28 जुलाई। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सामाजिक कार्यकर्ता वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को जमानत दे दी। दोनों गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत कथित अपराधों के लिए अगस्त 2018 से जेल में बंद हैं। उन्हें 2018 में पुणे के भीमा कोरेगांव में हुई जाति-आधारित हिंसा और प्रतिबंधित वामपंथी संगठन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के साथ कथित संबंध होने के कारण गिरफ्तार किया गया था। यह फैसला जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने सुनाया, जिसने दिसंबर 2021 में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा गोंसाल्वेस और फरेरा की उनकी जमानत याचिका खारिज करने के बाद उनकी याचिका पर सुनवाई की थी। डिवीजन बेंच ने 3 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
अदालत ने इस तथ्य पर विचार करते हुए जमानत दे दी कि वे 5 साल से अधिक समय से हिरासत में हैं। हालांकि उनके खिलाफ आरोप गंभीर हैं, लेकिन केवल यही जमानत से इनकार करने और मुकदमे के लंबित रहने तक उनकी निरंतर हिरासत को उचित ठहराने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है।
(live law hindi से साभार)
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