22 अक्टूबर। सांप्रदायिक सद्भाव समाज (सोसायटी फॉर कम्युनल हार्मनी) की ओर से उत्तर पूर्वी दिल्ली में 2020 के फरवरी (23 से 26) माह में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जाँच के लिए गठित सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय नागरिक समिति की रिपोर्ट पर शनिवार को आनलाइन चर्चा और विश्लेषण आयोजित किया गया। चर्चा में देश के कई हिस्सों के बुद्धिजीवियों, नागरिक आंदोलन से जुड़े साथियों, विद्यार्थियों एवं युवाओं ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सांप्रदायिक सद्भाव समाज के अध्यक्ष प्रो आनंद कुमार ने की। उन्होंने अपने संबोधन में भारतीय समाज को दलदली समाज कहा और सांप्रदायिक नफरत और हिंसा पर गंभीर चिंता जताई।
जामिया मिलिया इस्लामिया केंद्रीय विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री प्रो अरविंदर अंसारी ने विस्तार से ‘अनिश्चित न्याय’ (Uncertain Justice) शीर्षक से लिखित रिपोर्ट पर चर्चा के साथ उसका विश्लेषण किया। प्रो अंसारी ने रिपोर्ट के संदर्भ में बताया कि कैसे नागरिकता (संशोधन) कानून का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे नागरिकों को एक संप्रदाय का प्रतिरोध बताया गया और दिल्ली के विभिन्न हिस्सों – जामिया मिलिया इस्लामिया के गेट नंबर 7, शाहीनबाग तथा आगे सीलमपुर, जाफ़राबाद, मुस्तफाबाद आदि स्थानों पर शांतिपूर्ण धरना और प्रतिरोध में बढ़ती महिलाओं की भागीदारी से घबराकर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने यह षड्यंत्र रचा और सांप्रदायिक हिंसा और दंगे को अंजाम दिया। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट ने पुलिस तथा मीडिया की भूमिका को तथ्यों के आधार पर इस मुस्लिम विरोधी सांप्रदायिक हिंसा के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार माना है।
चर्चा में शामिल दूसरे वक्ता तथा जेपी फाउंडेशन के अध्यक्ष शशि शेखर सिंह ने बताया कि रिपोर्ट बहुत विस्तृत और आनुभविक अध्ययन पर आधारित है और तीन भागों के दस अध्यायों में तथ्यों के आधार पर तैयार की गई है। नागरिक समिति ने इस रिपोर्ट में सांप्रदायिक हिंसा की उत्पत्ति, प्रकृति तथा हिंसा के बाद की स्थितियों का विश्लेषण किया है।
उन्होंने यह भी बताया कि कैसे इस सांप्रदायिक हिंसा के लिए भारतीय जनता पार्टी के नेताओं कपिल मिश्रा, केंद्र सरकार के एक मंत्री अनुराग ठाकुर तथा अन्य के द्वारा नागरिकता (संशोधन) कानून विरोधी धरना और सत्याग्रह करने वालों को देशद्रोही, आतंकवादी तथा गद्दार कहा गया और गोली मारो के नारे लगाए गए। रिपोर्ट में संचार माध्यमों की भूमिका में कई टीवी चैनलों जैसे रिपब्लिक इंडिया, रिपब्लिक भारत, टाइम्स नाउ, आजतक, जी.न्यूज, इंडिया टीवी आदि के द्वारा नागरिकता( संशोधन) कानून विरोधी शांतिपूर्ण आंदोलन को न सिर्फ बदनाम किया गया बल्कि लोगों के बीच उनकी राष्ट्रविरोधी छवि बनाने की कोशिश की गयी। उन्होंने यह भी बताया कि रिपोर्ट में पुलिस की भूमिका की तीखी आलोचना की गयी है और केंद्रीय गृह मंत्रालय के द्वारा सांप्रदायिक हिंसा को रोकने की कोई सार्थक कोशिश नहीं की गयी, उलटे बाद में पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज किये उनमें झूठे तरीके से मुस्लिम संप्रदाय के लोगों को फँसाया गया और उनके खिलाफ गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम का भारी दुरूपयोग किया गया। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में दिल्ली सरकार की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाये गये हैं और आगे यह भी कहा कि दिल्ली सरकार ने न तो सांप्रदायिक हिंसा के दौरान हिंसा को रोकने के लिए कोई प्रयास किया बल्कि सांप्रदायिक हिंसा के शिकार तथा प्रभावित लोगों को पर्याप्त राहत भी नहीं पहुँचाई और न पर्याप्त क्षतिपूर्ति की। उन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगे, भागलपुर के दंगे, गुजरात दंगे और उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगे में सरकार तथा पुलिस की भूमिका की तुलना की और कहा कि सब में सरकार तथा पुलिस ने निंदनीय भूमिका निभाई। उन्होंने यह भी कहा कि आज राजनीतिज्ञों की तरफ से हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में जाकर शांति बहाली का प्रयास नहीं किया जाता जैसा कि महात्मा गांधी ने नोआखाली, कलकत्ता या बिहार में सांप्रदायिक हिंसा और दंगे से प्रभावित क्षेत्रों में किया था। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट इस सांप्रदायिक हिंसा की जाँच अदालत की निगरानी में स्वतंत्र आयोग के द्वारा कराने पर जोर देती है, साथ ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से बिना समझौता किये सोशल मीडिया को रेग्युलेट करने की जरूरत बताती है।
तीसरे वक्ता खुदाई खिदमतगार के फ़ैसल भाई ने इस बात पर जोर डाला कि सद्भावना के कार्य लगातार करने की जरूरत है, मात्र सेमिनारों में चर्चा से समाज में फैलती सांप्रदायिक नफरत और हिंसा को नहीं रोका जा सकता। उन्होंने दिल्ली दंगे के समय के अपने अनुभव और अमन के लिए किये गए प्रयासों का उल्लेख किया और कहा कि जबतक समाज के बीच जाकर नफरत और सांप्रदायिक हिंसा को रोकने की कोशिश नहीं की जाएगी, इनको रोकने में कामयाबी नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि अपने विचारों से समझौता नहीं करना है किंतु थोड़ा लचीलापन दिखाकर भी लोगों तक पहुँचने और उनके बीच सद्भाव के लिए कार्य करने की आवश्यकता है।
चर्चा में शामिल हिंद मजदूर सभा के नेता महेंद्र शर्मा ने कहा कि दंगे में शामिल लोग बाहर के थे और मुस्लिम संप्रदाय के विरुद्ध हिंसा के लिए उन्हें लाया गया था। आगे उन्होंने कहा कि अभी उम्मीद जिंदा है और इसी बात का निश्चय कर नफरत और सांप्रदायिक हिंसा की जगह सद्भाव और भाईचारा फैलाने का कार्य करते रहना है। समाजवादी नेता डॉ सुनीलम ने नफरत छोड़ो, संविधान बचाओ अभियान के तहत कई राज्यों तथा शहरों में लोगों के द्वारा की जा रही पदयात्रा के विषय में जानकारी दी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच के द्वारा नफरत फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की पुलिस को दी गयी हिदायत का स्वागत किया।
महाराष्ट्र से चर्चा में शामिल डॉ तेजस्विनी पाटिल ने सांप्रदायिक सद्भाव के लिए किये गए प्रयासों का उल्लेख किया। कॉलेज की छात्रा आलिया अंसारी ने कहा कि दंगा करने वाले तो रिपोर्ट पढ़ते नहीं इसलिए उनके बीच जाकर काम करने और उन्हें समझाने की जरूरत है। युवा बुद्धिजीवी रणधीर गौतम ने भी चर्चा में हिस्सा लिया और अपने विचार रखे।
चर्चा के अंत में सांप्रदायिक सद्भाव समाज के टास्क फोर्स के संयोजक तथा प्रसिद्ध गांधीवादी के.विजय राव ने कहा कि समाज में सभी संप्रदायों में सद्भाव बहुत जरूरी है और इसके लिए मिलकर काम करना जरूरी है तथा सांप्रदायिक सद्भाव समाज लगातार इस दिशा में कार्यरत है।
– शशि शेखर प्रसाद सिंह
अध्यक्ष, जे.पी. फाउंडेशन