8 नवंबर। भारत-तिब्बत मैत्री संघ का दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मलेन विगत 31अक्तूबर एवं 1 नवम्बर 2022 को देश की ऐतिहासिक स्थली राजगीर ( बिहार ) के इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में सम्पन्न हुआ। तिब्बत की आजादी और हिमालय बचाओ अभियान से जुड़े देश भर के कोने-कोने से आए एवं स्थनीय स्तर के लगभग तीन सौ प्रतिनिधियों ने इस राष्ट्रीय सम्मलेन भाग लिया। इस राष्ट्रीय सम्मेलन में कर्नाटक, पुदुच्चेरी, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िशा, बिहार, असम, सिक्किम और उत्तर प्रदेश के प्रतिनिधियों ने दो दिन चीनी उपनिवेशवाद से तिब्बत की आजादी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते एवं दृढ़ करते हुए तिब्बत को चीन के शिंकजे से मुक्त कराने के संकल्प के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को कार्यरूप देने के लिए नीतिगत एवं रणनीतिक मुद्दों पर विस्तार से गहन विचार-विमर्श किया। इस दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मलेन का उदघाटन धर्मशाला (हिमाचल) में तिब्बत की निर्वासित सरकार के पूर्व लोकसभा अध्यक्ष प्रो.एस.रिनपोछे ने किया। श्री रिनपोछे सारनाथ बौद्ध शोध विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी रहे हैं।
प्रो.एस.रिनपोछे ने अपने उदघाटन भाषण में भारत के नागरिकों और भारत सरकार के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हुए कहा कि लगभग आधी सदी से हम तिब्बती जन भारत की धरती पर शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं और अपनी आजादी की अहिंसक लड़ाई दुनिया के तमाम देशों के समर्थन से लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि तिब्बतियों का आजादी की लड़ाई का रास्ता महामना बुद्ध और विश्व शांति दूत महात्मा गांधी के आदर्श, अहिंसा और मानवीय करुणा जगाने का रास्ता है। उन्होंने आगे कहा कि भारत के नागरिक और भारत तिब्बत मैत्री संघ के मित्र जिस तरह तिब्बत की आजादी की अहिंसक लड़ाई में हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे हैं जिसके लिए हम तिब्बत के लोग अभिभूत हैं और उनके हृदय से आभारी एवं कृतज्ञ हैं | दुनिया से जब उपनिवेशवाद लगभग खत्म हो गया है उस समय तिब्बत की चीन के उपनिवेश के रूप में उपस्थिति पूरे वैश्विक समाज के लिए एक शर्मनाक एवं दर्दनाक परिघटना है।
भारत-तिब्बत मैत्री संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो.आनंद कुमार ने अतिथियों एवं प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए कहा कि चीन की वर्चस्ववादी एवं विस्तारवादी नीति से पूरी दुनिया त्रस्त है। अरुणाचल से लेकर लद्दाख तक भारत की सीमाओं पर चीनी फौजियों का जमावड़ा है जो भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है। गलवान घाटी में जो कुछ हुआ वह हम सबके सामने है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है जब भारत सरकार को खुलकर तिब्बत के पक्ष में खड़ा होना चाहिए। उन्होंने कहा जब सत्ता में नहीं होते हैं तब सभी दल तिब्बत की आजादी की वकालत करते हैं और सत्ता में आते ही अपने वादे से मुकर जाते हैं। प्रो.आनंद ने कहा, भारत तिब्बत मैत्री संघ की यह कोशिश होगी कि देश के सभी राजनैतिक दल अपने चुनावी घोषणापत्रों में तिब्बत की आजादी के मुद्दों को शामिल करें और भारत की संसद में इस मुद्दे पर बहस खड़ी करें। उन्होंने कहा कि शांति के लिए दलाईलामा को दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किये जाने के बाद भारत सरकार को चाहिए कि परम पावन दलाईलामा को अफ्रीकी आजादी के योद्धा नेल्सन मंडेला की तरह भारतरत्न पुरस्कार से सम्मानित करे। भारत तिब्बत मैत्री संघ के सचिव डा. मनोज कुमार ने अतिथियों एवं प्रतिनिधियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए इस ज्वलंत अन्तरराष्ट्रीय मुद्दे पर भारत सहित अन्य तमाम देशों की एकजुटता का आह्वान किया।
अगले दिन 1 नवम्बर को धरमशाला (हिमाचल ) में तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री पेनपा सेरिंग ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए बताया कि तिब्बत के 158 नागरिकों ने अपने देश की चीन से मुक्ति के लिए प्रतिरोध स्वरूप आत्मदाह किया है। तिब्बत जैसे एक छोटे से देश, जिसे दुनिया की छत कहा जाता है, की आजादी के लिए यह बलिदान बहुत महत्त्व रखता है खासकर भारत जैसे उन तमाम देशों के लिए जिन देशों ने उपनिवेशवाद से एक लम्बा संघर्ष किया है। श्री सेरिंग ने कहा, परम पावन दलाईलामा के नेतृत्व में लड़ी जा रही इस अहिंसक लड़ाई को अमेरिका और भारत जैसे बड़े देशों सहित अन्य तमाम देशों का समर्थन मिल रहा है। उन्होंने कहा कि वह खुद दुनिया भर के देशों में जाकर वहां के नागरिकों और सरकारों से अपने देश की मुक्ति के लिए समर्थन और सहयोग के लिए आग्रह करते हैं। चीन की वर्चस्ववादी और विस्तारवादी नीति के उसके कई पड़ोसी देश जैसे तुर्कमिस्तान, मंगोलिया, मंचूरिया आदि तबाह हैं और उसकी भारत को भी लगातार घेरने की कुत्सित कोशिशें हमारे सामने हैं। उन्होंने कहा, चीन अपनी सामरिक और आर्थिक ताकत का दुरुपयोग कमजोर पड़ोसी देशों को दबोचने में कर रहा है | वह दिन दूर नहीं जब चीन ताइवान को यूक्रेन जैसी तबाही में बदल दे।
सम्मलेन में बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार का सन्देश पढ़ा गया जिसमें उनके द्वारा गया में 29 एकड़ जमीन बुद्ध शोध शिक्षण संस्थान के लिए देने की घोषणा की गयी है। सम्मलेन में बिहार सरकार के कैबिनेट मंत्री श्रमण कुमार ने अतिथियों एवं प्रतिनिधियों का स्वागत किया और तिब्बत की आजादी की अहिंसक लड़ाई में हर तरह के सहयोग का आश्वासन दिया। उन्होंने अपने संबोधन में तिब्बत की आजादी के संघर्ष में बाबासाहब डा.आम्बेडकर और लोकनायक जयप्रकाश के योगदान और संघर्ष का उल्लेख किया।
इस दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में अध्यक्ष प्रो.आनंद कुमार और सचिव डा.मनोज के अतिरिक्त प्रो.अरुण कुमार, प्रो.विजय कुमार, श्री सुरेन्द्र कुमार, अमरुत बंसोद, अदवान पुश्चेरे, श्रीमती उमा घोष (बिहार), सुन्दरलाल सुमन, गौतम जयंत, भगवान स्वरूप कटियार (उत्तर प्रदेश), श्रीमती हर्षा पाटिल एवं सचिन रम्ताके (महाराष्ट्र), अजय खरे (मध्य प्रदेश), अमित ज्योतिकर (गुजरात), एन्थोनी जोजेफ (कर्नाटक) ने संबोधित करते हुए चीन के वर्चस्ववाद और विस्तारवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता का आह्वान किया और दुनिया की मौजूदा भू-राजनीति के लिए वैकल्पिक युद्धविहीन, शस्त्रविहीन, शोषणविहीन, वर्ग विहीन, अन्यायविहीन राजनीतिक एवं सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था की तलाश की पहल का भी आह्वान किया।
– भगवान स्वरूप कटियार