(भारत में मुसलमानों की बड़ी आबादी होने के बावजूद अन्य धर्मावलंबियों में इस्लाम के प्रति घोर अपरिचय का आलम है। दुष्प्रचार और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के फलस्वरूप यह स्थिति बैरभाव में भी बदल जाती है। ऐसे में इस्लाम के बारे में ठीक से यानी तथ्यों और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य समेत तथा मानवीय तकाजे से जानना समझना आज कहीं ज्यादा जरूरी है। इसी के मद्देनजर हम रेडिकल ह्यूमनिस्ट विचारक एम.एन. राय की किताब “इस्लाम की ऐतिहासिक भूमिका” को किस्तों में प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है, यह पाठकों को सार्थक जान पड़ेगा।)
इस्लाम का लक्ष्य
इस्लामी इतिहास के भ्रष्ट व्याख्याकारों ने इस्लाम के अनुयायियों की सैनिक सफलताओं पर उसकी प्रशंसा के रूप में जोर दिया है अथवा उन्होंने उसके क्रांतिकारी प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से ऐसा किया है। यदि सरासेनी योद्धाओं की उत्कृष्ट सैनिक विजय से इस्लाम की ऐतिहासिक भूमिका का अनुमान लगाना हो तो उसको अनुपम ऐतिहासिक घटना नहीं कहा जा सकता। तातारी और सीथियाई बर्बर लोगों की, जिनमें गोथ, हूण, वनडल, अवार, मंगोल आदि शामिल हैं, सैनिक विजय इस्लाम के अनुयायियों की सैनिक विजयों के यदि बराबर अथवा उनसे अच्छी नहीं थी तो भी महान उपलब्धियाँ थीं।
लेकिन यूरोप और एशिया के सीमावर्ती क्षेत्रों से जिस प्रकार की मानव-समूह की लहरों ने पश्चिम, दक्षिण और पूर्व के देशों को रौंद डाला था, उनकी तुलना में अरब लोगों का धार्मिक उन्माद अनुपम था। मानव-समूहों की पहले की लहरें महान् विजय प्राप्त करने के बाद, देर-सबेर शांत हो गईं। लेकिन इनके विपरीत बाद में आनेवाला अरब अभियान एक स्थायी ऐतिहासिक घटनाक्रम बन गया जिससे मानव-जाति के सांस्कृतिक इतिहास में एक उत्कृष्ट अध्याय जुड़ा। उनके लक्ष्य में विनाश एक गौण बात थी। उस अभियान में पुराने जर्जर खँडहरों को नष्ट किया गया जिससे नवीन निर्माण किया जा सके। उस अभियान ने सीजर और चोसरोज के पवित्र महलों को ध्वस्त किया और उनसे मानव-ज्ञान के संचित कोष को विनाश से बचाया और उस ज्ञान भण्डार को बढ़ाकर आगे आनेवाले लोगों के लाभ के लिए सुरक्षित किया।
सरासेनी अश्वारोही सैनिकों की विजय के उदाहरण ही इस्लाम के चरित्र की विशिष्टताएँ नहीं थीं। उनके द्वारा हमारा ध्यान उनकी ओर आकृष्ट होता है और हमें उनकी ऐतिहासिक विजयों के कारणों को ढूंढ़ने और उनकी प्रशंसा करने को बाध्य करता है। ‘अल्लाह की फौज’ ने जिस प्रकार की अद्भुत विजय प्राप्त की, उससे आँखें चकाचौंध हो जाती हैं और इतिहास के औसत छात्र इस्लामी क्रान्ति की महान उपलब्धियों को ठीक से नहीं समझ पाते हैं, चाहे वे हजरत मुहम्मद के अनुयायी ही क्यों न हों।
फिर भी अरब के मसीहा हजरत मुहम्मद के अनुयायियों ने जो सैनिक सफलताएं प्राप्त कीं, वे तो महान और स्थायी सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र के परिवर्तनों की भूमिका मात्र थीं। उन विजयों से राजनीतिक एकता की स्थितियाँ उत्पन्न हुईं जिनसे आर्थिक समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त हुआ। रोम और फारस के साम्राज्यों के पतन के बाद उनके खँडहरों को साफ करने से नवीन विचारों और उद्देश्यों वाली सामाजिक व्यवस्था के लिए रास्ता साफ हुआ। मैगियाई रहस्यवाद के अंधकारपूर्ण मूढ़ विश्वासों और यूनानी ईसाई चर्च (संप्रदाय) ने अपने अपने अधीन लोगों के आध्यात्मिक जीवन को भ्रष्ट कर दिया था। फारस और बेजेण्टाइन साम्राज्यों के अंतर्गत सभी प्रकार की नैतिक और बौद्धिक प्रगति असंभव हो गई थी।
हजरत मुहम्मद के कठोर एकेश्वरवाद ने सरासेनी लोगों को वह शक्ति प्रदान की जिसने अरब जनजातियों में व्याप्त मूर्तिपूजा और बहुदेववाद को समाप्त किया। इसके साथ ही वह जोरोस्टर और ईसाई धर्म के पतन से उत्पन्न दुर्भावनाओं के विरुद्ध अजेय अस्त्र भी साबित हुआ। पतानोन्मुख ईसाई संप्रदायों में मूढ़ विश्वासों और मठों में व्याप्त भ्रष्टाचार का प्रभाव तथा संतों की मूर्तियों की पूजा के कारण उनका पतन हो गया था। सरासेनी योद्धाओं के शस्त्रास्त्र अपने शत्रु के लिए अजेय ही सिद्ध नहीं हुए वरन मानव-जाति की प्रगति और इतिहास क्रम के विकास के लिए उनकी उपलब्धियों का महान योगदान हुआ।
रोम साम्राज्य के अंतर्गत प्राचीन यूनान की गौरवमयी सभ्यता की समृद्ध आध्यात्मिक परंपरा दबी पड़ी थी और वह ईसाई मूढ़ विश्वासों के अंधकार में नष्ट हो गयी थी। सरासेनी योद्धाओं की विजय और उनकी उपलब्धियों से यूनान की प्राचीन सभ्यता और उनके दार्शनिक विचारों का उद्धार हुआ जिससे यूरोप के लोगों का मध्ययुगीन निराशा से भी उद्धार हुआ और आधुनिक सभ्यता के उत्कृष्ट भवनों का निर्माण संभव हो सका। इस्लाम के एकेश्वरवाद के आधार पर नवीन सामाजिक-राजनीतिक ढाँचे का निर्माण संभव हुआ। इस्लाम की तलवार ने प्रकटत: ईश्वर की सेवा की और नवीन सामाजिक शक्ति की विजय का आधार उत्पन्न किया, एक नवीन बौद्धिक जीवन का आरंभ हुआ, जिसने सभी पुराने धर्मों और विश्वासों की कब्रों को तैयार कर दिया।
(जारी)