समाजवादी समाजशास्त्री प्रोफेसर आनंद कुमार को जन्मदिन की शुभकामनाएँ!

0
Prof Anand Kumar with Randhir Kumar Gautam

— रणधीर कुमार गौतम —

जिंदगी में तीन तरह के विचारक मुझे आकर्षित करते हैं; एक जो सामाजिक आंदोलन की धारा को आगे बढ़ाने वाला हो; दूसरा, जो संस्थाओं का निर्माण करता है; और तीसरा जो एक शिक्षक के रूप में छात्रों का व्यक्तित्व परिष्करण करता है. ये तीनों ही गुणों के प्रतीक हैं प्रोफेसर आनंद कुमार.

महात्मा गांधी के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को पहचानने के लिए उसके ‘होने,’ ‘सोचने,’ और ‘करने’ में सामंजस्य की तलाश करनी चाहिए. जब भी मैं प्रोफेसर आनंद कुमार जी को देखता हूँ, तो यह सब सामंजस्य साक्षात् दिखता है. वैसे तो प्रोफेसर आनंद कुमार जी से मेरी पहली मुलाकात अन्ना आंदोलन के दौरान हुई, जिसमें मैं भी पहली बार शामिल हुआ था. उन्हीं के मार्गदर्शन में मैंने पहली बार जयप्रकाश नारायण के बारे में पढ़ा. इसके बाद, धीरे-धीरे एन सिन्हा इंस्टिट्यूट और पटना में रहने वाले बुद्धिजीवियों को अपने मित्र मंडल के रूप में चिन्हित करने लगा.

पहली ही मुलाकात में प्रोफेसर आनंद कुमार जी ने मुझ पर गहरा प्रभाव छोड़ा. मुझे हमेशा से अपने विषय, समाजशास्त्र, में बहुत आकर्षण रहा है, और उससे भी अधिक सामाजिक आंदोलन और सामाजिक नव-निर्माण में रुचि रही. प्रोफेसर कुमार मेरी इन सरोकारों के प्रेरक व्यव्तितव के रूप में थे.

फिर ,दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया में अध्ययन के दौरान, मैं लगभग आठ साल तक अपने अध्ययन और अध्यापन में लगा रहा. 2018 में, जब मैं राजस्थान के एक निजी विश्वविद्यालय में पढ़ा रहा था, तो मैंने जयप्रकाश जयंती के अवसर पर प्रोफेसर आनंद कुमार जी को अपने एक व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया. उसके बाद से, ऐसा सिलसिला बना कि मैं उनके लगातार सानिध्य में हूँ. उनके अंदर की भीष्ममीय उर्जा और कभी हार न मानने वाली मानसिकता ने हमेशा मुझे आकर्षित किया.

समाजवादी विचारधारा के मूल्य मैंने प्रोफेसर आनंद कुमार जी से सीखा है, और उसमें किसी भी तरह की कोई संकीर्णता नहीं थी, जितने करीब जयप्रकाश आनंद जी के हैं उतने ही करीब लोहिया है. जितने उत्साह के साथ वह गांधी को पढ़ाते हैं उतने ही उत्साह के साथ वह अंबेडकर को भी पढ़ाते हैं, जितने उत्साह के साथ सुभाष चंद्र बोस का जिक्र करते हैं उतने ही उत्साह के साथ हो भगत सिंह को भी याद करते हैं. जयप्रकाश नारायण ,डॉ राममनोहर लोहिया के साथ-साथ वह विनोबा भावे को भी याद करते हैं. वे राष्ट्र के उन सभी नायकों को अपने चिंतन में रखते हैं जिनसे समाजवादी धारा को आंशिक भी दिशा मिलती है.

मैने अपने एक इंटरव्यू में प्रोफेसर आनंद के बारे में कहा- “Being a sociologist, he often reflects elements of Prof. Immanuel Wallerstein, Prof. T.K. Oommen, and Prof. Yogendra Singh in his work. For him, scholarship is a vocation in the Weberian sense. He applies various frameworks in his sociological reasoning, such as functionalism, structuralism, Marxism, postmodernism, Gandhian thought, and others. He is deeply committed to teaching Indian social and political thinkers to Indian social researchers. He encourages students to free themselves from European intellectual influences and post-colonial resentment. He believes that First World philosophies should not dominate Third World realities. He always maintains “epistemological trust” while making arguments through sociological reasoning”. His praxiology lies in his sprit of voluntarism , socialism and nationalism.
. …
मैंने उन्हें कई शिविरों में संवाद करते हुए देखा है और उनके सैकड़ों प्रशंसकों को भी मिला हूं, लेकिन आज तक मैंने उनका एक भी आलोचक नहीं देखा जो प्रोफेसर आनंद कुमार जी को सुनना या उनसे मिलना नहीं चाहता हो. जब भी आप प्रोफेसर आनंद कुमार जी से मिलते हैं, तो सबसे पहले वह आपको आपके परिवार के बारे में पूछते हैं. जो भी व्यक्ति उनसे मिलता है, वह बस उनका होकर रह जाता है. उनका व्यव्तितव असीम है जिसमें सबकुछ समाहित हो जाता है.

मैंने उन्हें कई शिविरों में विभिन्न विचारधाराओं को मानने वाले लोगों के साथ बातचीत करते हुए देखा है. वे जब भी शिक्षण का काम करते हैं, तो विद्यार्थियों को अधिक से अधिक प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित करते हैं. सबसे बड़ी कला जो उनके अंदर है, वह यह है कि वह लोगों को सहेज लेते हैं और फिर सहजता से संवाद स्थापित करते हैं. संवाद के माध्यम से प्रेरणा के मूल्य की खोज करना प्रोफेसर आनंद कुमार की अद्भुत कला है. जो भी व्यक्ति उनके साथ मिलता है, सबसे पहले आनंद जी उस व्यक्ति को सहज करते हैं. जैसा कि कहावत है, “बड़ा व्यक्ति वह होता है जिसके पास आपको अपने छोटेपन का एहसास नहीं होता.” और यह बात मुझे कई लोगों ने साझा की है कि वह प्रोफेसर आनंद कुमार जी के साथ कितने सहज हो जाते हैं.

मेरी नजर में प्रोफेसर आनंद कुमार जी की पहचान एक ओजस्वी वक्ता, विद्वान, शिक्षक, आंदोलनकारी और सबसे बड़ी बात, एक समाजवादी के रूप में है. हालांकि हर व्यक्ति की अपनी एक अलग पहचान की तलाश होती है, लेकिन अगर मुझसे कहा जाए तो मैं प्रोफेसर आनंद कुमार जी जैसा बनना चाहता हूं. क्योंकि उनका पारिवारिक जीवन, सांसारिक जीवन, शैक्षिक जीवन और सामाजिक जीवन प्रेम, करुणा और हमेशा दूसरों की खुशी में अपने आनंद को खोजने का आग्रह करता है. हां, सच में, सर अपने नाम के मुताबिक आनंद ही हैं.

प्रोफेसर आनंद कुमार अपने विद्यार्थियों के लिए कुछ भी कर जाने की हद तक मदद करने का सामर्थ्य रखते हैं. मैंने उन्हें देखा है कि जितनी सहजता के साथ वे मुख्यमंत्री से मिलते हैं, उतनी ही सहजता के साथ वे अपने संगठन के एक आम कार्यकर्ता के साथ भी मिलते हैं. जब भी वे किसी समूह से मिलते हैं, तो न तो किसी को खास होने का गौरव देते हैं और न ही किसी को उपेक्षा के भाव से मिलने का संबोधन देते हैं. वे हमेशा समता के आग्रह से ही लोगों से मिलते हैं.

प्रोफेसर आनंद कुमार की विचारशीलता में विनम्रता का आग्रह हमेशा रहता है—व्यक्ति को लेकर, विचार को लेकर, और संसार को लेकर. “Intellectual Humility” और समाजवादी संस्कार से उनमें दूसरों के प्रति सीखने और दयालुता का भाव हमेशा बना रहता है.

उनके व्यक्तित्व में मुझे किसी भी तरह का विरोधाभाष नहीं दिखाई देता. मेरा मानना है कि उनके अंदर लोहिया का जेपी और जेपी का लोहिया बसा है.

प्रोफेसर आनंद कुमार जी का आग्रह एक समाजशास्त्री के रूप में कभी भी किसी भी विचारधारा को अंतिम सत्य के रूप में मानने की इच्छा नहीं रही. इस संदर्भ में वह जयप्रकाश नारायण से प्रेरित दिखते हैं. “What the world calls failures were stages in the quest( JP in prison Diary) .वह हर तरह की संभावनाओं की खोज करते हैं. परंपराओं से सीखकर और भविष्य के लिए नए विकल्पों की खोज उनके दर्शन, जीवन और कर्म में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. वे हमेशा युवाओं को संगठन, समाजशास्त्र के ज्ञान, परंपरा और भारतीयता की विरासत के रूप में खोजते रहते हैं. वे नवयुवकों पर भरोसा करते हैं और उन्हें उत्साहित तथा प्रेरित करते रहते हैं.

अभी आईटीएम विश्वविद्यालय में लगभग 2 साल पहले गांधीयन स्कूल ऑफ डेमोक्रेसी एंड सोशलिज्म की स्थापना हुई. गांधीयन स्कूल ऑफ़ डेमोक्रेसी एंड सोशलिज्म को एक रिसर्च सेंटर, एक ट्रेनिंग सेंटर और एक R&D सेंटर के रूप में स्थापित किया गया है, जिसका उद्देश्य सामाजिक आंदोलनों और सामाजिक विज्ञानों के बीच की खाई को भरना है. इसके साथ ही, गांधीयन और समाजवादी आंदोलनों के कैनवास के रूप में इस केंद्र की पहचान स्थापित करने की संकल्पना उभरी. यहां पर मुझे लगभग डेढ़ वर्ष तक उनका मार्गदर्शन और सहयोग मिलता रहा, जिससे मैं एक संस्था के निर्माण के मूलभूत तत्व नेतृत्व निर्माण की समझ विकसित कर पाया. कभी-कभी नेतृत्व का महत्व संस्था से भी बहुत बड़ा होता है. संस्था व्यक्तित्व के निर्माण का तंत्र बनाती है, और नेतृत्व उस तंत्र को बनाने की साधना करने वाले प्रेरित लोगों को जन्म देती है.

फिलहाल, हमारा विभाग आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के विद्यार्थियों को वैल्यू एजुकेशन के माध्यम से समाजमुखी व्यक्तित्व और राष्ट्र निर्माण की भावना विकसित करने का प्रयास कर रहा है. हाल ही में आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर जर्नल की भी शुरुआत की गई है, और प्रोफेसर नंदकिशोर आचार्य जी के मार्गदर्शन और डॉ. आलोक बाजपेई जी के सहयोग से विभिन्न विषयों पर शोध ग्रंथ और किताबें प्रकाशित करने की योजना बनाई गई है. प्रोफेसर कुमार में डॉ. राम मनोहर लोहिया का संघर्ष, जयप्रकाश नारायण का नवनिर्माण और उनके परिवार से मिला समाजवादी संस्कार उनके व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण अंग है.

प्रोफेसर कुमार का परिवार स्वतंत्रता सेनानियों का परिवार रहा है. यहां काशी विद्यापीठ के निर्माण में लगे विद्वानों और क्रांतिकारीयों का जमघट लगा रहता था. चंद्रशेखर आजाद ,डॉ भगवान दास आचार्य नरेंद्र देव, डॉ. राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, कृष्णनाथ, राज नारायण जैसे कई समाजवादी नेता प्रोफेसर आनंद कुमार जी के परिवार से जुड़े हुए थे. मैंने लगभग सैकड़ों प्रोफेसर आनंद कुमार के विद्यार्थियों से मुलाकात की है.

कई उनके शिष्यों के साथ हमारा बहुत “गुरु भाई” जैसा सम्बन्ध बन गया है, जो एक प्रकार का बंधुत्व है, जैसे किसी संस्था के सहभागी या सहयोगी होने में होता है. उनमें से कई लोगों के साथ हमारा बहुत गहरा संबंध है. पहचान ही काफी होती है कि वे प्रोफेसर आनंद कुमार के पढ़ाए हुए विद्यार्थी हैं, और इस पर हमारी गहरी मित्रता की आधारशिला तय हो जाती है. ऐसे अनगिनत छात्र हैं जिन्हें प्रोफेसर आनंद कुमार ने प्रोत्साहित किया है. उन्होंने कई गैर-राजनीतिक संगठनों, सामाजिक आंदोलनों, शिक्षण संस्थानों, प्रशासनिक सेवाओं और बड़े समाज सेवा योद्धाओं के रूप में विकसित किया है.

पिछले दो-तीन सालों से सर की स्वास्थ्य की कुछ समस्या बढ़ी है, लेकिन इसके बावजूद 2024 के चुनाव में सर ने विपक्ष के सशक्तिकरण और लोकतांत्रिक शक्तियों के सहयोग के लिए लगभग हर संभव प्रयास किया. मुझे भी दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में जाने का मौका मिला. वहां शारीरिक तकलीफ के बावजूद सर को संघर्ष करते हुए देखकर अंदर से एक प्रकार की प्रसन्नता हो रही थी और मैं स्वय भी उत्साह से भर जाता था. अब ऐसा लगता है कि प्रोफेसर आनंद कुमार जी के साथ मेरा सम्बन्ध कृष्ण और अर्जुन के सम्बन्ध की तरह है, जिसमें बंधुता भी है, प्यार भी है, गुरुत्व भी है और नेतृत्व भी है.

अभी उनकी किताब “इमरजेंसी की अंतर कथा” आई है. मुझे याद है कि इसका प्रारंभ तब हुआ था जब प्रोफेसर आनंद कुमार नेहरू म्यूजियम लाइब्रेरी के फेलो थे. यह किताब अपने आप में जयप्रकाश आंदोलन को एक समाजशास्त्रीय दृष्टि से समझने की सबसे बेहतरीन किताबों में से एक है. क्योंकि प्रोफेसर कुमार में एक्टिविस्ट और एक्सपर्ट दोनों तरह के विचार परंपराओं का आग्रह दिखाई देता है. वे जितने निरपेक्ष होकर सामाजिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं, उतने ही सापेक्ष होकर आंदोलनों के अनुभवों को भी पाठकों के सामने लाने की कला उनके अंदर है.

इस तरह, जब प्रोफेसर आनंद कुमार शिकागो यूनिवर्सिटी में Immanuel Wallerstein के विद्यार्थी के रूप में पढ़ाई कर रहे थे, तो वर्ल्ड सिस्टम थ्योरी और वैश्वीकरण के साथ अमेरिका की समाजशास्त्र का प्रभाव उनके ऊपर देखने को मिलता है. लेकिन एक समाजशास्त्री के रूप में, उनकी सोच मैक्स वेबर, इमान्यूएल दुर्क्हाइम और कार्ल मार्क्स तीनों की चिंतन शैली से शुरू होती है. वह हर फ्रेमवर्क को नापतोल करके उपयोग करते हैं. इसी दौर में भारत में हो रहे अधिनायकवाद के खिलाफ जन आंदोलनों को प्रोफेसर आनंद कुमार ने अमेरिका तक पहुंचाने का प्रयास किया.

वे जितनी दक्षता के साथ पश्चिमी समाजशास्त्र को पढ़ते हैं और उनकी गहरी समझ है, उतनी ही गहरी पकड़ उन्हें भारतीय समाजशास्त्र और भारतीय ज्ञान प्रणाली की भी है. कभी-कभी तो मुझे लगता है कि जितनी गति उनकी समाज विज्ञान में है, उतनी ही गति उनके साहित्य में भी है, खासकर हिंदी साहित्य में. मुझे याद है, आईटीएम यूनिवर्सिटी में जब भगत सिंह और महात्मा गांधी के विचारों को केंद्र में रखते हुए संगोष्ठी का आयोजन किया गया था. तब प्रोफेसर जगमोहन (भगत सिंह के भांजे), प्रोफेसर नंदकिशोर आचार्य, और प्रोफेसर आनंद कुमार के बीच उनके आवास पर लगभग 6 घंटे का संवाद हुआ, जिसे मैं अभी भी याद करता हूं. मैंने अपनी जिंदगी में इतने उच्च स्तर का संवाद कहीं नहीं देखा. अगर कभी समय मिलेगा तो उस संवाद के बारे में एक लेख लिखूंगा, वह मुझे अभी तक रोमांचित करता है और करता रहेगा. उनके साथ रहने का असर यह है कि मुझे किसी भी प्रकार के स्कॉलर के साथ बातचीत करते समय नर्वसनेस महसूस नहीं होती, बल्कि एक तरह का आत्मविश्वास रहता है. उन्हीं की कृपा से मैं भारत के लगभग सभी स्थापित समाज वैज्ञानिकों के साथ मित्रता और संवाद का अवसर मिला.

हर बार जब मैं प्रोफेसर आनंद कुमार से मिलता हूं, तो मुझे महसूस होता है कि वह पहले से ज्यादा व्याकुल और निर्भीक हो गए हैं. मुझे लगता है कि वह सामाजिक न्याय, लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण और आध्यात्मिक आनंद की तलाश में हैं. कभी भी मैंने प्रोफेसर कुमार को घबराते हुए नहीं देखा है, न ही शरमाते हुए, और न ही क्रोधित होते हुए. मैंने हमेशा आनंदित आनंद को ही देखा है, मेरे साथ, अपने साथ और सबके साथ उनकी तलाश भारत की सुरक्षा को लेकर भी है. हिमालय आंदोलन, तिब्बत की मुक्ति, भारत की सुरक्षा, भारत की ज्ञान परंपरा की विरासत, और भारत में नए समाजवाद के लिए समाजवादियों की तलाश भी उनके मन में है.

मैं कभी-कभी सोचता हूं कि प्रोफेसर कुमार क्यों इन आंदोलनो में लगे हुए हैं. मुझे लगता है कि नागरिकता निर्माण करना, जागरूक नागरिकता पैदा करना, आंदोलन की शक्तियों और व्यक्ति के अंदर वोलंटीयरिज्म की भावना को जगाना ही समाज की सृजनशीलता को उत्पन्न करता है. इसी से परिवार और समाज में प्रयोगधर्मी, परिवर्तनशील लोग पैदा होते हैं और समाज में क्रांति की धारा बढ़ती है. हम जिस समाज में रह रहे हैं, उसमें एक नागरिक के रूप में अपने विचार व्यक्त करने में घबराहट होती है.

इस संदर्भ में प्रोफेसर आनंद कुमार जी एक मार्गदर्शक हैं, जो बताते हैं कि आप अपनी राजनीतिक विचारधारा को मानते हुए भी एक बेहतर समाजशास्त्री और जागरूक नागरिक बने रह सकते हैं. आज राष्ट्र निर्माण के लिए हमें ऐसे शिक्षकों की ही आवश्यकता है जो व्यक्तियों के निर्माण के साथ-साथ उन्हें समाज निर्माण की धारा से भी जोड़ने का प्रयास करते हैं. यह राष्ट्र निर्माण की एक विरासत है, जिसे प्रोफेसर आनंद कुमार कभी आंदोलनकारी बनकर, कभी शिक्षक बनकर, कभी शोधकर्ता बनकर, कभी शोधार्थी बनकर और कभी नागरिक बनकर निभा रहे हैं.

प्रोफेसर आनंद कुमार जी के सम्मान में एक अभिनंदन ग्रंथ अगले साल, 15 सितंबर 2025 तक तैयार करने की योजना बनाई गई है। आप सभी उनके विद्यार्थी, सहयोगी, और सामाजिक आंदोलन के सहयात्री से निवेदन है कि यदि आप उनके ऊपर कोई लेख लिखना चाहते हैं, तो आप सादर आमंत्रित हैं।

Leave a Comment