शोक समाचार : भगवती सिंह नहीं रहे

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4 अप्रैल। उत्तर प्रदेश की जन राजनीति में सात दशकों से समाजवादी धारा के सम्मानित और वरिष्ठतम नायक भगवती सिंह (11 अप्रैल 1932 – 4 अप्रैल 2021) का लखनऊ में निधन गांधी-लोहिया-जयप्रकाश परंपरा की अपूरणीय क्षति है। 1956 में विद्यार्थी आंदोलन की समाजवादी धारा की तरफ़ आकर्षित होनेवाले भगवती सिंह एक दशक में ही संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सबसे मज़बूत संगठन अर्थात् उत्तर प्रदेश संसोपा के संयुक्त मंत्री बनाए गए। इनके साथ ही जनेश्वर, रमाशंकर गुप्ता और मदन पांडेय भी संयुक्त मंत्री नियुक्त किए गए थे। इन्हें डॉ. लोहिया का मार्गदर्शन, राजनारायण का नेतृत्व, और सालिगराम जायसवाल (अध्यक्ष) और कैप्टन अब्बास अली (महासचिव) का अनुशासन मिला।
विनम्रता और कर्मठता की प्रतिमूर्ति भगवती सिंह को हम सभी संगठन के लिए समर्पित वरिष्ठ समाजवादी के रूप में सम्मान देते थे। अपनी सात दशक लंबी सार्वजनिक जीवन यात्रा में सदैव वह पद की होड़ से अलग और आंदोलनों में हिस्सेदारी के अगुवा रहे। उनकी राजनीति में रचना, आंदोलन और विधायकी कर्म का सुंदर संतुलन था। वैसे उन्हें इस लंबी अवधि में सबकुछ हासिल हुआ – विधायक चुने गए, प्रदेश सरकार में महत्वपूर्ण मंत्री बनाए गए, संसद सदस्य बने। लेकिन मूलतः नेपथ्य-नायक बने रहे।
उन्होंने अपनी सिद्धांत निष्ठा से सबका विश्वास और आदर प्राप्त किया. लेकिन वह समाजवादी आंदोलन के गतिरोध के दशकों में अपनी पीढ़ी की भूमिका के प्रति बहुत चिंतित रहते थे। उनको नई पीढ़ी की राजनीति से निराशा थी। लेकिन उन्होंने लोहिया की सीख को अपने जीवन में चरितार्थ करने में सफलता पाई और ‘पिछड़े पाएँ सौ में साठ’ के लिए खुद को खाद बनाने की क़सम पूरी की। मंदिर-मस्जिद, मंडल और मार्केट की आँधी में अनेकों दिग्गज अपनी सैद्धांतिक जड़ों से उखड़ कर धराशायी हुए। दल-बदल किया। लेकिन भगवती सिंह जी ने रावण दरबार में अंगद की तरह से समाजवादी खेमे में पाँव जमाए रखा। आखिरी दिनों तक सभी समाजवादी कार्यकर्ताओं के लिए सहारा बने रहे।
यह बहुत दिनों तक याद रखा जाएगा कि भगवती सिंह जी ने एक समर्पित समाजवादी का निर्मल जीवन जीने के बाद मेडिकल कालेज के उपयोग के लिए मरणोपरांत देहदान करके मरण में भी समाज के लिए ही अपने अस्तित्व का समर्पण किया।
ऐसी संपूर्णता की सिद्धि बहुत दुर्लभ मानी जाएगी।

— आनंद कुमार 

 

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