पुलिस की बर्बरता, धमकाकर कोरे कागजों पर कराया हस्ताक्षर : जेएनएस मजदूर

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3 अप्रैल। जेएनएस के गिरफ्तार किए गए मजदूरों को 24 घंटे बाद मानेसर पुलिस ने छोड़ दिया जबकि आठ लोगों को 24 घंटे बाद थाने से रिहा किया गया। आम हड़ताल के दूसरे दिन मंगलवार को हरियाणा के आईएमटी मानेसर में एक ऑटो कंपोनेंट मेकर कंपनी जेएनएस इंस्ट्रूमेंट लिमिटेड में हुई हड़ताल के दौरान पुलिस ने 130 वर्करों को गिरफ्तार कर लिया था, जिनमें 78 महिलाएँ थीं।

उसी दिन 123 वर्करों को रात 12 बजे छोड़ दिया गया। लेकिन इन मजदूरों का समर्थन करने पहुँचे इंकलाबी मजदूर केंद्र के योगेश और हरीश, ‘मजदूर बिगुल’ के श्याम और चार अन्य पुरुष मजदूरों को पुलिस ने गिरफ्तार कर 24 घंटे तक थाने में रखा। बाद में दूसरे दिन डीसीपी मानेसर से उन्हें जमानत मिली।

मजदूर नेता अजीत सिंह ने बताया कि इन मजदूरों पर पर्चा नंबर 94 और 95 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। पर्चा नंबर 94 में हिंसा, धमकी, अशांति आदि की धाराएँ लगाई गयीं। जबकि पर्चा नंबर 95 में आगजनी, हत्या की कोशिश, आपराधिक धमकी जैसे संगीन आरोप लगाए हैं लेकिन दिलचस्प बात है कि पर्चा नंबर 95 में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गयी और पर्चा नंबर 94 के आधार पर डीसीपी के यहाँ से ही जमानत दे दी गयी।

उनका दावा है कि जिन सात लोगों पर गंभीर आरोप लगाए गए, उनमें तीन मजदूर अधिकार कार्यकर्ता हैं। और पर्चा नंबर 95 के तहत एफआईआर असल में उन्हें फँसाने के लिए दर्ज किया गया है।

वर्कर्स यूनिटी से बातचीत में महिला मजदूर नेता रिंकी ने बताया कि वर्कर कंपनी गेट के सामने 29 मार्च, मंगलवार को सुबह पाँच बजे ही धरने पर बैठ गए थे। उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण था लेकिन शाम साढ़े पाँच बजे उन पर बिना किसी उकसावे के पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया, जिसमें कई महिला वर्करों को गंभीर चोटें आयी हैं।

जबकि पुलिस ने इनपर दंगा करने, आपराधिक धमकी देने और सरकारी काम में बाधा डालने समेत कई धाराएँ लगाई हैं। पुलिस का कहना है कि कंपनी की एक बस को जला दिया गया और एक अन्य बस को क्षतिग्रस्त कर दिया गया।

एफआईआर के अनुसार, “दिनांक 29.03.2022 को प्रात: 05:45 AM कम्पनी के गेट पर कर्मचारी कम्पनी के गेट पर आकर बैठ गए व धरना देने लगे और अंदर काम करनेवाले कर्मचारियों को अंदर आने से जबरदस्ती रोक दिया, जिसके कारण कम्पनी का कार्य भी बंद हो गया जबकि माननीय न्यायालय के द्वारा दिनांक 24.12.2021 को जारी आदेशों के अनुसार धरना कम्पनी गेट से 1000 मीटर दूर किया जाना चाहिए। कंपनी के कर्मचारियों ने माननीय न्यायालय के आदेशों की अवहेलना की है तथा कम्पनी में कार्य कर रहे कर्मचारियों को जान से मारने की धमकी दी है।”

रिंकी ने कहा, “गिरफ़्तारी के समय पुलिस इतनी बेरहमी से पेश आयी कि उनके गले को चुन्नी से दोनों तरफ से दो पुलिसकर्मी खींच रहे थे। गला चोक हो गया था। ये मुझे मारने की साजिश थी और वे मुझे मार डालना चाह रहे थे।”

रिंकी ने कहा कि गिरफ्तार करने के बाद करीब डेढ़ सौ वर्करों को थाने में ले जाया गया और रात डेढ़ बजे छोड़ने से पहले उनकी शिनाख्त की गयी और कई सारे सादे कागजों पर हस्ताक्षर कराए गए और पढ़ने भी नहीं दिया गया। ये हर वर्कर के साथ किया गया।

रिंकी बताती हैं कि “उनके गले से खून निकल रहा था और जब एसएचओ से इस बारे में कहा गया तो उस पुलिस अधिकारी ने कहा कि खून निकल रहा तो मैं क्या करूँ, पानी से धो ले और चुप होकर बैठ जा।” रिंकी के अनुसार, उनके साथ ही कई वर्करों को गंभीर चोटें आयी हैं और उनका कोई इलाज भी नहीं किया गया। वे सभी घर पर ही इलाज करा रहे हैं। जो वर्कर सुरक्षित हैं वे धरने में शामिल हैं जबकि कंपनी बाहर के मजदूरों को लाकर काम करा रही है।

असल में ये वर्कर बीते दो साल से वेतन बढ़ोत्तरी, यूनियन बनाने की माँग, नियमितीकरण आदि को लेकर समय समय पर प्रदर्शन करते रहे हैं। ताजा धरना प्रदर्शन अगुवा महिला मजदूर नेताओं के निलंबन को रद्द कराने की माँग को लेकर बीते तीन मार्च से शुरू हुआ था।

बीते साल 17 नवंबर 2021 को नौ महिला वर्करों को कंपनी ने अपने भीवाड़ी प्लांट में ट्रांसफर कर दिया था। ट्रांसफर के खिलाफ वर्करों ने लेबर डिपार्टमेंट में शिकायत की लेकिन वहाँ से उन्हें कोई राहत नहीं मिली।

वर्करों का कहना है कि यूनियन बनाने की अगुवाई कर रहीं मजदूर नेताओं का ट्रांसफर कर दिया गया ताकि यूनियन बनाने की कोशिश को नाकाम किया जा सके।

अखबार ‘द हिंदू’ ने पुलिस के हवाले से लिखा है कि ट्रांसफर किए गए वर्करों को प्रमोशन दिया गया था और उनकी सैलरी में बढ़ोत्तरी की गई थी। पाँच महिला वर्करों ने ड्यूटी भी ज्वाइन कर ली लेकिन चार महिला वर्करों ने इसे अस्वीकार कर दिया। एक महीने तक धरना प्रदर्शन के बाद वर्करों ने आम हड़ताल के दूसरे दिन कंपनी गेट पर बैठने का फैसला लिया, जिसकी वजह से कंपनी में प्रोडक्शन बंद हो गया।

अखबार ने लिखा है, “पुलिस का कहना है कि वर्करों का धरना प्रदर्शन, सुप्रीम कोर्ट के उस आर्डर का उल्लंघन है जिसमें कंपनी से एक किलोमीटर के दायरे में धरना प्रदर्शन प्रतिबंधित है।” पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारी वर्करों ने कंपनी में काम करने की इच्छा रखनेवालों को जान से मारने की धमकी दी। जबकि वर्करों का आरोप है कि पुलिस और मैनेजमेंट की मिलीभगत के चलते उनपर लाठीचार्ज किया गया और महिला वर्करों को भी नहीं बख्शा गया। मजदूर नेता रिंकी के गले में चोट के निशान साफ देखे जा सकते हैं।

गिरफ्तार वर्करों के समर्थन में थाने पहुँचे बेलसोनिका यूनियन के महासचिव अजीत सिंह का कहना था कि यूनियन बनाने से रोकने के लिए मैनेजमेंट ने ये पूरी कहानी रची है। एक महीने से वर्कर प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन मैनेजमेंट ने कोई ध्यान नहीं दिया। अजीत सिंह ने वर्करों की ओर से हिंसा किए जाने के पुलिसिया आरोप को खारिज किया और कहा कि वर्करों को हिरासत में लिये जाने तक कोई भी बस क्षतिग्रस्त नहीं हुई थी।

(Workers unity से साभार)

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