7 अप्रैल। हाल ही में जारी इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2022 के मुताबिक वर्तमान में देश में प्रति 10 लाख की आबादी पर मात्र 19 जज हैं, जबकि वर्ष 1987 में विधि आयोग ने प्रति 10 लाख की आबादी पर कम से कम 50 जजों की संस्तुति की थी। नतीजतन अदालतों में कुल 4.8 करोड़ मामले लंबित हैं, और जेलों में क्षमता से 30 फीसदी ज्यादा कैदी हैं। कैदियों में 77.1 फीसदी कैदी विचाराधीन हैं। उच्च न्यायालयों में जजों के 30 प्रतिशत पद खाली हैं। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2022 के मुताबिक, दक्षिण भारत के तीन राज्य कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना न्याय तक पहुँच प्रदान करने के मामले में अव्वल हैं।
वहीं न्याय के मामले में सबसे बुरा प्रदर्शन करने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है। रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश को 18 बड़े और ज्यादा जनसंख्या वाले राज्यों में सबसे खराब प्रदर्शन वाला राज्य बताया गया है, यहाँ औसतन 11.34 सालों के केस भी अब तक लंबित हैं। वहीं इसके बाद पश्चिम बंगाल का नंबर आता है, जहाँ 9.9 साल औसत पेंडेंसी है। इस मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन त्रिपुरा का है, जहाँ औसत पेंडेंसी करीब एक साल की है। रिपोर्ट के मुताबिक, 28 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के उच्च न्यायालयों में हर चार में से एक केस पाँच साल से अधिक समय से चल रहा है। 11 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों की जिला अदालतों में भी यही हाल हैं। कम बजट की वजह से भी न्याय प्रणाली प्रभावित हो रही है।