प्रियंकर पालीवाल की पांच कविताएं

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पेंटिंग : कौशलेश पांडेय

1. सबसे बुरा दिन

सबसे बुरा दिन वह होगा
जब कई प्रकाशवर्ष दूर से
सूरज भेज देगा
‘लाइट’ का लंबा-चौड़ा बिल
यह अंधेरे और अपरिचय के स्थायी होने का दिन होगा

पृथ्वी मांग लेगी
अपने नमक का मोल
मौका नहीं देगी
किसी भी गलती को सुधारने का
क्रोध में कांपती हुई कह देगी
जाओ तुम्हारी लीज़ खत्म हुई
यह भारत के भुज बनने का समय होगा

सबसे बुरा दिन वह होगा
जब नदी लागू कर देगी नया विधान
कि अबसे सभ्यताएं
अनुज्ञापत्र के पश्चात ही विकसित हो सकेंगी
अधिकृत सभ्यता-नियोजक ही
मंजूर करेंगे बसावट और
वैचारिक बुनावट के मानचित्र
यह नवप्रवर्तन की नसबंदी का दिन होगा

भारत और पाकिस्तान के बीच
विवाद का नया विषय होगा
सहस्राब्दियों से बाकी
सिंधु सभ्यता के नगरों को आपूर्त
जल के शुल्क का भुगतान

मुद्रा कोष के संपेरों की बीन पर
फन हिलाएंगी खस्ताहाल बहरी सरकारें
राष्ट्रीय गीतों की धुन तैयार करेंगे
विश्व बैंक के पेशेवर संगीतकार
आर्थिक कीर्तन के कोलाहल की पृष्ठभूमि में
यह बंदरबांट के नियम का अंतरराष्ट्रीयकरण होगा

शास्त्र हर हाल में
आशा की कविता के पक्ष में है
सत्ता और संपादक को सलामी के पश्चात
कवि को सुहाता है करुणा का धंधा
विज्ञापन युग में कविता और ‘कॉपीराइटिंग’ की
गहन अंतर्क्रिया के पश्चात
जन्म लेगी ‘विज्ञ कविता’
यह नयी विधा के जन्म पर सोहर गाने का दिन होगा

सबसे बुरा दिन वह होगा
जब जुड़वां भाई
भूल जाएगा मेरा जन्म दिन
यह विश्वग्राम की
नव-नागरिक-निर्माण-परियोजना का अंतिम चरण होगा ।

2. कृतज्ञ हूं मैं भी

कृतज्ञ हूं मैं भी
जैसे आसमान की कृतज्ञ है पृथ्वी
जैसे पृथ्वी का कृतज्ञ है किसान
कृतज्ञ हूं मैं भी
जैसे सागर का कृतज्ञ है बादल
जैसे नए जीवन के लिए
बादल का आभारी है नन्हा बिरवा
कृतज्ञ हूं मैं भी
जिस तरह कृतज्ञ होता है अपने में डूबा ध्रुपदिया
सात सुरों के प्रति
जैसे सात सुर कृतज्ञ हैं
सात हजार वर्षों की काल-यात्रा के
कृतज्ञ हूं मैं भी
जैसे  सभ्यताएं कृतज्ञ हैं नदी के प्रति
जैसे मनुष्य कृतज्ञ है अपनी उस रचना के प्रति
जिसे उसने ईश्वर नाम दिया है।

पेंटिंग : कौशलेश पांडेय

3. अटपटा  छंद 

भारतवर्ष   उदय
भारतीयता अस्त
रोयां-रोयां कर्जजाल में
नेता-नागर    मस्त

ब्रह्मज्ञानी बिरहमन
इश्क-दीवाना दरवेश
बाज़ार   का   बाना
साधू    का    वेश

जनेऊ से कमर का खुजाना
मोरछल से लोबान का उड़ाना
मोबाइल पर नए क्लाइंट से बतियाना

जगत सत्यं     ब्रह्म मिथ्या
घृतम पिवेत ऋणम कृत्वा
उधार    प्रेम का   फ़ेवीकोल
बीच  बाज़ारे     हल्ला बोल

द ग्रेट इंडियन शादी-बाज़ार
कन्या   में   डर
माथे पर प्राइस टैग
सजे-धजे   वर

बनी की अंखियां सुरमेदानी
बनी का बाप   कुबेर
थाम हाथ में स्वर्ण-पादुका
दूल्हे को    ले घेर

नदिया   गहरी
नाव    पुरानी
बरसे    पैसा
नाच मोरी रानी

बीच भंवर में बाड़ी
बाड़ी में    बाज़ार
चौराहे पर चारपाई
आंगन में व्यापार
अपलम-चपलम गाड़ी
बैकसीट पर    प्यार

माया ठगिनी रूप हज़ार
लंपट    तेरी जयजयकार
आजा    मेरे    सप्पमपाट
मैं तनै चाटूं तू मनै चाट

देवल चिने अजुध्या नगरी
मन का    मंदिर    सूना
घट-घट वासी राम के
अंतर   को   दुख   दूना।

4. बीज

प्रत्येक बीज एक कामना है
प्रत्येक वृक्ष एक वरदान
समूचे वन-विजन का
इतिवृत्त छिपा है
इस नन्हे बीज में

सभ्यता का उत्स
संस्कृति का संस्कार
प्रार्थना और उर्वरता की पुकार।

5. जीवन

बुनते-बुनते जीवन-चादर
करघे पर बेजार

हाटक-फाटक मर्कट नाचे
मह-मह और गुलजार

जीवन-वसन जतन से ओढ़ा
(फिर भी) धब्बे दाग-हजार।

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