5 नवम्बर। बिहार की नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय के दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी अपनी माँगों को लेकर मंगलवार से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं। कर्मचारियों ने मुख्य द्वार में तालाबंदी कर धरना दिया। दरअसल 20 वर्षों से विवि में सेवाएं दे रहे 25 दैनिकभोगी कर्मचारियों को विश्वविद्यालय ने एक आदेश निकालकर इनकी सेवाएं विश्वविद्यालय प्रशासन से लेकर एक प्राइवेट एजेंसी को सौंप दी है, जिसका विरोध हो रहा है। दैनिकभोगी कर्मचारी जितेंद्र कुमार ने मीडिया से बताया, कि महाविहार विश्वविद्यालय में कोई 10 वर्ष तो कोई करीब 20 वर्षों से सेवा प्रदान कर रहे हैं। इसके बावजूद वेतन वृद्धि नहीं कर आउटसोर्सिंग कर सेवा से मुक्त कर दिया गया है। जितेंद्र ने कहा, हम वर्षों से विवि प्रशासन के अधीन काम करते चले आ रहे हैं। हममें से कई लोग ऐसे हैं जिनकी आधी उम्र विवि को सेवाएं देने में गुजर गई। अब ऐसे समय में हमारी सेवाएं प्राइवेट कंपनी को देकर हम सबका भविष्य खतरे में डाल दिया है। जितेंद्र ने बताया, कि कार्यालय आदेश को रद्द कर हम लोगों की सेवा नियमित कर पूर्व की तरह महाविहार प्रशासन के अधीन ही कार्य करने की अनुमति प्रमुख माँग है। ऐसा नहीं करने पर आंदोलन जारी रहेगा।
वहीं प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों पर आरोप लगाया है। जानकारी के अनुसार महाविहार कैम्पस में पानी सप्लाई को भी धरना दे रहे लोगों द्वारा अवरुद्ध करने का आरोप है। इसके साथ ही विवि प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों पर छात्रों को बंधक बनाए जाने का आरोप लगाया है। इस मामले में विवि ने प्रदर्शनकारियों पर शासकीय कार्य में बाधा उत्पन्न करने का मामला दर्ज करवाया है। इस मामले में एक छात्र ने नाम नहीं बताने की शर्त पर ‘द मूकनायक’ को बताया, कि प्रदर्शनकारियों से छात्रों को कोई असुविधा नहीं हुई है। जब छात्रों को बाहर जाने की आवश्यकता होती है तब वे गेट खोल देते है। छात्र ने बताया, कि विवि प्रशासन छात्रों का सहारा लेकर कर्मचारियों को उनके अधिकार से वंचित करने का प्रयास कर रहा है। इस मामले में जब हमने विवि के कुलसचिव से बात की तो वह ‘द मूकनायक’ के सवालों से बचते रहे। कुलसचिव डॉ. सुनील प्रसाद सिन्हा ने फोन पर हमारे सवाल पर कहा, कि तबीयत खराब है, अभी कुछ नहीं कह सकता सुबह बात करना।
नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय के दैनिकभोगी कर्मचारी पूर्व से ही वेतनवृद्धि और नियमितीकरण की मांग करते चले आ रहे हैं, लेकिन इस ओर प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया। इनमें सभी कर्मचारी दलित और पिछड़ा वर्ग से आते हैं। हालांकि कर्मचारी वर्षों से विवि को सेवाएं देने के बाद भी प्रशासन ने इन कर्मचारियों को सहूलियत के लिए कोई उचित कदम उठाने के बजाए, इन्हें विश्वविद्यालय से बाहर करने का रास्ता निकाल लिया है। अपनी माँगों के लिए संवैधानिक तरीके से आंदोलन कर रहे हैं।
(‘मूकनायक’ से साभार)