व मिलना अत्यंत दुर्लभ है। मुझे भी बार-बार उनके सानिध्य का लाभ प्राप्त हुआ।
हम सभी को चाहिए कि यूसुफ मेहर अली सेंटर और जनता वीकली जैसे संस्थानों को आगे बढ़ाएँ। जीजी के जाने से एक रिक्तता उत्पन्न हुई है, जिसे हम सब मिलकर कितना भर पाते हैं, इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। जीजी के पूरे जीवन से यदि एक सबसे महत्वपूर्ण सीख मिलती है, तो वह यह है कि सामाजिक भूमिका निभाते हुए भी आप सामाजिक-राजनीतिक हस्तक्षेप कर सकते हैं और समाज सेवा के माध्यम से बदलाव ला सकते हैं।”
श्री अनिल नौरिया जी का संस्मरण-
श्री अनिल नौरिया जी ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा:
“जीजी से मेरा संबंध जनता मैगज़ीन के माध्यम से बना। 1972 से मैं लगातार उनके संपर्क में रहा। उस समय जनता के एडिटर N G Goray. और मैनेजिंग एडिटर जीजी पारिख थे।
जीजी के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा आकर्षण यह था कि वे हर व्यक्ति को सहज ही अपनी ओर खींच लेते थे और फिर उनसे काम भी करवा लेते थे। उनका स्वभाव इतना खुला था कि आप उनसे किसी भी विषय पर चर्चा और बहस कर सकते थे।
जीजी पारिख दादाभाई नौरोजी की 200वीं जन्मशताब्दी को व्यापक स्तर पर मनाने की अपील भी करते थे। वे मानते थे कि दादाभाई नौरोजी ने भारत के समाजवादी आंदोलन और राष्ट्रीय आंदोलन को वैचारिक आधार देने का ऐतिहासिक कार्य किया था। स्वयं गांधीजी ने दादाभाई को ‘Author of Indian Nationalism’ कहा था।
जीजी चाहते थे कि मुंबई में दादाभाई नौरोजी की 200वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित हो। दुर्भाग्य से, जब उनकी तबीयत बिगड़ी तो उन्होंने संदेश भेजा कि स्वास्थ्य कारणों से वे इस कार्य को फिलहाल आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं—और इस बात का उन्हें अफसोस भी है।”
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यूसुफ मेहर अली की परंपरा और जीजी पारिख की प्रेरणा-
यूसुफ मेहर अली जी के नाम पर संस्था चलाने की प्रेरणा से कॉम्पोज़िट नेशनलिज़्म (composite nationalism) की भी अभिव्यक्ति होती है। यूसुफ मेहर अली ट्रस्ट के माध्यम से जो रचनात्मक कार्यक्रम होते रहे, उन्हीं से संगठन निर्माण की ऊर्जा और प्रेरणा मिलती रही।
दरअसल, यूसुफ मेहर अली के नाम के साथ ‘माइनॉरिटी’ शब्द जोड़ना कुछ अटपटा लगता है, क्योंकि यूसुफ मेहर अली, Rafi Ahmed Kidwai, मौलाना आज़ाद, खान अब्दुल गफ्फार खान—ये सभी नेता केवल किसी विशेष समुदाय के नहीं बल्कि संपूर्ण राष्ट्र के नेता थे।
हरभजन सिंह सिद्धू जी का संस्मरण-
हरभजन सिंह सिद्धू जी ने जीजी को याद करते हुए उनके साथ बिताए अनगिनत अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा:
“जीजी पारिख हमेशा मजदूर आंदोलन के विस्तार और विकास के लिए प्रतिबद्ध रहे। वे मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए हर समय खड़े रहते थे। आर्थिक व्यवस्था में सरकार और पूंजीवादी दबाव के कारण मजदूरों को शोषण की जिस प्रणाली का सामना करना पड़ता था, जीजी सदैव उसका प्रतिकार करते थे।
जीजी बड़े उत्साह के साथ हिंद मजदूर सभा (HMS) के कार्यों में सहयोग करते थे। उनके विचार और दिशा से मजदूर आंदोलन को लगातार लाभ मिला।
यूसुफ मेहर अली जी के नाम से संस्था बनाकर उन्होंने जिस रचनात्मक कार्य की परंपरा विकसित की—उससे बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षण देकर हज़ारों को रोजगार मिला, बच्चों को शिक्षा मिली और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का कार्य आगे बढ़ा। इस रचनात्मक परंपरा ने न केवल समाजवादी आंदोलन बल्कि संपूर्ण समाज कल्याण आंदोलन को एक नया रास्ता दिया।
जीजी सहकारिता आंदोलन में विश्वास रखते थे। वे हमेशा आग्रह करते थे कि अर्थव्यवस्था को कोऑपरेटिव स्पिरिट के साथ आगे बढ़ाया जाए और सहकारी संस्थानों को मजबूत बनाया जाए। मजदूर सभा जीजी की स्मृति को हमेशा याद रखेगी और उनके बताए मार्ग को अपनी योजनाओं में शामिल करती रहेगी। इसी भाव से हम जीजी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।”
अन्य साथियों के संस्मरण
इसके बाद प्रो. अनिल ठाकुर और प्रो. शशि शेखर जी ने भी जीजी की स्मृति को नमन किया और अपने-अपने संस्मरण साझा किए।
साथ ही, लगभग 30–32 अन्य साथियों ने भी जीजी पारिख जी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि और संस्मरण व्यक्त किए। इन संस्मरणों को आगामी अंक में विस्तार से प्रकाशित किया जाएगा।
जारी है……
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