अज्ञेय से ‘लव हेट’ रिश्ता आज भी है

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— विमल कुमार —

ज्ञेय की गिनती बीसवीं सदी के यशस्वी लेखकों में होती रही है और उनका प्रभामंडल करीब चार दशक तक छाया रहा लेकिन उनके जीवन के अंतिम वर्षों में ही उनका पराभव शुरू हो चुका था और वह हिंदी साहित्य की दुनिया में अलग-अलग पड़ गए थे।

उनके निधन के वर्षों बाद उनकी जीवनी का आना इस बात का सबूत है कि अभी भी उनके प्रति लोगों में दिलचस्पी कम नहीं हुई है बल्कि उनको लेकर जिज्ञासा बढ़ी है। इस बीच साहित्य की चार पांच पीढ़ियां आ गयी हैं और वे अब अज्ञेय को नए सिरे से जानना चाहती हैं ।

प्रसिद्ध पत्रकार अक्षय मुकुल की अंग्रेजी में लिखी अज्ञेय की जीवनी – Writer Rebel Soldier Lover : The Many Lives of Agyeye ने भी उत्सुकता पैदा की है। इस जीवनी ने हिंदी समाज में अज्ञेय का नए सिरे से मूल्यांकन करने का एक प्रयास भी किया है। देखना यह है कि क्या अज्ञेय फिर से साहित्य के नायक बन सकते हैं जैसा कि बीसवीं सदी में प्रेमचंद, निराला और मुक्तिबोध राष्ट्रीय स्तर के नायक बने थे। अक्षय मुकुल ने अपनी पुस्तक के संबंध में अशोक वाजपेयी के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि अज्ञेय को लेकर हिंदी साहित्य में अधिक गॉसिप है और उनको लेकर लव हेट रिलेशन बना हुआ है और साहित्य की दुनिया अज्ञेय के नाम पर विभाजित रही है। जितने उनके प्रशंसक हैं उतने उनके आलोचक भी। आखिर इसके क्या कारण हैं?

क्या हिंदी साहित्य इसके लिए जिम्मेदार है या खुद अज्ञेय भी कहीं न कहीं इसके लिए जिम्मेदार हैं?

अक्षय मुकुल एक वामपंथी पत्रकार माने जाते हैं और उन्होंने अज्ञेय की जीवनी लिखकर एक चुनौतीपूर्ण कार्य किया है क्योंकि अज्ञेय की छवि एक गैर-वामपंथी लेखक की रही है जिनका रिश्ता डालमिया परिवार से रहा। इला डालमिया उनकी सहचरी रहीं। अज्ञेय का संबंध कांग्रेस फॉर कल्चरल फ्रीडम जैसी अमरीकी संस्था से रहा जिसके कारण उन्हें वामपंथियों के हमले का शिकार होना पड़ा। लेकिन कल इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित समारोह में अज्ञेय को लेकर जिस तरह भीड़ उमड़ी उससे लगता है अज्ञेय को लेकर लोगों में आकर्षण अभी कम नहीं हुआ है। अलबत्ता सभागार में वाम लेखक संगठनों से जुड़े वामपंथी लेखक लगभग नदारद थे। क्या अभी भी अज्ञेय को लेकर लोगों के मन में संदेह और गुरेज है? आखिर इसके क्या कारण हैं?

अज्ञेय पर वरदहस्त बनारसी दास चतुर्वेदी और मैथिलीशरण गुप्त का रहा जिनकी छवि प्रगतिशील नहीं रही। अज्ञेय ने बनारसीदास चतुर्वेदी के प्रभाव में निराला इज डेड लिखा था।बनारसीदास की कभी निराला और उग्र से नहीं बनी। बाद में अज्ञेय को अपनी भूल का अहसास हुआ। ‘स्मृति लेखा’ में निराला पर अज्ञेय का संस्मरण इस बात का प्रमाण है कि अज्ञेय ने बाद में निराला को लेकर अपनी राय बदल ली थी। ठीक उसी तरह जिस तरह एक जमाने में अशोक वाजपेयी ने बूढ़ा गिद्ध क्यों पंख फैलाये जैसा लेख लिखकर अज्ञेय पर हमला किया था लेकिन कल अशोक जी ने अपनी भूल सुधार ली और माना कि उन्हें इस शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अज्ञेय के साथ उनका एक अप्रिय प्रसंग जुड़ा था।

अशोक वाजपेयी और अक्षय मुकुल : अज्ञेय के जीवन वृत्त पर चर्चा

लेकिन इतना तय है कि अज्ञेय की इमेज बाद में भले ही क्रांतिकारी या प्रगतिशील न रही हो पर वे हिंदुत्व के समर्थक नहीं थे बल्कि उन्होंने दिनमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कड़ी आलोचना की थी। अज्ञेय के जीवनीकार अक्षय मुकुल ने भी कल शाम अशोक वाजपेयी के सवालों के जवाब में यह स्वीकार किया। टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व पत्रकार मुकुल गीता प्रेस पर किताब लिखने के कारण भी चर्चा में रहे हैं।

रजा फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में अशोक वाजपेयी ने श्री मुकुल से पूछा कि क्या बाद के दिनों में जय जानकी यात्रा निकालने के कारण अज्ञेय की छवि “सॉफ्ट हिंदुत्व “की बन गई थी तो इस पर श्री मुकुल ने कहा कि अज्ञेय ने दिनमान में आरएसएस के खिलाफ कड़ा लेख लिखा था जिसमें उन्होंने कहा था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में न तो राष्ट्र है न सेवा और न ही संघ।

मुकुल का कहना था कि अज्ञेय हिंदुत्व में नहीं बल्कि भारतीयता में विश्वास रखते थे और वह भारतीय लेखक थे लेकिन उनके विरोधियों ने उनकी एक छवि गढ़ दी और हिंदी समाज आज भी अज्ञेय को लेकर दो खेमों में विभाजित है। कुछ लोग तो उनके बड़े प्रशंसक हैं लेकिन कुछ लोग उनके कट्टर विरोधी हैं। लेकिन मुकुल ने यह स्वीकार किया कि अज्ञेय ने चौथा सप्तक के कवि नंदकिशोर आचार्य के बुलावे पर एक यज्ञ हवन में भाग लिया था।

वाजपेयी जी के एक अन्य सवाल के जवाब में श्री मुकुल ने कहा कि अज्ञेय आजादी की लड़ाई में जेल ही नहीं गए बल्कि उस समय के किसान आंदोलन में भी भाग लिया था।

श्री मुकुल ने बताया कि एक तरफ अज्ञेय के संबंध प्रख्यात विचारक एमएन राय से थे तो पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी थे। नेहरू जी ने अज्ञेय की जेल में लिखी गयी कविताओं की पुस्तक की भूमिका भी लिखी थी। नेहरू से उनका पत्राचार था और उन्होंने नेहरू अभिनंदन ग्रंथ का संपादन भी किया था। अज्ञेय का संबंध जेपी से भी था और उनकी पत्रिका ‘एवरीमैन’ के वे संपादक थे। अज्ञेय का भगतसिंह और चन्द्रशेखर आजाद से भी संबंध था।

मुक्तिबोध और अज्ञेय के रिश्तों के बारे में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में मुकुल ने कहा कि दोनों के रिश्ते मधुर थे लेकिन हिंदी समाज में अज्ञेय को लेकर “गप्पें”(गॉसिप) बहुत हैं और बढ़ा चढ़ाकर बातें कही जाती रही हैं। मुक्तिबोध के संदर्भ में भी ऐसा ही हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि वामपंथियों ने अज्ञेय पर बहुत हमले किये।

श्री मुकुल ने कहा कि अज्ञेय हिंदी के भिन्न किस्म के लेखक थे। उनकी पृष्ठभूमि अलग थी। वे अंग्रेजी पृष्ठभूमि से आए थे और ‘शेखर : एक जीवनी’ जैसे क्लासिक उपन्यास का पहला ड्राफ्ट उन्होंने अंग्रेजी में ही लिखा था। मुल्कराज आनंद और नीरद सी चौधरी उनके मित्र थे।

श्री मुकुल ने बताया कि अज्ञेय ने घर में हिंदी पढ़ी थी। वेद पुराण का भी अध्ययन किया था। वे बनना भौतिकीविद चाहते थे पर लेखक बन गए। वे रात 11 बजे लिखना शुरू करते थे।

श्री मुकुल ने बताया कि अज्ञेय को जीवन भर इस बात का मलाल रहा कि हिंदीवाले उनको अपना नहीं मानते क्योंकि मेरी हिंदी अलग है। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में मुकुल ने कहा कि अज्ञेय को पैसों की तंगी जीवन भर रही। वे नौकरियां बदलते रहे। देश के किसी विश्वविद्यालय में उन्हें नौकरी नहीं मिली।

स्त्रियों के साथ अज्ञेय के संबंधों की चर्चा करते हुए श्री मुकुल ने कहा कि अज्ञेय का स्त्रियों के साथ शुरू में संबंध अच्छा रहा पर बाद में हमेशा खराब हो गए। उन्होंने इस संबंध के संदर्भ में उनकी पहली पत्नी संतोष साहनी (जिनसे अज्ञेय का तलाक हो गया और उसके बाद वह बलराज साहनी की पत्नी बन गईं), कपिला वात्स्यायन और इला डालमिया की भी चर्चा की।इससे पहले श्री मुकुल ने बताया कि उन्हें अज्ञेय की जीवनी लिखने की प्रेरणा कुमार गंधर्व से मिली।

वाजपेयी जी ने कहा कि उन्होंने जब श्री मुकुल को रजा फाउंडेशन की ओर से अज्ञेय की जीवनी लिखने का प्रस्ताव दिया तो उन्हें संदेह था कि मुकुल अच्छी जीवनी लिख पाएंगे क्योंकि उन्हें हमेशा पत्रकारों की काबिलियत पर संदेह रहा है लेकिन मुकुल ने बहुत ही मेहनत और शोध कार्य से शानदार जीवनी लिखी है और रज़ा फाउंडेशन से प्रकाशित अब तक की यह सर्वश्रेष्ठ जीवनी है।

मुकुल ने वाजपेयी जी से अज्ञेय के साथ उनके संबंधों के बारे में जब पूछा तो वाजपेयी जी ने विस्तार से इसका जिक्र किया और कहा कि उन्हें अज्ञेय से प्रेरणा मिलती रही है और 18 वर्ष की आयु में उन्होंने अज्ञेय को सागर से पत्र लिखा था। बाद में भी उनके साथ पत्राचार हुए लेकिन एक प्रसंग में उनके साथ कुछ अप्रिय बातें हो गयी।

वाजपेयी जी ने बताया किया कि उन्होंने एक जमाने में “बूढ़ा गिद्ध क्यों पंख फैलाए” लेख लिखा था लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें “बूढ़ा गिद्ध” नहीं लिखना चाहिए था।

मुकुल ने बहुत श्रम और अनुसंधान से यह जीवनी लिखी है इसमें कोई शक नहीं, और अब तक रजा फाउंडेशन से जितनी जीवनियाँ आयी हैं उनमें यह सर्वश्रेष्ठ है। अगर यह भी कहा जाए कि अपने देश में शायद किसी अन्य लेखक की इतनी शोधपूर्ण जीवनी नहीं लिखी गई तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। लेकिन प्रश्न है कि क्या एक वामपंथी लेखक ने अज्ञेय की जीवनी लिखकर उनका फिर से मूल्यांकन करने की कोशिश की है तो क्या हिंदी समाज के वामपंथी लेखक और संगठन भी पुनर्मूल्यांकन करेंगे या चुप्पी लगा जाएंगे। आखिर अज्ञेय के सारे मित्रों रामविलास शर्मा, नेमिचन्द्र जैन, मुक्तिबोध, रघुवीर सहाय ने क्यों उनसे किनारा कर लिया और सभी स्त्रियों से उनके रिश्ते क्यों खराब हुए।

क्या शेखर ने अज्ञेय को कैद कर लिया था?

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