देश के सार्वजनिक जीवन में उनका योगदान हमारी स्मृति में हमेशा बना रहेगा

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स्मृतिशेष : शांति भूषण (11 नवंबर 1925 - 31 जनवरी 2023)


— आनंद कुमार —

मारे देश के लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण के पिछले छह दशकों से अनूठे मार्गदर्शक थे वे. उनकी यशस्वी जीवन यात्रा में अनेक विशिष्टताएं थीं और उन्होंने एक नव-स्वाधीन देश के आदर्श नागरिक के धर्म का अनुकरणीय निर्वाह किया. भारत के लोकतंत्र का कोई भी इतिहास बिना शांति भूषण जी के योगदान की चर्चा के पूरा नहीं माना जाएगा.

उन्होंने अपनी ज्ञानशक्ति से प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को 12 जून 1975 को पदच्युत कराकर देश-दुनिया का अपनी ओर ध्यान आकर्षित किया. इसी प्रकार उन्होंने अनुभव और विवेक का समन्वय करके 2014 में सत्ता के नशे में चूर राजनीतिक जमातों के प्रतिरोध की अगुवाई की. वह अनैतिकता के विरुद्ध जनसाधारण के आक्रोश के सहज प्रवक्ता थे.

उनके देहांत से भ्रष्टाचार की धुंध के खिलाफ सत्तर के दशक से आज तक लगातार रोशनी फैलाने वाली एक मशाल बुझ गई. अपने विशाल ज्ञान भंडार और निजी जीवन की सात्विकता के बूते जनसाधारण में आशा जगाने वाला एक पथ-प्रदर्शक चला गया. भारत का एक रत्न नहीं रहा.

इलाहाबाद के एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार में जनमे शांति भूषण जी के माता-पिता ने गांधीजी के आह्वान पर स्वराज के लिए ब्रिटिश राज को चुनौती देते हुए सत्याग्रह किया था और शांति भूषण जी ने स्वराज को भ्रष्टाचार-मुक्त करके सुराज में बदलने के लिए इंदिरा राज से लेकर मनमोहन सिंह सरकार और नरेंद्र मोदी राज तक के खिलाफ उच्च और सर्वोच्च न्यायालय से लेकर जनता की अदालत तक जन प्रतिरोध का नेतृत्व किया. उनकी विधि विशेषज्ञता ने उन्हें उत्तर प्रदेश के एडवोकेट जनरल से लेकर देश के क कानून मंत्री तक की सम्मानपूर्ण जिम्मेदारी का अधिकारी बनाया. वह इमर्जेंसी राज को 1977 में सफल चुनौती देने वाली जनता पार्टी से लेकर 2014 में सत्ताप्रतिष्ठान के भ्रष्टाचार से टकराने वाली आम आदमी पार्टी की स्थापना के सूत्रधार रहे. उन्होंने जनता पार्टी के 1979 में हुए दुर्भाग्यपूर्ण विघटन के बाद गांधीवादी समाजवाद के लिए प्रतिबद्ध नवनिर्मित भारतीय जनता पार्टी के कोषाध्यक्ष का पद भी सँभाला. लेकिन भाजपा द्वारा मंदिर-मस्जिद की तरफ मुड़ते ही इस्तीफा देकर वकालत को अपना कर्मक्षेत्र बनाए रखा.

असाधारण प्रतिष्ठा अर्जित करने के बावजूद वह एक पारिवारिक व्यक्ति थे. निजी जीवन में वह परिवार की सभी जिम्मेदारियों के प्रति अनासक्त भाव से सजग रहे. एक स्नेहिल पति, सजग पिता और सरोकारी पितामह के रूप में जिए. अपने भाई-बहनों का पूरा खयाल रखा. उन्होंने अपनी पत्नी की स्मृति में एक शिक्षा प्रतिष्ठान की स्थापना की. अपनी चारों संतानों- दो सुपुत्र और दो सुपुत्रियों से – जीवन के अंतिम दिनों तक मित्रवत् संवाद का संबंध रखा. उनकी उपलब्धियों का बखान करते थे. लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान अपने पौत्र-पौत्रियों को दिया. बदले में पूरे परिवार ने उनके हर जन्मदिन को पारिवारिक उत्सव की तरह मनाया. अंतिम क्षण तक उनके प्रति आज्ञाकारिता और सेवा का भाव रखा.

शांति भूषण जी की जिंदगी की कहानी अविश्वसनीय रही है. लेकिन इसके बारे में अपने आचरण में अभिमान या गर्व का भाव नहीं पनपने दिया. उनकी आत्मसमीक्षा की क्षमता का अपनी जिंदगी के महत्त्वपूर्ण प्रसंगों को समेटने वाली दो पुस्तकों से अंदाजा लगाया जा सकता है. उनकी सार्वजनिक जिंदगी में सबकुछ उनकी इच्छा अनुसार नहीं हुआ. अधिकांश लोगों ने उनकी इज्जत को बढ़ाया. लेकिन कुछ प्रसंगों में उन्हें अपमान और विश्वासघात भी मिला. इससे उनकी अपने कुछ सहयोगियों के बारे में बहुत प्रतिकूल राय बनी. लेकिन वह अपने मनोभावों को तल्खी और कड़वाहट की बजाय हास्य के पुट के साथ जाहिर करते थे. उनका चेहरा बहुत रोबदार था. वह आत्मकेंद्रित या अंतर्मुखी नहीं थे. उनका स्वभाव संवादी था. अपने मिलने वालों से सहज वार्तालाप करने में सक्षम थे. उनको अपनी बात कहने में संतोष मिलता था. हंसते समय वह और आकर्षक हो जाते थे.

सफल जिंदगी और सार्थक जीवन से विभूषित लोकयात्रा के समापन के बाद शांति भूषण जी का देश के सार्वजनिक जीवन में योगदान हमारी स्मृतियों में अनोखी सुगंध की तरह बना रहेगा. क्योंकि उन्होंने एक विधिवेत्ता के रूप में न्याय व्यवस्था की महिमा को बढ़ाया. न्यायमंत्री के रूप में संविधान की मर्यादा को पुनर्प्रतिष्ठित किया. एक वरिष्ठ नागरिक के रूप में लोकशक्ति का संवर्धन किया. एक देशभक्त के रूप में देश के गौरव को बढ़ाया. एक ही जन्म में कई जन्म की ज़िम्मेदारियों का अनुकरणीय निर्वाह किया….

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