3 मार्च। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय अपनी परिपाटी, परिवेश और वैचारिक तेवरों के कारण सत्ता की ऑंख की किरकिरी बना हुआ है. शायद यही कारण उसे बार बार दमन भी झेलना पड़ता है. दमन के सिलसिले की ताजा कड़ी में जेएनयू प्रशासन ने नए नियम जारी कर धरना करने पर रोक लगा दी है। विश्वविद्यालय प्रशासन के मुताबिक, कैंपस में धरना-प्रदर्शन करने वाले छात्रों पर 20 हजार रुपए तक का जुर्माना, हिंसा करने पर 30 हजार रुपए का जुर्माना चुकाना होगा. नए नियमों के अनुसार किसी छात्र पर शारीरिक हिंसा, किसी दूसरे छात्र, कर्मचारी या संकाय सदस्य को गाली देने और पीटने पर 50 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। विश्वविद्यालय प्रशासन, धरना प्रदर्शन करने वाले छात्रों का दाखिला भी रद्द कर सकता है।
विश्वविद्यालय के छात्रों और छात्र संगठनों ने इस फैसले पर रोष व्यक्त किया है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और वामपंथी छात्र संगठन दोनों ही विश्वविद्यालय प्रशासन के इस कदम से नाखुश हैं। छात्रों का कहना है कि विरोध प्रदर्शन जैसी लोकतांत्रिक गतिविधि पर भारी जुर्माना लगाने का फैसला घोर अनुचित है। एबीवीपी जेएनयू के सचिव विकास पटेल ने मीडिया के हवाले से कहा कि इस तुगलकी आचार संहिता की कोई आवश्यकता नहीं है। सुरक्षा और व्यवस्था में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, जेएनयू प्रशासन ने बेहद कठोर आचार संहिता को लागू किया है। छात्र समुदाय के साथ कोई चर्चा किए बिना ये नए नियम लागू किए गए हैं। हम इस कठोर आचार संहिता को पूरी तरह से वापस लेने की माँग करते हैं।
जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष एन.साईं बालाजी ने ‘मूकनायक न्यूज’ के हवाले से बताया कि यह जुर्माने का फैसला लेना स्पष्ट करता है कि प्रशासन नहीं चाहता कि लोकतंत्र हो। ऐसा प्रशासन विद्यार्थियों के हित में काम नहीं करेगा। इस तरह के कानून अंग्रेजों के जमाने में होते थे, जब हम अंग्रेजों के गुलाम थे। उन्होंने आगे कहा कि हमने ऐसे किसी फरमान के बारे में पहले कभी नहीं सुना है।
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