नागपाश में बॅंधा संसार

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Nagpash

Dhruv Shukla

— ध्रुव शुक्ल —

किसी दूर देश की प्रयोगशाला में
कल्पना की गयी है संहार की
रची गयी है अकाल मृत्यु

कर रहा सबको अकेला
कोई असाध्य रोग
क़ैद कर रहा है ग़ुलाम एकान्त में

सब अपनी-अपनी जान बचाकर
डर के मारे छिप गये हैं घरों में
जो हो गये हैं बेघर
साॅंसें गिन रहे हैं राहत शिविरों में

आगे जा रही है दुनिया
पीछे छोड़कर असहाय जीवन को
उतरकर वैभव की मीनारों से
मॅंडरा रही है सबके सिर पर मौत
चल रहा मृत्यु का व्यापार

मायावियों ने बाॅंध लिया संसार
नागपाश में
पूछ रहे हैं राजनीतिक जुआरी
गरुड़ का पता
ढूॅंढे नहीं मिल रही संजीविनी


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