देश की सीमाओं से परे होते हैं कला और संगीत।

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Vinod kochar

— विनोद कोचर —

भारत के मशहूर ग़ज़ल गायक स्वर्गीय जगजीत सिंह की याद में आयोजित एक स्मृति समारोह में शिरकत करने वाले पाकिस्तानी गज़ल गायक गुलाम अली को भारत आकर इस समारोह में शिरकत करने से रोकने की शिवसेना की मांग को मंजूर करते हुए महाराष्ट्र की सरकार ने उस कार्यक्रम को ही रद्द कर दिया|

कला, संगीत और संस्कृति विरोधी इस अफ़सोसनाक खबर को पढ़कर हुक्मरानों की ओछी सोच का पता चलता है| इसी सन्दर्भ में मुझे आज आपातकालीन बंदीवास के दौरान ,”टाइम्स ऑफ इंडिया ” में 21-7-76 को छपी उस खबर की याद आ रही है जिसे पढ़कर नरसिंहगढ़ जेल में बंद समाजवादी चिंतक और नेता मधु लिमये इतने विचलित हो गए थे कि तत्कालीन तानाशाह प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को एक मार्मिक पत्र लिख बैठे थे|

“लाहौर टीवी पर भारतीय फ़िल्में देखने की कीमत” शीर्षक के साथ छपी उस खबर के मुताबिक, भारतीय फ़िल्में देखने की दहकती इच्छा से प्रेरित होकर,भारत की सीमा के भीतर रोरनवाला गांव के पास,सीमा सुरक्षा बलद्वारा पकड़े गए मोहम्मद हनीफ नामक 15 वर्षीय बालक से की गई पूछताछ में ये मालूम हुआ कि अमृतसर से प्रसारित होने वाली भारतीय फ़िल्में लाहौर टीवी पर देखने के इच्छुक दर्शकों से लाहौर के मकान मालिक, प्रति दर्शक 2 रूपये वसूल करते हैं| हनीफ ने ये भी बताया कि वह पहले भी रात के अँधेरे में6-7बार लाहौर से अमृतसर जाकर, भीख में मिले पैसों से हिंदी फ़िल्में देखकर वापस लाहौर लौट आया है|हनीफ ने ये भी बताया कि टीवी पर भारतीय फिल्मों के प्रसारण से लाहौर का सिने उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है|

विस्तृत पूछताछ के लिए हनीफ को पुलिस रिमांड पर भेजने से दुखी होकर मधुजी ने अपने पत्रमें इंदिराजी को ये लिखा था कि ,
“—-राजनीतिज्ञों, स्वार्थी तत्वों और गलत दिशा में बढ़ रहे कट्टरपंथियों के बावजूद, अविभाजित भारत की आम जनता की एकता के अटूट बंधन का ये एक हृदयस्पर्शी उदाहरण है |मैंआशा करता हूँ कि इस लड़के के साथ पुलिस ने कोई दुर्व्यवहार नहीं किया होगा|अच्छा होता यदि हनीफ को शासकीय खर्च पर भारतीय फ़िल्म दिखाकर, हालमें ही शुरू की गई लाहौर-अमृतसर एक्सप्रेस से ससम्मान उसके घर वापस पहुंचा दिया जाता|दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्तों और रेल तथा हवाई सेवा की पुनर्बहाली से मैं बहुत खुश हूँ|लेकिन क्या सिर्फ इतना ही काफी है? भले ही वीज़ा जैसी अभद्र व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म न भी किया जा सके,तो भी वीज़ा के प्रतिबंधात्मक नियमों को क्या लचीला नहीं बनाया जाना चाहिए ताकि भारत-पाक की आम जनता आसानी से आना जाना कर सके?

क्यों न लता मंगेशकर को पाकिस्तान की सद्भावना यात्रा के लिए मनाया जाये? भाईचारा और दोस्ती बढ़ाने की दृष्टि से वे निश्चित ही सर्वाधिक प्रभावशाली राजदूत साबित होंगी|लोकप्रिय संगीत के जाने माने पाकिस्तानी गायकों को भारत भेजने हेतु हमें पाकिस्तान को न्योता देना चाहिए| दिल में अगर परस्पर सद्भाव हो तो और भी अनेक कदम उठाये जा सकते हैं| ” इंदिराजी ने तो मधुजी की बात नहीं मानी

लेकिन क्या मोदीजी भी इंदिराजी के ही नक्शेकदम पर चलने के ख्वाहिशमंद हैं? कला और संगीत तो दुश्मनी को दोस्ती में बदलने वाली बेशकीमती नियामतें हैं|लेकिन भारत-पाक के हुक्मरानों को तो दोस्ती नहीं,दुश्मनी ही निभानी है| शायर की ज़ुबान में ये बात उन्हें कहाँ समझ में आएगी कि –

बाद रंजिश के
गले मिलते हुए रुकता है दिल
अब मुनासिब है यही
कुछ हम बढ़ें,कुछ तुम बढ़ो…..

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