लोकतांत्रिक समाजवादी आंदोलन के अथक योद्धा दादा देवीदत्त अग्निहोत्री – चौथी किस्त

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श्रद्धेय दादा देवी दत्त अग्निहोत्री जी (1911 - 1993)


— कमल सिंह —

कांग्रेस से इस्तीफा : समाजवादी पार्टी में शामिल

देवीदत्त अग्निहोत्री 1947 में सूती मिल मजदूर सभा – जिसके अध्यक्ष राजाराम शास्त्री, मंत्री गंगा सहाय चौबे  व कोषाध्यक्ष भाई प्यारेलाल अग्रवाल थे – की ओर से कानपुर टेक्सटाइल मिल और कानपुर काटन मिल की मजदूर कमेटी के प्रभारी थे। इस प्रकार काशी प्रसाद त्रिपाठी को विक्टोरिया मिल, गणेश दत्त वाजपेयी को जेके काटन मिल, अमूल्य रतन त्रिपाठी को लक्षमीरतन काटन मिल, बासुदेव प्रसाद मिश्र को जेके काटन और अथर्टन वेस्ट मिल का प्रभारी बनाया गया था। इनका काम इन मिलों में सूती मिल मजदूर यूनियन को सुदृढ़ करना था। कांग्रेस में समाजवादियों और सत्ता सुख का लाभ उठाने वाले व्यवस्था के पोषकों के बीच अंतर्विरोधों में दादा देवीदत्त अग्निहोत्री ज्यादा समय कांग्रेस में टिक नहीं सके। 1948 में कांग्रेस से समाजवादियों के अलग होने के साथ कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के साथियों के साथ उन्होंने भी किनारा कर लिया।

उन्होंने मजदूर कांग्रेस का गठन किया था जो कानपुर में विभिन्न उद्योगों में कार्यरत मजदूर संगठनों का साझा मंच था। वे उसके प्रधान मंत्री थे। शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष शिवनारायण टंडन के ऐतराज के बाद दादा ने 1 जनवरी 1948 को वार्ड कांग्रेस कमेटी, डिप्टी पड़ाव और कांग्रेस की प्रारंभिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। अपने त्यागपत्र में उन्होंने लिखा : “मैं समाजवादी विचारधारा को मानने वाला व्यक्ति हूं और समाजवाद कायम करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानता हूं। समाजवाद कायम करने की क्षमता मैं समाजवादी पार्टी में ही अनुभव कर रहा हूं। कांग्रेस के नए विधान के अनुसार प्रगतिशील व्यक्तियों और समाजवादी विचारों को मानने वालों की पहुंच अब कांग्रेस में नहीं रही।अत: एक समाजवादी की हैसियत से मैं समाजवादी लोगों के निर्णय का स्वागत करते हुए कांग्रेस कमेटी की डिप्टी पड़ाव कमेटी की सदस्यता एवं कांग्रेस की प्रारंभिक सदस्यता से अपना त्यागपत्र देता हूं। आशा है आप बिना किसी वाद विवाद के त्यागपत्र स्वीकार करेंगे। एक लम्बे समय से एक परिवार की भांति एक ही संस्था में काम करते हुए मुझे अभी तक जो आपका सहयोग प्राप्त हुआ है उसपर कृतज्ञता प्रकाश की क्षमता मैं अपने में नहीं पाता।
आपका साथी देवीदत्त अग्निहोत्री”

जेपी का उदबोधन

अगस्त 1947 में नागपुर में समाजवादी पार्टी की कार्यकारिणी की एक महत्त्वपूर्ण बैठक हुई। कांग्रेस छोड़कर बाहर आनेवालों में आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण, डॉ. राममनोहर लोहिया, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, रामानन्द मिश्र आदि थे।

जयप्रकाश नारायण ने यहां मजदूरों की एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि 1942 की अगस्त क्रांति और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज की कारगुजारियों से हिंदुस्तान का नक्शा ही बदल गया है, नया हिंदुस्तान बना दिया। इस नये हिंदुस्तान का मुकाबला करना अंग्रेजों के काबू के बाहर हो गया। जब कोई चारा न चला, कोई हिकमत काम न कर सकी और बेबसी के आंसू पोंछने का सहारा न मिल सका तो आजादी का तोहफा अंग्रेजों ने पेश किया। समाजवादी पार्टी समझौता नहीं चाहती थी, वह तो लड़ने को कह रही थी। परंतु वह रास्ता न अपनाया गया। कांग्रेस ने समझौते का मार्ग अपनाया। इस रास्ते पर चलकर जो आजादी हमें मिली वह सबको मालूम ही है। देश के टुकड़े हो गए। हैदराबाद आजाद हो गया, कश्मीर के नरेश कौन-सा गुल खिलाएंगे मालूम नहीं है। पंजाब में खून की नदी बह रही है।

मजदूर किसान राज

आगे दृढ़ शब्दों में जयप्रकाश नारायण ने कहा कि आजादी की लड़ाई गरीबों ने लड़ी है, अमीरों ने नहीं। आजादी मिलने पर गरीबों का राज होना चाहिए न कि पूंजीपतियों का। गरीब देश की आजादी के लिए खून पसीना एक कर देते हैं। राष्ट्र और मुल्क को सुखी बनाने वालों को पेट भरने के लिए अन्न नहीं मिलता, तन ढकने के लिए कपड़ा नहीं मिलता और रहने के लिए टूटी-फूटी झोंपड़ी भी नहीं मिलती। बच्चे बिलबिलाते हैं और पत्नी सिर धुनकर गम के आंसू बहाती है। उनके लिए दुख की रात बीतती ही नहीं, सुख का प्रभात होता ही नहीं। अब समय आ गया है जब पूंजीपतियों नफाखोरों का खात्मा कर मजदूर किसान राज कायम किया जाए। अब तक हमने राष्ट्रीय लड़ाई अंग्रेजों से लड़ी। यह लड़ाई हमने जीत ली है। इस जीत का सेहरा किसानों और मजदूरों के सिर पर है। अब किसानों और मजदूरों को देश के अंदर अपनी आजादी की लड़ाई चलानी पड़ेगी। मजदूरों को अपना संगठन मजबूत करना होगा। किसान मजदूर राज की स्थापना इस देश में करना है। देश की बागडोर अपने हाथों में लेना है। समाजवादी पार्टी ऐसी पार्टी है जो किसान मजदूरों के राज का सपना देखती है।9 (संदर्भ : ‘संघर्ष’, 8 सितम्बर 1947)

कानपुर मजदूर यूनियन की कार्यकारिणी का चुनाव सितम्बर 1947 में हुआ। इसकी कार्यकारिणी में देवीदत्त अग्निहोत्री भी चुने गए थे। पदाधिकारियों में सभापति गंगा सहाय चौबे, प्रधान मंत्री राजाराम शास्त्री, मंत्री गणेश दत्त वाजपेयी, कोषाध्यक्ष अर्जुन अरोड़ा थे। (संदर्भ : ‘संघर्ष’, 8 सितम्बर 1947)

सोशलिस्ट पार्टी ने 9 अगस्त, 1949 को कानपुर के लेनिन पार्क में अगस्त क्रांति दिवस पर जनसभा आयोजित करके “कामनवेल्थ विरोधी दिवस” मनाकर कांग्रेस की कटु आलोचना करते हुए भारत को कामनवेल्थ में शामिल किए जाने को गद्दारी करार दिया। सभा में प्रमुख वक्ताओं में राजाराम शास्त्री, देवीदत्त अग्निहोत्री, देशराज भाटिया और रेवाशंकर त्रिवेदी शामिल थे। 10 से 13 अगस्त को क्रमश: नौजवान दिवस, किसान दिवस और मजदूर दिवस का आयोजन किया गया; सोशलिस्ट पार्टी ने शहर के विभिन्न स्थानों पर जनसभाएं कीं। (संदर्भ : साप्ताहिक साथी, 22 अगस्त, 1949) पन्द्रह अगस्त को सोशलिस्ट पार्टी ने महादेव हिन्दुस्तानी के नेतृत्व में जुलूस निकाला और लेनिन पार्क में जनसभा का आयोजन किया जिसे संबोधित करने वाले मुख्य वक्ताओं में राजाराम शास्त्री, देवीदत्त अग्निहोत्री, देशराज भाटिया, रेवाशंकर त्रिवेदी शामिल थे। (संदर्भ : साप्तहिक साथी, 22 अगस्त, 1949)

विशम्भर दयालु त्रिपाठी के नेतृत्व में जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ किसानों का विशाल व ऐतिहासिक प्रदर्शन लखनऊ में किया गया। कनपुर में इटावा, फर्रुखाबाद, हमीरपुर, झांसी व आसपास के जिलों से हजारों की संख्या में किसान जत्थे आ रहे थे। प्रशासन अड़ंगे लगा रहा था। सोशलिस्ट पार्टी एवं जिला किसान पंचायत ने 22 नवम्बर को जुलूस निकलने का प्रस्ताव पारित किया था। फूलबाग में जनसभा दादा देवीदत्त अग्निहोत्री की सदारत में हुई।(संदर्भ : साप्ताहिक साथी, 24 दिसम्बर, 1949) अगस्त 1951 में शहर सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव राजाराम शास्त्री के साथ देवीदत्त अग्निहोत्री कार्यसमिति के सदस्य चुने गए।

सूती मिल मजदूर सभा

कानपुर मजदूर सभा 1954 तक छह धड़ों मे विभक्त हो चुकी थी। सरकार द्वारा सूती उद्योग के लिए गठित कमेटी ने दो करघे की जगह चार करघे चलाने की सिफारिश कर मजदूरों पर काम बढ़ोतरी का रास्ता अपनाया। मजदूर विरोध में एकजुट हो गए। राजाराम शास्त्री, मौलाना संत सिंह यूसुफ, गणेश दत्त वाजपेयी, अर्जुन अरोड़ा, कामरेड रामआसरे, अमूल्य रतन तिवारी तथा विमल मेहरोत्रा कम्युनिस्ट व समाजवादी सभी ने मिलकर सूती मिल मजदूर सभा का गठन किया। और हड़ताल का बिगुल फूंक दिया।  2 मई 1955 को हड़ताल के समर्थन में फूलबाग में विशाल रैली को राममनोहर लोहिया ने संबोधित किया। बालकृष्ण ‘नवीन’ सांसद (राज्यसभा) ने मजदूरों का खुलकर समर्थन किया। लोकसभा में कानपुर से सांसद शिवनारायण टंडन भी हड़ताल के समर्थन में थे। सरकार के दबाव डालने पर भी वे झुके नहीं, लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया पर मजदूरों का विरोध नहीं किया। पहली कतार के सभी नेता गिरफ्तार किए जा चुके थे। दूसरी पांत के नेताओं में सुरक्षा कारखानों के नेता एस.एम. बनर्जी और कामरेड रामआसरे ने आंदोलन की कमान संभाली। यह हड़ताल 80 दिन चली। मुख्यमंत्री संपूर्णानन्द के आश्वासन पर हड़ताल तो समाप्त हो गई, मजदूर नेता रिहा हो गए। लेकिन संपूर्णानन्द ने धोखा दिया। देवीदत्त अग्निहोत्री ने पूरी ताकत से मजदूर हड़ताल का समर्थन किया। वे राजाराम शास्त्री के साथ थे।

(जारी)


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