7 मार्च। दिल्ली में स्थित केंद्र सरकार के चार अस्पतालों में साढ़े 6 साल में औसतन 70 बच्चों की हर महीने मौत हुई। सबसे ज्यादा बदतर हाल सफदरजंग अस्पताल का है, जहाँ 81 महीनों के दौरान हर महीने तकरीबन 50 नवजातों की जिंदगी चली गई। बता दें कि ये जानकारी सफदरजंग अस्पताल के अलावा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, कलावती सरन अस्पताल और सुचेता कृपलानी अस्पताल ने आरटीआई एक्ट के तहत दायर किए गए अलग-अलग आवेदनों के जवाब में दी है।
आरटीआई आवेदन में जनवरी 2015 से जुलाई 2021 के बीच इन अस्पतालों में जन्म के बाद जान गंवाने वाले नवजातों की संख्या के बारे में जानकारी मांगी गई थी। इसके साथ में ये भी पूछा गया था, कि इन बच्चों की मौत के क्या कारण रहे? सफदरजंग और सुचेता कृपलानी अस्पताल ने सितंबर 2021 तक के आंकड़े उपलब्ध कराए हैं। आरटीआई के तहत मिले जवाब के मुताबिक, इस दौरान इन अस्पतालों में 3.46 लाख से अधिक बच्चे पैदा हुए जिनमें से 5,724 बच्चों की मौत हो गई। इनमें से चार हजार से ज्यादा बच्चों की जान सिर्फ सफदरजंग अस्पताल में ही गई है। हालांकि सफर जंग अस्पताल में जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या सबसे अधिक है।
कलावती सरन अस्पताल को छोड़कर अन्य अस्पतालों ने बच्चों की मौत का कारण नहीं बताया है। वहीं राम मनोहर लोहिया अस्पताल ने बच्चों की मौत का आंकड़ा नहीं दिया। इन आंकड़ों की गणना करने पर प्रति हजार बच्चों पर शिशु मृत्यु दर 16.5 आती है। एसआरएस के अक्टूबर 2021 में जारी बुलेटिन के मुताबिक, 2019 में दिल्ली में प्रति हजार बच्चों पर शिशु मृत्यु दर 11 थी। एम्स की ओर से मुहैया कराए गए जवाब के मुताबिक, इस अस्पताल में जनवरी 2015 से जुलाई 2021 के बीच 173 बच्चों की जान गई जो चारों अस्पतालों में सबसे कम है। इस अस्पताल में इस अवधि में 15,354 बच्चों का जन्म हुआ।
सफदरजंग अस्पताल में जनवरी 2015 से सितंबर 2021 तक 1.68 लाख से अधिक बच्चे पैदा हुए जिनमें से 4,085 की मौत हो गई। इसी तरह कलावती अस्पताल में जनवरी 2015 से जुलाई 2021 तक 1,199 बच्चों की मौत हुई जबकि अस्पताल में इस अवधि में 80,959 बच्चे पैदा हुए। आरटीआई आवेदन के जवाब के मुताबिक, सुचेता कृपलानी अस्पताल में 81,611 बच्चे पैदा हुए जिनमें से 267 की जन्म के बाद मृत्यु हो गई। सिर्फ कलावती सरन अस्पताल ने अपने जवाब में बच्चों की मौत के मुख्य कारण बताए हैं। अस्पताल के मुताबिक, समय से पहले जन्म के कारण दम घुटना, सेप्टीसीमिया, सांस लेने में परेशानी और बच्चे के कम वजन के कारण उत्पन्न जटिलताएं बच्चों की मौत का मुख्य कारण हैं।