पर्यावरण सरंक्षण यानी जल जंगल जमीन सरंक्षण के साथ हवा स्वच्छ करने में विश्व के हर नागरिक की जिम्मेदारी है:
धरती का तापमान सामान्य से 1850 से लगातार बढ़ रहा है इससे धरती के मौसम में बदलाव आ रहे हैं। इसके लिए ज्यादातर मनुष्य ही जिम्मेदार हैं।
आज शहरों में जल पीने के काबिल नहीं है मात्रा भी कम हुई है जैसे दक्षिण अफ्रीका के जॉन्सबर्ग शहर पानी रहित घोषित हुआ है। इसी प्रकार भारत में भी मद्रास में पानी की भारी कमी है और ट्रेन से पानी लाने की जरूरत महसूस हुई है। देश के बहुत से भूभाग में सूखे की वजह से लोगों को पशुओं सहित पलायन करना पड़ रहा है। दिल्ली जैसे शहर में हवा इतनी दूषित है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे गैस चैंबर की संज्ञा से नवाजा गया है। दुनियां के सबसे गंदे शहर ज्यादातर भारत में हैं और देश की राजधानी पहले नंबर पर है। क्या भारत के नागरिक इससे गौरवान्वित महसूस करते हैं? अवश्य ही नहीं। खेती वाली मिट्टी भी दूषित हुई है और खेती के काबिल नहीं रही है विशेष कर यहां बहुत सघन खेती होती है जैसे पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश इत्यादि।
नदियां दूषित हुई हैं इतना ही नहीं नाले खड़ें कुएं बौड़ियां सब लगभग दूषित हैं। भूजल भी खतरे के निशान को छू रहा है। जिस गति से सरकारें और लोग संसाधनों का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं और जल जंगल जमीन को दूषित कर रहे हैं और इन्हें नष्ट कर रहे हैं तो आने वाली पीढ़ियों का जीवन बहुत बड़े संकट में होगा। इसके लिए 1950 के बाद जन्में लोग जिम्मेदार हैं। आज विश्व में इतनी अशांति है कि हर जगह युद्ध के हालात ही नहीं हैं युद्ध हो रहे हैं। एक तरफ अमेरिका के साथ यूरोप है तो दूसरी ओर रूस के साथ चीन अपनी शक्ति परीक्षण ही नहीं कर रहे सीधे भिड़े हुए हैं। तीसरा युद्ध लगभग लड़ा ही जा रहा है। हर जगह बरबादी है। इजरायल ने तो गाजा को लगभग नष्ट कर ही दिया है और अरब में भी खलबली मचाई हुई है अमरीका भी इसका साथ दे रहा है। गाजा में बच्चों तक का नरसंहार हो रहा है और हॉस्पिटल को भी निशाना बनाया जा रहा है। मासोलिनी और हिटलर के बाद दुनियां में पहली बार हो रहा है।
खैर इस सब का प्रभाव सारी दुनियां में देखने को मिल रहा है। पिछले 4 से 5 साल से हर साल हर महीने में सामान्य तापमान में 4 से 5 डिग्री सेल्सियस बढ़ौतरी दर्ज हो रही है। इससे कभी ज्यादा वर्षा आंधी तूफान और सूखा के हालात बन रहे हैं। जगह जगह बदल फटने की घटनाएं हो रही हैं और भयंकर बाढ़ आ रही हैं। अंधाधुंध वनों की कटाई के साथ पहाड़ों को विकास के नाम पर छलनी करने से गांव के गांव तबाह हो रहे हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड इसके उदाहरण हैं।
अब एक ही रास्ता बचा है कि विश्व का हर नागरिक अपने स्तर पर इसे बचाने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाए। हर व्यक्ति को देखना है कि वे अपने लिए स्वच्छ पानी स्वच्छ हवा और पौष्टिक भोजन का इंतजाम करे यानी उसे अपने स्तर पर जल जंगल जमीन को संरक्षित करना है अपना योगदान करना है। इसी बरसात में जल का भी संग्रह करें पौधे भी लगाएं जंगल को भी बचाएं। मिट्टी को भी बचाना है इसे दूषित नहीं करना है और बेवजह मिट्टी की खुदाई भी नहीं करनी है। हिमाचल प्रदेश के सराज में यह सब हुआ है और नतीजा हम सबके सामने है।
आओ हम सब इस मुहिम का हिस्सा बने। जल जंगल जमीन के सरंक्षण को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। उपभोग की चीजों में अंकुश लगाएं। सुखी स्वस्थ जीवन जिएं औरों को भी जीने में सहयोग करें।
जय हिंद जय धरती मां।
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