14 सितंबर। “महिलाओं की मौजूदा समय में राजनीतिक, आर्थिक, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक स्थिति में जो असमानता व्याप्त है उसे खत्म करने के लिए विश्व स्तर पर तीन सदी तक का इंतज़ार करना होगा।”
ये निष्कर्ष संयुक्त राष्ट्र महिला और संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट “प्रोग्रेस ऑन द सस्टेनेबल डेवलेपमेंट गोल्स : द जेंडर स्नैपशॉट 2022” का है। इस रिपोर्ट के अनुसार अलग-अलग क्षेत्रों में समान भागीदारी पाने के लिए और विकास के क्रम में शामिल होने के लिए महिलाओं को लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। लैंगिक भेदभाव को दुनिया से मिटाने में करीब 300 साल का समय लग सकता है। ऐसे में मौजूदा जेंडर गैप की खाई को पाटने के लिए सहयोग, साझेदारी और निवेश की ज़रूरत है। बिना कार्रवाई, कानून व्यवस्था के महिलाओं के साथ होनेवाली हिंसा को खत्म नहीं किया जा सकता है। शादी और परिवार में उनके अधिकारों को सुरक्षित रखना भी बेहद ज़रूरी है।
इस रिपोर्ट को अगर भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यहां महिलाओं की स्थिति और समस्या और भयंकर हो जाती है, इसकी बड़ी वजह रूढ़िवादी सोच, महिलाओं की संसाधनों तक कम पहुंच और असमान अवसर हैं। यहां एक लड़की को जन्म लेने से लेकर अपनी अपने जीवन में आगे बढ़ने तक तमाम संघर्षों से गुजरना पड़ता है। देश की शिक्षा हो या राजनीति हर जगह लैंगिक असमानता बनी हुई है। महामारी से गुजरते समय में भारत की स्वास्थ्य क्षेत्र में सबसे निचली रैंक देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की भयानक तस्वीर पेश करती है।
ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 में भी कुल 146 देशों की सूची में भारत 135वें पायदान पर था। यही नहीं वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्लूईएफ) द्वारा जारी इस इंडेक्स के मुताबिक भारत दुनिया के अंतिम ग्यारह देशों में शामिल है जहां सबसे ज्यादा लैंगिक असमानता मौजूद है। दक्षिण एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करनेवालों में भारत तीसरा देश है। भारत केवल अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आगे है। लैंगिक समानता के मामले में भारत अपने अन्य पड़ोसी देशों बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, मालदीव और भूटान से भी काफी पीछे है।
– सोनिया यादव
(सबरंग इंडिया से साभार)