31अगस्त। आखिर ’एक देश – एक चुनाव’ का मुख्य उद्देश्य चुनाव का खर्च बचाना नहीं है, ‘इंडिया’ की एकजुटता को तोड़ना है।
यदि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव साथ हुए तो जो विपक्षी दल लोकसभा चुनाव के लिए इकट्ठे हो रहे हैं, वे राज्य स्तर पर अंतर्विरोध की वजह से ज्यादा इकट्ठे नहीं रह पाएंगे। विधानसभा के चुनावों में उनका आपसी संघर्ष लोकसभा के लिए उनकी एकता को प्रभावित करेगा!
यह मानना पड़ेगा कि भारत इस समय जिन ऐतिहासिक मुश्किलों में फॅंसा है, उनसे बाहर निकलने के लिए अभी जितना बड़ा दिल है, उससे बड़ा दिल और बड़ा दिमाग चाहिए। कामचलाऊ एकता से काम नहीं चलेगा, क्योंकि इतनी संगठित और चालाक सत्ता पिछले 76 सालों में कभी आयी नहीं थी।
‘एक देश – एक चुनाव’ की घोषणा को सत्तापक्ष की घबराहट के साथ उनके रणनैतिक कौशल के रूप में देखना चाहिए।
इसलिए विपक्ष को नीतिगत रूप से कुछ बड़े सैद्धांतिक और व्यावहारिक संकल्पों के साथ अपना सुचिंतित पुनर्गठन करने की जरूरत है। उन्हें मतभेद भुलाकर नहीं, बिलकुल मिटाकर सामने आना होगा।
निराला के शब्दों में कहने की इच्छा हो रही है :
’शक्ति की करो मौलिक कल्पना
आराधन का दृढ़ आराधना से दो उत्तर!’
– शंभुनाथ
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