सन्यासी स्वामी सानंद गंगा की सफाई और उसके किनारे लगे आद्योगिक कारखानों को बंद करने की मांग की बलिवेदी पर, 112 दिन की भूख हड़ताल के अंतिम दिन शहीद हो गए।
जीते जी इस सही अर्थों के सन्यासी की मांग को उस प्रधानमंत्री और उसकी पार्टी ने नहीं सुना, न अपने अहंकार के कारण कभी भी उनसे मिलने गए ।यही चुनाव प्रचार किया था ना इन्होंने बनारस में कि माँ गंगा ने मुझे बुलाया है अपनी दुर्दशा का जीर्णोद्धार करने?
जीर्णोद्धार के नाम पर हजारों रुपए खर्च हुआ लेकिन नतीजा साढ़े चार सालों में भी सिफ़र रहा।और ये सन्यासी भी शहीद हो गया!
मोदी और उनकी पार्टी की गंगा के प्रति संवेदनशीलता इस शहादत से बेनक़ाब हो गई है और अब राजनीति की फ़िज़ा में उनका गंगा के प्रति पाखंड अपने पूरे नंगे रूप में सामने आ गया है।
– विनोद कोचर
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