21 जनवरी. बीते 20 जनवरी शुक्रवार को ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ान की पुण्यतिथि पर एक आनलाइन संगोष्ठी का आयोजन एक अनौपचारिक युवा समूह की पहल पर किया गया। संगोष्ठी का विषय था : इंसानी बिरादरी के समक्ष चुनौतियां और हम युवा। संचालन एक युवा ने किया और बड़ी भागीदारी भी युवाओं की रही। युवतियों और युवकों की संख्या लगभग समान रही। 40 से ज्यादा साथियों का सहभाग रहा।
संगोष्ठी के प्रारंभ में गांधीमार्गी विचारक राममोहन राय जी ने अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ान पूर्ण रूप से गांधी के विचार को मानते थे। देश के विभाजन के समय उन्होंने गाँधी से कहा था कि हमें तो भेड़ियों के बीच में फेंक दिया गया।
वरिष्ठ साथी मणिमाला जी ने युवा सवालों को प्रेरित करने की कोशिश की। साथी रुस्तम जी ने कहा कि आज की संगोष्ठी के दो पहलू हैं। पहला ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ान की “जीवनी” और दूसरा “इंसानी बिरादरी के समक्ष चुनौतियां और हम युवा”।
अशोक जी ने उनकी पूरे जीवन का संक्षिप्त विवरण रखा। युवा साथी श्यामली सुमन ने कहा कि संवैधानिक मूल्यों पर हमें ध्यान देने की जरूरत है। आज देश में संविधान रहने के बावजूद आर्थिक गैरबराबरी इतनी बढ़ गई है कि किसी की कमाई दिन भर में ₹50 होती है तो किसी की कमाई दिन भर में 50 लाख की होती है। बृहस्पति ने कहा हमें सर्व धर्म समभाव की बात करनी चाहिए। ग्राम स्वराज को स्थापित करने हेतु हमें काम करने की आवश्यकता है।
रामगढ़ के साथी राजू विश्वकर्मा ने इंसानी बिरादरी की चर्चा करते हुए तमिलनाडु के आनंदी अम्मा का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि उन्होंने 2000 लावारिस लाशों का दाह संस्कार रीति-रिवाजों से किया। इसी तरह से हम अपने क्षेत्र में ऐसे कई काम कर सकते हैं जिससे इंसानियत बनी रहे। समाज और देश की परिस्थिति पर हमें ध्यान देने की आवश्यकता है तभी जाकर मानव की मानवीयता बनी रहेगी। हमें जिन्हें याद करना चाहिए उन्हें भूल जाते हैं। और जिन्हें याद नहीं करना है उन्हें लेकर चल रहे हैं। सीमांत गांधी की प्रासंगिकता आज की परिस्थिति में क्या है यह सवाल करते हुए रामशरण जी ने चर्चा को आगे बढ़ाया। वे चाहते थे कि देश में विभिन्न भाषा-भाषी, विभिन्न जाति-धर्म के लोग मेल-मिलाप के साथ रहें! ऋषि आनंद ने कहा कि ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ान मुस्लिम समुदाय के बड़े नेता हुआ करते थे। रीता जी ने कहा कि सभी वक्ताओं ने जो बताया उनमें से कोई एक संकल्प को हमें अपने जीवन में उतारना चाहिए।
मनीषा जी ने कहा कि 1946 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ान को शांतिनिकेतन बुलाया था। शांतिनिकेतन उन्हें बहुत अच्छा लगा। बाद के दिनों में उन्होंने अपनी संतान को पढ़ने के लिए शांतिनिकेतन भेजा। जब भारत आए पुनः शांतिनिकेतन जाने की इच्छा जाहिर की। डॉक्टर विश्वनाथ आजाद ने कहा कि ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ान के बारे में मैं जानता था। परंतु इतनी गहराई से नहीं। इस कार्यक्रम के माध्यम से काफी चीजों को सीखने का मौका मिला। हमें लगातार इस तरह की प्रक्रिया को चलाते रहना चाहिए ताकि युवाओं के बीच में विचार जाए।
रुस्तम जी ने पुनः जोड़ते हुए कहा कि युवा पीढ़ी से संबंधित विषयों पर चर्चा होती रहनी चाहिए! जयंत जी ने अब्दुल ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ान के जीवन पर प्रकाश डाला। रानी किस्कू ने कहा कि भावी पीढ़ी के बच्चों को इतिहास की जानकारी देते रहेंगे तभी जाकर हम इन महापुरुषों को याद रख पाएंगे।
संगोष्ठी का संचालन कुमार दिलीप ने किया। इस संगोष्ठी में आरजू, अनुराग आग्नेय, अशोक, सुशांत विमुक्त (उत्तर प्रदेश), अनूप कुमार, ऋषि आनंद, रामशरण (बिहार), अरुण किसान, कैलाश पिंग, उमाकांता (ओड़िशा), जयंत (महाराष्ट्र), मनीषा बनर्जी (पश्चिम बंगाल), राममोहन राय (हरियाणा), मणिमाला, स्मिता स्नेही, रीता धर्मरीत (दिल्ली), आभा, बिन्नी, बीरसिंह, वृहस्पति, धनेश्वर, देवेंद्रनाथ, हरी प्रसाद, हेमंत कुमार, जयंती, कृष्णपद, किरण, लक्ष्मी, मनीषा श्वेता, मंथन, मिंटू रानी, मौसमी, मृत्युंजय, मुक्ता रानी, नितमा, राजू विश्वकर्मा, रुस्तम, सोभा रानी, श्यामली सुमन, सुहागिनी, सुशीला, श्वेता शशि, शुभम कुमार, विश्वनाथ, विश्वनाथ आजाद एवं कुमार दिलीप (झारखंड) मुख्य रूप से शामिल हुए।
– कुमार दिलीप