17 मार्च। केंद्र सरकार की एक महत्वपूर्ण परियोजना तापी पार नर्मदा लिंक परियोजना का आदिवासी समुदाय द्वारा विरोध किया जा रहा है। सरकार के फैसले के विरोध में डांग जिले के वाघई में जनजातीय लोगों ने रैली की। कहा जाता है कि आदिवासी समुदाय के अस्तित्व का सवाल है, बांध बनने से सब कुछ बर्बाद हो जायेगा गांव डूब जायेगा।
आदिवासी नेताओं का कहना है कि 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से तीन विशाल बांधों के निर्माण से आदिवासी बेघर हो जाएंगे। तापी पर नर्मदा लिंक नदी परियोजना बनी तो आदिवासी विस्थापित होंगे।
इसलिए इस परियोजना को स्थगित किया जाना चाहिए और यदि ऐसा नहीं होता है तो वे आंदोलन करने से नहीं हिचकिचाएंगे। दूसरी ओर, इस लड़ाई में डांग के राजा भी शामिल हुए।
आदिवासियों का कहना है कि अगर ये तीन बड़े बांध बन गए तो 35 से ज्यादा गांवों के 1700 से ज्यादा परिवारों की जमीनें और घर जलमग्न हो जाएंगे। 50 हजार से ज्यादा आदिवासी प्रभावित होंगे।
कुछ दिनों पहले, दूबन के 72 गांवों में से वाघई तालुका के जमलापाड़ा-रांभास में आदिवासी संघर्ष के साथ एक गैर-राजनीतिक बैठक आयोजित की गई थी। जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण मौजूद थे।
आदिवासी संगठन के साथ विपक्ष के नेता सुखराम राठवा समेत दक्षिण गुजरात के आदिवासी नेता मौजूद थे। और तापी पर नदी लिंक के नीचे डूबने से 50,000 से अधिक आदिवासी प्रभावित होंगे।
क्या है समस्या
विरोध करने वाले संगठनों और लोगों के मुताबिक सरकार पर तापी और नर्मदा नदी लिंक परियोजना को लागू करने जा रही है। इस परियोजना से वलसाड जिले के धरमपुर तालुका में पार नदी पर चसमंडवा गांव के पास एक बांध का निर्माण किया जा सकता है।
यदि बांध बन जाता है, तो क्षेत्र के कई आदिवासी परिवारों के विस्थापित होने की संभावना है, जिससे आदिवासी समुदाय और राजनीतिक और सामाजिक नेता भी सरकार की प्रस्तावित नदी लिंक परियोजना का विरोध कर रहे हैं।
89 गांव डेम बनाने से डूब जायेंगे, हालांकि मुख्यमंत्री ने भरोषा दिलाया है की वह आदिवासियों का नुकसान नहीं होने देंगे, लेकिन वित्त मंत्री ने बजट में योजना के लिए धन आवंटित किया है।
इस मामले को लेकर एक महीने आदिवासी समाज तीसरी बार सड़क पर उतरा है, विधानसभा में भी कांग्रेस विधायकों ने विरोध प्रदर्शित किया था, उसके पहले धरमपुर में आदिवासी समाज की रैली हुयी थी।
भारत जल संसाधन सूचना प्रणाली के अनुसार, पार-तापी-नर्मदा नदी लिंक परियोजना के तहत पश्चिमी घाट क्षेत्र में उपलब्ध अतिरिक्त जल को सौराष्ट्र और कच्छ के कम जल वाले क्षेत्र में भेजने का प्रस्ताव है। इसके लिए उत्तरी महाराष्ट्र और दक्षिण गुजरात में सात जलाशयों के निर्माण की योजना है।
इस नदी लिंक परियोजना के तहत छह जलाशयों का निर्माण गुजरात के वलसाड और दांग जिलों में होना है, जबकि एक जलाशय महाराष्ट्र के नासिक जिले में बनना है।
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, पिछले महीने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा अपने बजट भाषण में इस परियोजना के लिए बजटीय आवंटन की घोषणा के बाद विपक्ष को गति मिली है।
आदिवासी नेताओं ने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र के डांग, वलसाड और नासिक जिले में छह जलाशय विकसित होने से करीब 50,000 लोग सीधे प्रभावित होंगे। इनमें से तीन बांध डांग में, एक वलसाड में और दो महाराष्ट्र में विकसित किए जाएंगे। डांग जिले के वाघई तालुका में बनने वाले तीन बांधों के डूब क्षेत्रों में कम से कम 35 गांव पूरी तरह से जलमग्न हो जाएंगे।
रैली में शामिल एक कार्यकर्ता ने कहा, ‘नदी जोड़ने की परियोजना की लागत 10,211 करोड़ रुपये है और अगर सरकार सौराष्ट्र और कच्छ में सिंचाई के लिए बड़े बांध बनाना चाहती है तो उन्हें वहां इन बांधों को विकसित करना चाहिए। यहां बांध बनाने और वहां पानी लेने का कोई मतलब नहीं है।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक पार-तापी-नर्मदा नदियों को जोड़ने वाली इस परियोजना के तहत सात बांधों के निर्माण के कारण लगभग 7,500 हेक्टेयर भूमि जलमग्न हो जाएगी।
इससे पहले साल 2007-2008 में आदिवासियों के कड़े विरोध के बाद यह परियोजना रुक गई थी। आदिवासी नेताओं का आरोप है कि केंद्र ने नर्मदा योजना की विफलता को छिपाने के लिए परियोजना को डिजाइन किया है। परियोजना के परिणामस्वरूप डांग, वलसाड और तापी जिलों में सैकड़ों आदिवासी विस्थापित होंगे। सागौन और बांस और अन्य लकड़ियों से भरपूर डांग के जंगल जलमग्न हो जाएंगे।
आदिवासी नेताओं का कहना है कि उन्होंने नर्मदा योजना, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, उकाई आदि जैसी कई परियोजनाएं देखी हैं, जहां आदिवासियों को उनकी भूमि से विस्थापित होने के लिए मुआवजा दिया जाना बाकी है।
(संघर्ष संवाद से साभार)